बीते 75 सालों में केवल अधिकारों की बात हुई, कर्तव्यों की नहीं : प्रधानमंत्री मोदी
लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि आजादी के बाद के 75 वर्षों में केवल अधिकारों की बात हुई है, कर्तव्यों की नहीं। उन्होंने कर्तव्यों के बजाय केवल अधिकारों की बात करने को देश के लिए घातक बताया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रही भारतीय संस्थाओं से आग्रह किया …
लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि आजादी के बाद के 75 वर्षों में केवल अधिकारों की बात हुई है, कर्तव्यों की नहीं। उन्होंने कर्तव्यों के बजाय केवल अधिकारों की बात करने को देश के लिए घातक बताया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रही भारतीय संस्थाओं से आग्रह किया कि वह भारत की छवि को धूमिल करने के वैश्विक स्तर पर हो रहे षड़यंत्रों का मुकाबला करते हुए देश की सही छवि दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करें।
ब्रह्मकुमारी संस्था के ‘आजादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर’ कार्यक्रम में गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअली शामिल हुये। इस मौके पर राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर स्थित ब्रह्मकुमारी संस्था में प्रदेश के कानून मंत्री बृजेश पाठक और लखनऊ की महापौर संयुक्ता भाटिया भी शामिल हुई। प्रधानमंत्री कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुये कहा कि हमारे समाज और राष्ट्र में एक बुराई सबके भीतर घर कर गई है। ये बुराई है, अपने कर्तव्यों से विमुख होना, अपने कर्तव्यों को सर्वाेपरि ना रखना।
उन्होंने कहा कि अब तक हमने सिर्फ अधिकारों की बात की, अधिकारों के लिए झगड़े, जूझे, समय खपाते रहे। उन्होंने कहा कि अधिकार की बात, कुछ हद तक, किसी एक परिस्थिति में सही हो सकती है लेकिन अपने कर्तव्यों को पूरी तरह भूल जाना, इसने भारत को कमजोर रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि देश के नागरिकों में कर्तव्य भावना का विस्तार एक मूल मंत्र है। प्रधानमंत्री ने देश के प्रत्येक नागरिक से अपने दिल में कर्तव्य का दीया जलाने का आह्वान करते हुए कहा कि हम सभी मिलकर देश को आगे बढ़ाएंगे जिससे समाज में व्याप्त बुराइयां भी दूर होंगी और देश नई ऊंचाईयों को छूयेगा। उन्होंने कहा कि हम ऐसी व्यवस्था बना रहे हैं जहां भेदभाव के बजाय समानता हो।
उन्होंने कहा कि भारत की छवि को धूमिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग प्रयास चलते रहते हैं। हम इसे सिर्फ राजनीति कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते, ये हमारे देश का सवाल है। ब्रह्मकुमारी जैसी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रही भारतीय संस्थाओं को भारत के बारे में फैल रही अफवाहों की सच्चाई उन्हें बताकर अपना कर्तव्य निभाना चाहिये।
इससे पहले प्रधानमंत्री ने ब्रह्म कुमारी संस्था द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव को समर्पित साल भर चलने वाली पहलों का वर्चुअली अनावरण किया। जिसमें 30 से अधिक अभियान, 15,000 से अधिक कार्यक्रम और आयोजन शामिल हैं। प्रधानमंत्री ने ब्रह्मकुमारी की सात पहलों को हरी झंडी दिखाई। इन पहलों में ‘मेरा भारत स्वस्थ भारत’ आत्म निर्भर भारत-आत्मनिर्भर किसान, महिलायेंः भारत की ध्वजवाहक, शांति बस अभियान की शक्ति, अनदेखा भारत साइकिल रैली, यूनाइटेड इंडिया मोटर बाइक अभियान और स्वच्छ भारत अभियान के तहत हरित पहल शामिल हैं।
गुलामी के दौर में जो गंवाया, अगले 25 वर्ष परिश्रम से वापस लाने का
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह समय सोते हुए सपने देखने का नहीं बल्कि जागृत होकर अपने संकल्प पूरे करने का है। आने वाले 25 साल, परिश्रम की पराकाष्ठा, त्याग, तप-तपस्या के 25 वर्ष हैं। सैकड़ों वर्षों की गुलामी में हमारे समाज ने जो गंवाया है, ये 25 वर्ष का कालखंड, उसे दोबारा प्राप्त करने का है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की प्रगति में ही हमारी प्रगति है। हमसे ही राष्ट्र का और राष्ट्र से हमारा अस्तित्व है। आज देश जो कुछ कर रहा है उसमें ‘सबका प्रयास’ शामिल है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हम एक ऐसे भारत को उभरते देख रहे हैं, जिसकी सोच और अप्रोच नई है, और जिसके निर्णय प्रगतिशील हैं।
जब दुनिया अंधकार में भी तब भी भारत में होती थी मातृशक्ति की पूजा
प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया जब अंधकार के गहरे दौर में थी, महिलाओं को लेकर पुरानी सोच में जकड़ी थी, तब भारत मातृशक्ति की पूजा, देवी के रूप में करता था। हमारे यहां गार्गी, मैत्रेयी, अनुसूया, अरुंधति और मदालसा जैसी विदुषियां समाज को ज्ञान देती थीं। कठिनाइयों से भरे मध्यकाल में भी इस देश में पन्नाधाय और मीराबाई जैसी महान नारियां हुईं। अमृत महोत्सव में देश जिस स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को याद कर रहा है, उसमें भी कितनी ही महिलाओं ने अपने बलिदान दिये हैं। कित्तूर की रानी चेनम्मा, मतंगिनी हाजरा, रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना झलकारी बाई से लेकर सामाजिक क्षेत्र में अहिल्याबाई होल्कर और सावित्रीबाई फुले तक, इन देवियों ने भारत की पहचान बनाए रखी।
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