राम की शक्ति-पूजा: सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ लिखते हैं कि…

राम की शक्ति-पूजा: सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ लिखते हैं कि…

अपनी विख्यात लम्बी कविता ‘राम की शक्ति-पूजा’ में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ लिखते हैं- … राघव-लाघव – रावण – वारण – गत – युग्म – प्रहर, उद्धत – लंकापति मर्दित – कपि – दल-बल – विस्तर … यह वर्णन लंकापति रावण से पराजित होकर छावनी में उस रात वापस लौटते राम का है। वह राम जिनके …

अपनी विख्यात लम्बी कविता ‘राम की शक्ति-पूजा’ में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ लिखते हैं-
… राघव-लाघव – रावण – वारण – गत – युग्म – प्रहर,
उद्धत – लंकापति मर्दित – कपि – दल-बल – विस्तर …

यह वर्णन लंकापति रावण से पराजित होकर छावनी में उस रात वापस लौटते राम का है। वह राम जिनके लिए निराला ‘राघव-लाघव’ का प्रयोग करते हैं , अर्थात् वे राघव जो अपने लाघव ( फुर्तीलेपन ) से अपने प्रतिद्वन्दी से पिछले दो ( युग्म ) प्रहारों तक जूझते रहे हैं। लेकिन रावण फिर भी रावण है , वह राघव के हर लाघव का वारण कर देता है। लेकिन ठहरिए ज़रा!

‘वारण’ क्या होता है ?
‘वारण’ कहते हैं टालने , हटाने या नष्ट करने की क्रिया को , इसी में जब ‘नि’ जुड़ जाता है और यह शब्द और शक्तिमान् हो जाता है। ‘वारण’ में किसी को हटाना या टालना है , जब वह ‘निवारण’ बन जाता है तो इसमें और एम्फ़ैसिस का भाव आ जाता है। रोग का निवारण होता है , समस्या का निवारण होता है।

जिसका निवारण किया जाए या जो निवारण के योग्य हो , वह हुआ ‘निवार्य’। ‘निवार्य’ is something / someone worth a removal . फिर इसी के पहले ‘अ’ लगाइए जिसका मतलब होता है ‘without’ या बिना। इस तरह से आप पहुँचे अपने परिचित शब्द ‘अनिवार्य’ तक , जो ‘निवार्य’ का विलोम यानी उलटा है। ‘अनिवार्य’ को टाला या हटाया नहीं जा सकता , निवार्य को टाला या हटाया जा सकता है।

अब इसी से आगे बढ़ेंगे तो आपको ‘वारना’ मिलेगा , जो ‘वारण’ का तद्भव रूप है। आप जब किसी पर अपने दिल को वारते हैं , तो उस दिल को और अपनी पहचान को उसके लिए नष्ट नहीं कर देते ? स्वयं को किसी के लिए नष्ट करना , अपना वजूद या पहचान मिटाना ही वह ‘वारण’ है , जो निराला राम की शक्तिपूजा में आपको अलग रूप में दिखता है और आमिर ख़ान की फ़िल्म ‘मंगल पांडे’ के गाने ‘तुम्हारी अदाओं पे मैं वारी-वारी’ में सर्वथा भिन्न रूप में।

लीजिए आप निरालाजी की डराने वाली कविता से रानी मुखर्जी के उस नृत्य तक आ गये , जो आप अक़्सर टीवी पर देखा करते हैं ।
हिन्दी या कोई भी भाषा कठिन नहीं है , हमारी सोच कमज़ोर है और मज़बूती के लिए की जाने वाली मेहनत से हम भागते हैं।
पुनश्च।

प्रस्तुति: स्कन्द शुक्ल

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