ओखली पहाड़ के हर घर के आंगन में नजर आने वाली एक विरासत

ओखली पहाड़ के हर घर के आंगन में नजर आने वाली एक विरासत

हल्द्वानी, अमृत विचार। ओखली जिसे पहाड़ी या कुमाऊंनी में ओखव कहा जाता है पहाड़ की एक खास विरासत है। पहाड़ में मौजूद हर घर के आंगन में इसे आसानी से देखा जा सकता है। धान कूटने का यह स्थान बेहद पवित्र माना जाता है। इसको लांघा नहीं जाता है ऐसा करना वर्जित होता है। इसमें …

हल्द्वानी, अमृत विचार। ओखली जिसे पहाड़ी या कुमाऊंनी में ओखव कहा जाता है पहाड़ की एक खास विरासत है। पहाड़ में मौजूद हर घर के आंगन में इसे आसानी से देखा जा सकता है। धान कूटने का यह स्थान बेहद पवित्र माना जाता है। इसको लांघा नहीं जाता है ऐसा करना वर्जित होता है।

इसमें धान कूटने के अलावा मडुवा भी कूटा जाता है जिसको मडू फवण कहते हैं। कुमाऊंनी लेखक विनोद पन्त ने इस लुप्त होती विरासत पर लेख लिखा है और वे निरंतर आने वाली नई पीढ़ियों का ज्ञानवर्धन कर रहें हैं। पंत ने ओखली के उपयोग के बारे में विस्तार पूर्वक बताया है।

खैर ओखली में मुख्यत: धान,मडुवा और च्यूडे़ कूटे जाते हैं। यहां धान कूटने और मडुवा कूटने की प्रक्रिया में अंतर होता है, धान को मूसल की फव् की तरफ से कूटा जाता है ताकि उसका छिलका अलग हो सके जिसे बूस कहते हैं वहीं मडुवा या तो हल्के हाथों से या मूसल उल्टा करके कूटा जाता है। धान को दो महिलायें दोमुसई करके भी कूटती हैं दोमुसई से तात्पर्य है दो मूसलों से। इसके लिए दक्षता की जरूरत होती है जिसे महिलाए आसानी से हासिल कर लेती हैं और पहाड़ की हर गृहणी इसे करना जानती हैं।

दो मुसई करते समय दोनों महिलाएं बारी-बारी से चोट मारती हैं, इन्हीं चोटों के बीच जिनमें सेकेंडों का अन्तर होता है एक महिला पैर से थोड़े बिखर रहे चावलों को पैर से बीच में करती रहती है। इसके लिए कभी-कभी एक अन्य महिला भी सहयोग करती है। जो छोटी कूची यानी झाडु (मिनी झाडू बाफिल घास का) से चावल अन्दर को धकेलती रहती है जिसे बटोवण (बटोरना) कहते हैं। धान कूटने वाली को कूटनेर और बटोरने वाली को बटोवनेर कहते हैं।

ओखव यानि ओखली में ही च्यूड़े (पोहा या चिवड़े जैसे) भी कूटे जाते हैं जिसके लिए खुशबूदार स्वादिष्ट धान को भिगोकर फिर भूनकर कूटा जाता है। इसको एक कूटनेर कूटती है एक बटोवनेर उल्टे पण्यूल (भात या चावल निकालने की पोनी) से खोदती सी रहती है ताकि भीगे कच्चे धान आपस में चिपके नहीं और बराबर कुट जाएं।

आंगन में बने इस ओखल पर हर त्योहारों के मौके पर ऐपण भी दिये जाते हैं। ओखल खुले में या एक कमरेनुमा जगह पर भी बनते हैं जिसे ओखवसार कहते हैं। यह ओखवसार कुछ ही घरों में मिलती है। बरसात वगैरह में इसी में कूटते हैं। लोग एक दूसरे के यहां भी ओखसलार में कूटने जाते हैं। ओखलसार पर कई कहावतें भी बनी है जिसमें प्रमुख है- साज क पौंण ओखवसार बास्।

पहले के समय में गांव के लोग ओखल में भरा पानी देखकर बारिश की मात्रा का अंदाजा लगाते थे कि लेकिन वक्त के साथ अब आंगन के ओखव सुने होने लगे हैं अब कुछ ही घरों में यह पाए जाते हैं।