दिनेशपुर क्षेत्र के किसानों की हालत दयनीय, किसानों ने अपनाया बेमौसमी धान मढ़ाई का नया तरीका

दिनेशपुर क्षेत्र के किसानों की हालत दयनीय, किसानों ने अपनाया बेमौसमी धान मढ़ाई का नया तरीका

केवल चंद्र पाठक, दिनेशपुर। भारत को कृषि प्रधान देश के नाम से जाना जाता है। देश आजाद हुए 74 वर्ष के बीच कई सरकारें आयी और गई, लेकिन किसानों की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। विगत दो वर्षों से शासन-प्रशासन की उपेक्षा के चलते क्षेत्र के किसानों की हालत दयनीय होती जा रही …

केवल चंद्र पाठक, दिनेशपुर। भारत को कृषि प्रधान देश के नाम से जाना जाता है। देश आजाद हुए 74 वर्ष के बीच कई सरकारें आयी और गई, लेकिन किसानों की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। विगत दो वर्षों से शासन-प्रशासन की उपेक्षा के चलते क्षेत्र के किसानों की हालत दयनीय होती जा रही है।

प्रदेश के तराई क्षेत्र के किसान एक दशक पूर्व से बेमौसम धान की प्रचुर मात्रा में खेती कर रहे हैं। छोटी जोत का प्रगतिशील किसान वर्ष में दो बार धान की खेती वैज्ञानिक ढंग से करता आ रहा है। सिडकुल की स्थापना के बाद मजदूरों की कमी के साथ मजदूरी बढ़ने से किसान बरसात के मौसम में चैन से चलने वाली कंबाइन मशीन का सहारा लेकर वेमौसमी धान की फसल की मढाई कर रहा है। तीन माह में तैयार होने वाली तैयार होने फसल बेमौसमी धान का बीज पश्चिमी बंगाल व अन्य प्रदेशों से मंगाकर पौध तैयार करते हैं, जिसमें साकेत , पंत – 11, सर्बती, 112 , 1509, नूरी, गोविंदा आदि है।

क्षेत्र का किसान माह अप्रैल में गेहूं की फसल माढने के बाद धान की रोपाई करता हैं। जो 90 दिन के अंदर तैयार हो जाती है। सरकार द्वारा वेमौसमी धानो का समर्थन मूल्य निर्धारण न करने पर तराई के किसानों को अपनी फसल ओने- पोने दामों में दलालों व आढतियो को बेचने को मजबूर होना पड़ता है। किसानों को फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है। इधर सरकार द्वारा बीज, कृषि दवा, उर्वरकों व डीजल के दामों में आए दिन बढ़ोतरी होने से किसान कर्ज में दबता जा रहा है। किसान को तैयार धान की फसल काटने के लिए वर्षा के मौसम में कर्नाटका व उड़ीसा से चैन द्वारा चलने वाली कंबाइन मशीन मंगाकर मढाई की जा रही है।

किसानों को ₹3500 प्रति घंटा के हिसाब से मढाई का भुगतान देना पड़ रहा है। बीते दो वर्षों से कोविड-19 महामारी के चलते किसानों को फसल का लागत मूल्य न मिलने से किसान बैंक, सहकारी समिति, आढियो ऋण से दबता जा रहा है। किसान कृषि कार्य के लिए ऋण में लगे ब्याज पर ब्याज देने पर मजबूर हैं। क्षेत्र के कई किसान दिवालिया होने की कगार पर है। उत्तराखंड राज्य गठन के 21 वर्ष बाद भी किसानों की हालत दयनीय बनी हुई हैं। क्षेत्र में लंबे समय से कृषि मंडी की किसानों द्वारा मांग की जा रही है। इस बीच किसी सरकार ने भी किसानों की समस्याओं के निदान पर कोई ध्यान नहीं दिया।