विटामिन ए की कमी से हो सकता है कैंसर, केजीएमयू के शोध में हुआ खुलासा

विटामिन ए की कमी से हो सकता है कैंसर, केजीएमयू के शोध में हुआ खुलासा

लखनऊ। जिन लोगों के शरीर में विटामिन ए का स्तर कम है,उन्हें कैंसर होने की संभावना अधिक है। इस बात का खुलासा केजीएमयू के डीएचआर-एमआरयू सेंटर में हुये शोध के दौरान चिकित्सकों ने किया है। इसके अलावा यहां पर एक और शोध हुआ है जिसमें कैंसर की जांच के लिए बार-बार बायोप्सी कराने की जरूरत …

लखनऊ। जिन लोगों के शरीर में विटामिन ए का स्तर कम है,उन्हें कैंसर होने की संभावना अधिक है। इस बात का खुलासा केजीएमयू के डीएचआर-एमआरयू सेंटर में हुये शोध के दौरान चिकित्सकों ने किया है। इसके अलावा यहां पर एक और शोध हुआ है जिसमें कैंसर की जांच के लिए बार-बार बायोप्सी कराने की जरूरत नहीं होगी, बल्कि खून के नमूने से भी जांच कर कैंसर के अवस्था की पहचान आसानी से की जा सकेगी। जिससे कैंसर की बीमारी से जूझ रहे मरीजों को बार-बार बायोप्सी जांच से निजात मिलेगी।

दरअसल, केजीएमयू में डीएचआर-एमआरयू सेंटर का संचालन हो रहा है। इसी सेंटर में यह दोनों शोध हुये हैं। इस सेंटर का संचालन केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। डीएचआर-एमआरयू सेंटर की नोडल अधिकारी व केजीएमयू स्थित ओरल मेक्सिलोफेसियल सर्जरी विभाग की प्रो.दिव्या मेहरोत्रा व उनकी टीम ने दोनों शोध किये हैं। बताया जा रहा है कि प्रो.दिव्या मेहरोत्रा ने मुंह के कैंसर को लेकर दोनों प्रमुख शोध किये हैं। जिससे मुंह में होने वाले कैंसर के कारण व इलाज के बारे में नई जानकारी सामने आयी है।

मार्कर के जरिए रक्त के नमूने से हो सकेगी जांच

प्रो.दिव्या मेहरोत्रा ने अपने पहले शोध बीसीएल-2 व एचएसपी 70 मार्कर पर किया है। इस शोध में 300 कैंसर व प्री-कैंसर से पीड़ित मरीजों को शामिल किया गया था,इन मरीजों के खूने के नमूनों को मार्करों पर निकाला गया,साथ ही मरीजों के कैंसर ऊतकों का मिलान किया गया। जिसके बाद यह पाया गया कि इन मार्करों के माध्यम से शरीर में कैंसर की अवस्था का पता लगाया जा सकता है। इस शोध के बाद अब मरीजों को बायोप्सी जांच से निजात मिलेगी।

विटामिन ए और उससे सम्बन्धित मार्करो के अध्ययन में 250 मरीज हुये शामिल

प्रो.दिव्या मेहरोत्रा ने अपने दूसरे शोध में यह पाया है कि यदि शरीर में बिटामिन ए की कमी है तो ऐसे लोगों में कैंसर होने की संभावना अधिक होती है। इस शोध में यह भी पता चला है कि विटामिन ए एवं उससे उत्पन्न उत्पादों का प्रयोग कैंसर निवारण में हो सकता है। इस शोध मे लगभग 250 मुंह के कैंसर से पीड़ित मरीजों को शामिल किया गया।

विटामिन ए और उससे सम्बन्धित मार्करो के अध्ययन के दौरान शोध कर्ताओं ने पाया कि जिन मरीजों में विटामिन ए को रिवर्स करने वाला एंजाइम तन्त्र नहीं होता उनके इलाज में एंटिआक्सिडेंट विटामिन का कोई अनुकूल परिणाम नहीं मिलता है।इसके अलावा जिनमें विटामिन ए की कमी होती है या एंजाइम तंत्र सुचारू रूप से कार्य नहीं करता उनमें कैंसर होने की संभावना अधिक होती है।

केजीएमयू के ओरल पैथालॉजी के हेड प्रो.शालीन चन्द्रा ने बताया कि बीते दो साल से इन दोनों शोध पर काम चल रहा था,यह शोध अभी जारी है। उन्होंने कहा कि इस शोध का मौजूदा दौर में सबसे ज्यादा फायदा मुंह व स्त्रियों के शरीर में होने वाले कैंसर की जानकारी समय रहते की जा सकेगी। उन्होंने कहा कि फिलहाल तो मुंह के कैंसर की जांच में यह शोध काफी कारगर साबित होगा। उन्होंने बताया कि बहुत से मरीज बायोप्सी कराने से डरते हैं,ऐसे मरीजों में रक्त की जांच से कैंसर की स्थित या संवेदशीलता का पता लगाया जा सकेगा।

पीले फलों में मिलता है विटामिन-ए

डीएचआर-एमआरयू सेंटर के साइंटिस्ट डॉ.राहुल पाण्डेय ने बताया कि विटामिन ए पपीता, गाजर व अन्य पीले फलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, उन्होंने बताया कि एक स्वस्थ व्यक्ति को प्रत्येक दिन 1000 से 2000 यूनिट ( अंतर्राष्ट्रीय मानक) विटामिन ए की आवश्यकता होती है,ऐसे में सभी को 100 से 200 ग्राम विटामिन ए युक्त भोजन प्रतिदिन अवश्य लेना चाहिए,जिससे शरीर में विटामिन ए की कमी ना होने पाए। उन्होंने बताया कि यदि किसी शख्स के आंखों की रोशनी अचानक से कम हो रही हो, साथ ही त्वचा में रूखापन भी आ रहा हो तो यह विटामिन ए की कमी के लक्षण हो सकते हैं।

शोध करने वाली टीम

डीएचआर-एमआरयू सेंटर की नोडल अधिकारी व केजीएमयू स्थित ओरल मेक्सिलोफेसियल सर्जरी विभाग की प्रो.दिव्या मेहरोत्रा, केजीएमयू के ओरल पैथालॉजी के हेड प्रो.शालीन चन्द्रा, डीएचआर-एमआरयू सेंटर के साइंटिस्ट डॉ.राहुल पाण्डेय, प्रो.गीता सिंह,डॉ.रूबी तथा एकता एंथोनी का योगदान इस शोध में बताया जा रहा है। बता दें कि प्रो.दिव्या मेहरोत्रा मुख के कैंसर व प्री-कैंसर के शोध की अग्रणी रिसर्चर रहीं हैं, वहीं प्रो.शालीन चन्द्रा इससे पहले कैंसर की शरीर में अवस्था व उसके निदान को लेकर कई शोध कर चुके हैं।

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