बरेली: पेड़ों को बचाने के लिए कानूनविदों की ली राय, कई अदालतों के आदेश देखे

बरेली: पेड़ों को बचाने के लिए कानूनविदों की ली राय, कई अदालतों के आदेश देखे

बरेली, अमृत विचार। रोडवेज बस अड्डा के लिए प्रस्तावित भूमि से हरे सागौन के पेड़ों को काटे जाने से रोकने और शेष पेड़ों को ट्रांसलोकेट कराने के लिए मुहिम चला रहे पर्यावरण प्रेमी और सजग हो गए हैं। वन विभाग और प्रशासनिक अफसरों से बातचीत के बाद पर्यावरण प्रेमियों ने कानूनविदों से राय लेनी शुरू …

बरेली, अमृत विचार। रोडवेज बस अड्डा के लिए प्रस्तावित भूमि से हरे सागौन के पेड़ों को काटे जाने से रोकने और शेष पेड़ों को ट्रांसलोकेट कराने के लिए मुहिम चला रहे पर्यावरण प्रेमी और सजग हो गए हैं। वन विभाग और प्रशासनिक अफसरों से बातचीत के बाद पर्यावरण प्रेमियों ने कानूनविदों से राय लेनी शुरू कर दी है कि कानून में पेड़ों को बचाने के लिए क्या एक्ट बना है और हरे पेड़ों को काटने वालों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की जा सकती है।

सोशल मीडिया पर बरेली में सैकड़ों की संख्या में हरे पेड़ों को कटवाने का मामला जब उछला तो तमाम लोग मुहिम में जुड़े। कई ऐसे भी हैं जो कानून के जानकार हैं। उन लोगों ने कुछ मामलों में पूर्व में अदालतों के आदेशों की कॉपी भी शेयर की ताकि पेड़ों को बचाने की मुहिम में कोर्ट के आदेशों का लाभ लिया जा सके।

बरेली कॉलेज के विधि विभागाध्यक्ष डा. प्रदीप कुमार, कवि राहुल अवस्थी समेत अन्य की मुहिम से कानून की पढ़ाई करने वाले छात्र भी जुड़ना शुरू हो गए हैं। छह पर्यावरण प्रेमियों से शुरू हुई मुहिम में आज सौ से अधिक लोग जुड़ चुके हैं। बताते हैं कि डा. प्रदीप कुमार पूरे मामले का कानूनी हल निकालने की कोशिश में लगे हैं इसलिए विधि के छात्रों को भी जोड़ा है। इसमें उनके कई पूर्व छात्र भी शामिल हैं।

मिनी बाईपास स्थित भूमि से हरे पेड़ों को काटने की कार्रवाई नहीं रुकी और शेष पेड़ों को ट्रांसलोकेट नहीं कराया गया तो कानूनी लड़ाई लड़ने के बारे में भी पर्यावरण प्रेमी विचार कर सकते हैं। मामले में शहर के कई वकीलों से भी मदद मांगने की बात सामने आयी है। क्योंकि जिलाधिकारी से बातचीत होने के बाद अभी तक शेष पेड़ों के ट्रांसलोकेट करने को लेकर कोई योजना बनती नहीं दिख रही।

पर्यावरण प्रेमियों की यह मुहिम सिर्फ मिनी बाईपास की भूमि के पेड़ों को ही बचाने तक सीमित नहीं बल्कि अन्य स्थानों पर विकास की राह में आ रहे पेड़ों को भी बचाना मकसद है। पर्यावरण प्रेमी चाहते हैं कि अब तो प्रोजेक्ट पास हों तो उनमें यह शर्त रखी जाए कि पेड़ों को काटा नहीं जाएगा है।

दिल्ली में पेड़ को बचाने के लिए 1994 में बना था कानून
कानूनी जानकार बताते हैं कि राजधानी दिल्ली में पेड़ को बचाने के लिए 1994 में एक कानून बनाया गया था जिसे दिल्ली प्रिजर्वेशन ऑफ ट्रीज एक्ट 1994 का नाम दिया गया। उक्त एक्ट के तहत एक कंपिटेंट अथॉरिटी का गठन किया हुआ था। जिसमें एक अधिकारी होता है जिसे ट्री ऑफिसर कहते हैं। फॉरेस्ट ऑफिसर ही यह ट्री ऑफिसर का काम देखता है।

डोहरा रोड पर विधि छात्रों ने की जांच, ट्रांसलोकेट होते मिले पेड़
पर्यावरण प्रेमियों को सूचना मिली कि डोहरा रोड पर भी पेड़ों को काटा जा रहा है। इस पर बरेली कॉलेज के विधि छात्र सुरेश चौरसिया और निखिलेश पांडेय गुरुवार को दिन में मौके पर पहुंचे लेकिन वहां उन्हें पेड़ ट्रांसलोकेट करने की कार्रवाई मिली। कई पेड़ों की जड़ों के पास दवायुक्त कट्टे बंधे थे।

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