रामपुर : अब न चुनाव की चकल्लस है, न चाय की चुस्कियां
सुहेल जैदी/अमृत विचार। शहर के बाजार नसरुल्लाह खां की तुलना दिल्ली के चांदनी चौक से करना अतिश्योक्ति नहीं होगा। चांदनी चौक की तर्ज पर यहां के होटलों से उठती तरह-तरह के रामपुरी जायकों के खानों की महक और फलों की दुकानें बाजार नसरुल्लाह खां की पहचान हैं। एक दौर था, जब चुनावी मौसम आते ही …
सुहेल जैदी/अमृत विचार। शहर के बाजार नसरुल्लाह खां की तुलना दिल्ली के चांदनी चौक से करना अतिश्योक्ति नहीं होगा। चांदनी चौक की तर्ज पर यहां के होटलों से उठती तरह-तरह के रामपुरी जायकों के खानों की महक और फलों की दुकानें बाजार नसरुल्लाह खां की पहचान हैं। एक दौर था, जब चुनावी मौसम आते ही चाकू बाजार के पटरों से बाजार नसरुल्लाह खां तक पूरी-पूरी रात हर खासोआम के बीच चुनावी चर्चाएं होती थीं और यहां से ही तमाम प्रत्याशियों का टैंपो बनता था। लेकिन, कोरोना के कारण इस बार रात 10 बजे बाजार बंद होने के कारण सर्दी के मौसम की तरह सब कुछ ठंडा है।
चुनावी रणभेरी बजने के बाद से इस बाजार में प्रत्याशियों की हार-जीत का गणित लगना शुरू हो जाता था। चुनावी किस्से तड़के तक चलते थे। चाकू बाजार के पटरों पर नामचीन अखबारों के प्रतिनिधि, कुछ अखबारों के संपादक, डिग्री कॉलेजों के प्रोफेसर, राजनैतिक पंडितों का अलग जमावड़ा रहता था। इससे इतर युवाओं का जमावड़ा अलग रहता था। इसके अलावा बीड़ी वाले, रिक्शा वाले भी इस चुनावी शोर में शामिल रहते थे। रात को निकलने वाले प्रत्याशी भी यहां जरूर रुकते थे और मौजूद लोगों से कुछ देर बात करके ही आगे बढ़ते थे। चुनावी पंडित प्रत्याशियों के मुंह पर दो टूक बता दिया करते थे कि आप चुनाव जीत गए और चुनाव हारने वालों को बता दिया जाता था कि आप तो चुनाव हार रहे हैं। प्रत्याशी कहां कमजोर हैं और कहां मेहनत की जरूरत है, यह भी उन्हें बता दिया जाता था।
देर रात तक खुलते थे चाय और खाने के होटल
इस बाजार में चाय और खाने के होटल देर रात तक खुलते थे। चाय के होटलों पर भी लोगों की भीड़ रहती थी और अखबारों में छपी खबरों के अलावा रेडियो पर आने वाली खबरों पर भी तबसरा होता था, जो देर रात तक चलता था। स्थानीय स्तर के अलावा देश-दुनिया की राजनीति पर भी चर्चा होती थी।
कोरोना के कारण है सूनापन
कोरोना और आयोग की टेढ़ी नजर के कारण बाजार नसरुल्लाह खां में सूनापन है। रात 10 बजे जैसे ही कोतवाली की हूटर बजाती हुई पुलिस की गाड़ी गुजरती है, दुकानदार जल्दी-जल्दी दुकानें में बंद करने में जुट जाते हैं।