जल संरक्षण जरूरी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महीने के अंतिम रविवार को मन की बात की। इस वक्त देश जिन हालात से गुजर रहा है, उनमें कई सारे मुद्दों पर जनता देश का मुखिया होने के नाते प्रधानमंत्री से उनका पक्ष, उनकी राय जानना चाहती है। कार्यक्रम के प्रस्तोताओं की भी कोशिश रहती है कि इसे जनता के …

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महीने के अंतिम रविवार को मन की बात की। इस वक्त देश जिन हालात से गुजर रहा है, उनमें कई सारे मुद्दों पर जनता देश का मुखिया होने के नाते प्रधानमंत्री से उनका पक्ष, उनकी राय जानना चाहती है। कार्यक्रम के प्रस्तोताओं की भी कोशिश रहती है कि इसे जनता के कार्यक्रम की तरह पेश किया जाए। प्रधानमंत्री ने इस बार मन की बात कार्यक्रम को जन की बात बनाने के लिए लोगों से भी सवाल किए। आकाशवाणी पर 3 अक्टूबर 2014 को ‘मन की बात’ कार्यक्रम की शुरूआत हुई थी। तब से इसके प्रसारण का सिलसिला जारी है।

कार्यक्रम में हर बार अलग-अलग विषयों पर बात करने वाले पीएम ने इस बार जल संरक्षण का विशेष रुप से संदेश दिया। वास्तव में जल संरक्षण हम सब की नैतिक जिम्मेदारी है। अपने व अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए जल संरक्षण बहुत ज़रूरी है। हम सब को मिलकर पूरे संकल्प के साथ इस दिशा में कदम उठाने होंगे, तभी हमारा कल सुरक्षित हो पाएगा। देश में आगामी जल संरक्षण दिवस से सौ दिन का विशेष जागरुकता अभियान चलाया जाना इस दिशा में महत्वपूर्ण कहा जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोविड-19 रोधी टीका लगवाने में लोगों की हिचकिचाहट के बारे में बात की। कहा कि अफवाहों पर ध्यान नहीं दें, विज्ञान और हमारे वैज्ञानिकों पर भरोसा करें। पूरे देश में 31 करोड़ से अधिक लोगों ने कोरोना का टीका लगवाया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें यह नहीं समझना है कि कोरोना महामारी खत्म हो गई है। यह वायरस अपना स्वरूप बदलता है, इसलिए इससे बचाव के लिए कोरोना संबंधी सभी प्रोटोकॉल का पालन करना और टीका लगवाना ही उपाय है।

खास बात है कि कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई अभी जारी है। देश के सुदूर ग्रामीण तथा आदिवासी इलाकों में महामारी से निपटने के लिए लोगों ने जिस सूझबूझ का परिचय दिया है, वह आने वाले समय में दुनिया के लिए अध्ययन का विषय बनेगा। ऐसे ही हमें वैक्सीनेशन अभियान में भी करते रहना है। उन्होंने तारीफ करते हुए कहा कि ग्रामीणों ने खुद को संभाला, औरों को भी संभाला लेकिन और अच्छा होता, अगर वे उन लोगों को भी खरी-खरी सुना देते, जो उस वक्त लोगों को गुमराह कर रहे थे। मुनाफाखोर, जमाखोर और कालाबाजारी करने वाले लोगों की परेशानी का फायदा उठाने से बाज नहीं आ रहे थे।