अयोध्या : चिकित्सक ही बैठा रहे जन औषधि केंद्रों का भट्ठा

अयोध्या : चिकित्सक ही बैठा रहे जन औषधि केंद्रों का भट्ठा

जिला चिकित्सालय के चिकित्सक नहीं लिखते फॉर्मूला, बाजारों से दवा लेने को मजबूर हैं मरीज अयोध्या। लोगों को सस्ती व जेनरिक दवाएं उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी जन औषधि केंद्र योजना जिन डॉक्टरों के भरोसे शुरू की गई थी, अब वही इसका भट्ठा बैठाने में जुट गए हैं। यही कारण है कि …

  • जिला चिकित्सालय के चिकित्सक नहीं लिखते फॉर्मूला, बाजारों से दवा लेने को मजबूर हैं मरीज

अयोध्या। लोगों को सस्ती व जेनरिक दवाएं उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी जन औषधि केंद्र योजना जिन डॉक्टरों के भरोसे शुरू की गई थी, अब वही इसका भट्ठा बैठाने में जुट गए हैं। यही कारण है कि जिला चिकित्सालयों में मौजूद जन औषधि केंद्र बीते चार सालों में अभी तक रफ्तार नहीं पकड़ सके हैं।

जिला अस्पताल स्थित जन औषधि केंद्र के संचालक शुभम सिंह का कहना है कि जिला अस्पताल के डॉक्टर जेनरिक दवाइयों का फॉर्मूला न लिखकर ब्रांडेड दवाइयां लिखते हैं, जिस कारण मरीज बाहर से दवाइयां लेते हैं। उनका कहना है कि पहले दवाओं की उपलब्धता की समस्या थी, लेकिन अब यह समस्या नहीं हैं।

जन औषधि केंद्र पर मेडिकल से संबंधित नियमित उपयोग होने वाली 300 से 400 दवाओं के अलावा सर्जिकल से संबंधित उपकरण भी उपलब्ध रहते हैं। औषधि केंद्र श्रीराम चिकित्सालय अयोध्या और मेडिकल कॉलेज में भी हैं। जिला अस्पताल प्रशासन का कहना है कि जन औषधि केंद्र पर जो दवाएं लिखी जाती हैं वह उपलब्ध नहीं रहती है, पहले इसकी उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाए।

बाजारों से 60 से 80 प्रतिशत तक सस्ती मिलती हैं दवाएं

जन औषधि केंद्र पर बाजारों की अपेक्षा दवाएं 60 से 80 प्रतिशत तक सस्ती रहती हैं। यदि डॉक्टर मरीजों को जन औषधि केंद्र की दवाओं के लिए प्रेरित करेंगे तो केंद्र सरकार की यह योजना आम जनमानस को राहत दिलाने में सहायक होगी।

फॉर्मूला लिखने का है प्रावधान

जिला चिकित्सालय के सीएमएस डॉ. सीबीएन त्रिपाठी का कहना है कि जेनरिक दवाओं का फॉर्मूला लिखने का प्रावधान है, लेकिन लिखने का चलन नहीं है। उनका कहना है कि फॉर्मूला को फार्मासिस्ट समझ नहीं पाते हैं, इसलिए सेमी सॉल्ट लिखा जाता है। उनका कहना है कि लोगों में जागरुकता की कमी के कारण ऐसी समस्याएं आ रही है, जिनको दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।

क्या होती हैं जेनरिक दवाएं

केंद्र सरकार की ओर से 2008 में शुरू की गई यह योजना जेनरिक दवाओं को बढ़ावा देने के लिए है, लेकिन लोग जेनरिक और ब्रांडेड दवाओं में अंतर नहीं समझ पाते हैं। जेनरिक दवाएं जिन फॉर्मूूले से बनी होती है, उसी फॉर्मूले के नाम से जानी जाती हैं। जैसे दर्द और बुखार में काम आने वाली पैरासिटामॉल फॉर्मूले को इसी नाम से बेचा जाए तो जेनरिक दवाएं कहलाएंगी।

इस सम्बन्ध में जिला चिकित्सालय के सीएमएस डॉ. सीबीएन त्रिपाठी के मुताबिक, डॉक्टरों को बाहर की दवाएं न लिखकर और सिर्फ फॉर्मूला लिखने का निर्देश दिया गया है, जेनरिक दवाओं को बढ़ावा देने के लिए डॉक्टरों को फॉर्मूला लिखने के लिए फिर से कहा जाएगा।

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