बरेली: 28 साल में दोगुनी हो गयी जनसंख्या, घटता गया वनभूमि का क्षेत्रफल

बरेली, अमृत विचार। बात 27-28 साल पुरानी है। तब बरेली जनपद की आबादी भी करीब 25.34 लाख थी। उस वक्त जनपद के कुल क्षेत्रफल के सापेक्ष .055 प्रतिशत वनभूमि थी। हरे-भरे बाग नजर आते थे। जंगल भी हुआ करते थे। न ही वर्तमान स्थिति की तरह पर्यावरण को नुकसान पहुंचता था। धीरे-धीरे जनसंख्या बढ़ती गयी …
बरेली, अमृत विचार। बात 27-28 साल पुरानी है। तब बरेली जनपद की आबादी भी करीब 25.34 लाख थी। उस वक्त जनपद के कुल क्षेत्रफल के सापेक्ष .055 प्रतिशत वनभूमि थी। हरे-भरे बाग नजर आते थे। जंगल भी हुआ करते थे। न ही वर्तमान स्थिति की तरह पर्यावरण को नुकसान पहुंचता था। धीरे-धीरे जनसंख्या बढ़ती गयी लेकिन पर्यावरण के प्रति लोगों की सोच में बदलाव नहीं हुआ। इसका असर यहा पड़ा कि वनभूमि घटती चली गयी।
विकास की चकाचौंध में जनपद में हरे पेड़ों पर आरे भी खूब चलते रहे। उसी का परिणाम है कि .055 प्रतिशत क्षेत्रफल की वनभूमि अब 0.001 प्रतिशत रह गयी। 2011 में हुई जनगणना के अनुसार करीब 44 लाख से बढ़कर जनपद की जनसंख्या वर्तमान में 50 लाख के करीब पहुंच गयी है। विकास कराने के लिए तेजी से पेड़ों को कटवाने की अधिकारियों की सोच ग्लोबल वार्मिंग की तरफ धकेल रही है।
शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर एयरपोर्ट के पास मयूर वन चेतना केंद्र में वन विभाग के बरेली वृत की ओर से एक बोर्ड केंद्र के उद्घाटन के समय लगाया गया था। झाड़ियों से घिरे बोर्ड को गौर से देखने पर मालूम हुआ कि उसमें बरेली वृत्त के बरेली, शाहजहांपुर, बदायूं व पीलीभीत जनपद की जनसंख्या, क्षेत्रफल हेक्टेयर, वनों के तहत क्षेत्रफल (हेक्टेयर), ऊसर और खेती के अयोग्य भूमि, बाढ़ एवं वर्षा से प्रभावित क्षेत्रफल और जनपद के कुल क्षेत्रफल के सापेक्ष वनभूमि का प्रतिशत के आंकड़े दर्ज हैं।

हरे बैकग्राउंड के बोर्ड में सफेद कलर से लिखे गए आंकड़े अब धुंधले भी दिख रहे हैं। बरेली जनपद की बात करें तो 25.34 लाख जनसंख्या, 41200 हेक्टेयर क्षेत्रफल, 225.07 हेक्टेयर वनों का क्षेत्रफल, ऊसर-खेती के अयोग्य भूमि 11714 हेक्टेयर, बाढ़ एवं वर्षा से प्रभावित 24000 हेक्टेयर भूमि और क्षेत्रफल के सापेक्ष 0.055 प्रतिशत वन भूमि थी।
मयूर वन की आज तक चाहरदीवारी नहीं बनवा सके अधिकारी
28 साल पहले पिकनिक स्पॉट की तरह विकसित किए गए शहर के इकलौते मयूर वन चेतना केंद्र की आज तक वन विभाग के अधिकारी चाहरदीवारी नहीं बनवा सके। इसकी सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। केंद्र रात में अराजक तत्वों के ठहरने का अड्डा बनता है। इससे भी इंकार नहीं कर सकते हैं। चारों तरफ से सिर्फ तार बंधा हुआ है।
बर्बाद हालत में पहुंचे केंद्र में युगल ही आते हैं घूमने
वन विभाग के अधिकारियों की अनदेखी और लालच में मयूर वन चेतना केंद्र बर्बाद होता चला गया। नौकायान, फाउंटेशन, झूले सब बंद हो गए। चारों ओर झाड़ियों से घिरे केंद्र में अब ऐसा कुछ नहीं जिसे देखने के लिए लोग फेमिली के साथ जाएं। हर साल वन विभाग चार से पांच लाख रुपए में ठेके पर उठाता आ रहा है। मौजूदा स्थिति में केंद्र बदहाल है। वहां सिर्फ युगल ही जाते हैं। सौ रुपए शुल्क लेकर घंटों युगल केंद्र में बैठता है।
मयूर वन के सौंदर्यीकरण की कार्ययोजना पर चल रहा विचार
रुहेलखंड जोन के मुख्य वन संरक्षण ललित कुमार वर्मा भी मानते हैं कि केंद्र की हालत ठीक नहीं है। इसलिए जब उनसे बात की गयी तब बताया कि मयूर वन चेतना केंद्र के सौंदर्यीकरण को लेकर कार्ययोजना बनाने पर कंजरवेटर से बात हुई है। जल्द केंद्र में साफ-सफाई कराने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए जाएंगे।