बरेली: क्रांतिकारियों का सूचना और प्रचार तंत्र था बेहद मजबूत

बरेली, अमृत विचार। 1857 की क्रांति हो या फिर उसके बाद सालों तक चलने वाला स्वतंत्रता आंदोलन। हर दौर में क्रांतिकारियों ने अपना संवाद और सूचना तंत्र मजबूत रखा। आंदोलन से संबंधित सूचनाएं और घोषणाएं लोगों तक पहुंचाने या फिर सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए बाकायदा व्यवस्था होती थी। 1857 की क्रांति के दौरान …
बरेली, अमृत विचार। 1857 की क्रांति हो या फिर उसके बाद सालों तक चलने वाला स्वतंत्रता आंदोलन। हर दौर में क्रांतिकारियों ने अपना संवाद और सूचना तंत्र मजबूत रखा। आंदोलन से संबंधित सूचनाएं और घोषणाएं लोगों तक पहुंचाने या फिर सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए बाकायदा व्यवस्था होती थी। 1857 की क्रांति के दौरान जहां कुतुबशाह नवाब खान बहादुर खान के प्रकाशक हुआ करते थे तो काकोरी मामले में सेठ दामोदर स्वरूप ने जेल के अंदर क्रांतिकारियों के लिए पूरी डाक व्यवस्था विकसित कर दी थी।
बरेली कॉलेज की प्रेस में होता था प्रकाशन
सैय्यद कुतुब शाह बरेली के जखीरा मोहल्ले के बख्श उल्लाह के पुत्र थे। क्रांति से पहले वह बरेली कॉलेज में फारसी विभाग के शिक्षक थे। क्रांति के दौरान ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और नवाब खान बहादुर खां की कयादत में क्रांति में हिस्सा लिया। सूबेदार बख्त खां, नवाब खान बहादुर खां, मुबारक शाह, मौलवी महमूद अहसन आदि के साथ क्रांति का ताना-बाना बुना जाता था। नवाब खान बहादुर खां ने कुतुबशाह को अपना आम प्रकाशक नियुक्त किया था।
नवाब खान बहादुर खां के शासनकाल में प्रकाशित सभी आदेशों, घोषणा पत्रों और प्रचार साहित्य का प्रकाशन कुतुबशाह के द्वारा ही किया जाता था। यह प्रकाशन पहले बरेली कॉलेज की प्रेस में होते थे। क्रांति के दौरान कुतुबशाह ने नवाब खान बहादुर खां का आदेश प्रकाशित किया जिसमें लिखा था कि कोई भी किसी अंग्रेज को अपने घर शरण नहीं देगा। इतना ही नहीं हर अंग्रेज की हत्या का इश्तहार भी जारी किया गया। अंग्रेज को अपने घर में शरण देने वाले को दंडित करने की बात इश्ताहर में लिखी गई। उन्होंने नवाब खान बहादुर खां के नाम से जो भी घोषणाएं प्रकाशित की, वे देशभक्ति से ओतप्रोत थीं। उनके त्याग और बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता।
खबरें पढ़कर क्रांतिकारियों का उत्साह चौगुना हो जाता था
काकोरी मामले के क्रांतिकारी जिस वक्त बरेली सेंट्रल जेल के अंदर भूख हड़ताल कर रहे थे तो अधिकारी इस बात से घबराते थे कि जेल के अंदर की सूचनाएं कहीं बाहर न चली जाएं और अंदर होने वाली ज्यादती की खबरें अखबारों में न छपें मगर क्रांतिकारियों ने ऐसा सूचना तंत्र बनाया था कि जेल के अंदर और बाहर की खबरें आती-जाती रहती थीं। अफसरों की सख्ती के बावजूद अनशन करने वाले क्रांतिकारियों की डाक व्यवस्था बेहद चौकस थी। इस सूचना तंत्र की कमान संभाल रहे थे दामोदर स्वरूप सेठ। एक जमादार बिना नागा सेठ जी के घर जाता और इस तरह क्रांतिकारियों की खबरें बाहर तक पहुंच जाती और बाहर की सूचनाएं, अखबारों की कतरने आदि उनके पास आ जाया करती थीं। इस जमादार को सुशीला घोष काफी पैसे दिया करती थीं जब बाहर से अखबारों में छपी खबरें क्रांतिकारी पढ़ते तो उनका उत्साह चौगुना हो जाता और कांटों भरा रास्ता आसान लगने लगता। सेठ जी ने भी अनशनकारी क्रांतिकारियों का भरपूर और डटकर सहयोग किया।
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