जागेश्वर धाम: जहां जागृत रूप में विद्यमान हैं भगवान शिव

जागेश्वर धाम: जहां जागृत रूप में विद्यमान हैं भगवान शिव

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा। देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जिनका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। इन धार्मिक स्थलों पर हिंदू श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है। यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भगवान शिव के भक्त पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं। ऐसे ही धार्मिक स्थलों में शुमार है, अल्मोड़ा का जागेश्वर …

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा। देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जिनका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। इन धार्मिक स्थलों पर हिंदू श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है। यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भगवान शिव के भक्त पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं। ऐसे ही धार्मिक स्थलों में शुमार है, अल्मोड़ा का जागेश्वर धाम। देवदार के घने जंगलों और प्रकृति की शांत और सुरम्य वादी में स्थित में यह धाम जहां मन को सुकून देता है। वहीं मन से मन्नत मांगने वाले हर व्यक्ति की इच्छा भी यहां पूरी होती है। भगवान शिव की तपोस्थली रहा यह धाम भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंग में से एक है।

जागेश्वर धाम उत्तर भारत के प्रमुख शिव मंदिरों में एक है। मान्यता है कि यहां भगवान शिव जागृत रूप में विद्यमान हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा यहीं से शुरू हुई। अल्मोड़ा से 38 किमी दूर देवदार के घने जंगलों के बीच यह धाम प्राचीन कैलाश मानसरोवर मार्ग पर स्थित है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव जागेश्वर के निकट दंडेश्वर मंदिर में तपस्या में लीन थे। इसी बीच सप्तऋषियों की पत्नियां वहां पहुंच गई और भगवान शिव के दिगंबर रूप पर मोहित होकर वहीं मूर्छित हो गईं। सप्तऋषि उनकी खोज में यहां पहुंचे तो उन्होंने भगवान शिव को पहचाने बगैर उन्हें लिंग पतन का श्राप दे दिया, जिससे पूरे ब्रह्मांड में उथल-पुथल मच गई। बाद में सभी देवताओं ने भगवान शिव को किसी तरह मनाया और जागेश्वर धाम में उनके लिंग की स्थापना की गई। मान्यता है कि तभी से भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा अर्चना शुरू हुई। यहां स्थापित शिव लिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। इस धाम का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी मिलता है। जागेश्वर धाम में भगवान शिव की पूजा बाल या तरुण रूप में भी की जाती है।

संतान के लिए अखंड व्रत करती हैं महिलाएं
जागेश्वर धाम में कड़ी तपस्या करने मात्र से ही निसंतान महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है। धाम में शिवरात्रि के मौके पर महामृत्युंजय मंदिर में आयोजित होने वाले विशेष पूजा अर्चना के बारे में मान्यता है कि निसंतान महिलाओं की ओर से यहां की जाने वाली तपस्या का फल उन्हें जरूर मिलता है।

शिवरात्रि के दिन तपस्या कर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने वाली महिलाओं को शिवरात्रि के दिन उपवास रखना होता है। जिसके बाद ब्रह्मकुंड में स्नान और शाम की पूजा के बाद महिलाएं हाथ में गोबर और उसके ऊपर दीया रखकर रातभर खड़े रहकर भगवान भोले की आराधना करती हैं। अगले दिन सुबह पूजा अर्चना के बाद पुजारी महिला के हाथ से दीए को उतारते हैं। जिसके बाद पुन: ब्रह्मकुंड में स्नान के बाद महिलाओं को मंदिर में साठी के चावल से शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा करनी पड़ती है। इस प्रक्रिया में महिलाओं को दिए में एक सुपारी, स्वर्ण प्रतिमा व पिछौड़े में नारियल बांधना होता है। माना जाता है कि इस तरह पूजा-अर्चना करने के एक साल बाद महिलाओं को संतान की प्राप्ति हो जाती है।

जागेश्वर धाम में 125 मंदिरों की है श्रृंखला
यूं तो जागेश्वर में छोटे बड़े करीब ढाई सौ से अधिक मंदिर हैं, लेकिन जागेश्वर धाम मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों के निर्माण के बारे में कोई लिखित इतिहास नहीं है। इन मंदिरों की वास्तुकला और शैली को देखकर इन्हें सातवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की मानें तो यहां कुछ मंदिर गुप्तकाल के और कुछ मंदिर अन्य शताब्दियों में निर्मित हैं। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था। जिसके लिए उन्होंने देवताओं को यहां आमंत्रित किया था। बाद में उन्हीं ने यहां इन मंदिरों की स्थापना की। लेकिन ऐसा भी माना जाता है कि जगतगुरु आदि शंकराचार्य केदारनाथ प्रस्थान करने से पहले यहां रूके थे और उन्होंने भी यहां कई मंदिरों का निर्माण कराया।

नागर शैली में बने हैं मंदिर समूह
जागेश्वर धाम में बने मंदिर समूह नागर शैली में बने हुए हैं। यहां बने मंदिरों की विशेषता है कि इनके शिखर में लकड़ी का बिजौरा (छत्र) बना हुआ है। जो बारिश और हिमपात के दौरान मंदिरों की सुरक्षा करता है। सभी मंदिर बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित हैं। मंदिर के पास ही जटागंगा नदी बहती है। जागनाथ मंदिर में भैरव को द्वारपाल के रूप में अंकित किया गया है। यह धाम लकुलीश संप्रदाय का भी प्रमुख केंद्र रहा है। लकुलीश संप्रदाय को भगवान शिव के 28 वें अवतार के रूप में माना जाता है।

चंद और कत्यूरी शासकों से भी जुड़ा है इतिहास
जागेश्वर धाम मंदिर का इतिहास चंद और कत्यूरी शासकों से भी जुड़ा हुआ है। जानकारों का मानना है कि चंद शासकों ने यहां पूजा अर्चना की सुचारू व्यवस्था के लिए अपनी जागीर से 365 गांव जागेश्वर धाम को अर्पित किए थे। मंदिर में लगने वाले भोग व अन्य सामग्री इन्हीं गांवों से यहां लाई जाती थी। जागेश्वर धाम में स्थापित राजा दीप चंद और पवन चंद की धातु निर्मित मूर्तियां इसकी तस्दीक भी करती हैं। जबकि कत्यूरी शासन के दौरान जागेश्वर धाम में कत्यूरी रानियां सती भी हुआ करती थी।

भट्ट परिवारों को है पूजा का अधिकार
जागेश्वर धाम में पूजा कराने का अधिकार भट्ट जाति के पंडों को ही है। मंदिर के वरिष्ठ पुजारियों की मानें तो यहां पूजा करने वाले भट्ट परिवार के वंशज सबसे पहले जगतगुरु आदि शंकराचार्य के साथ आए थे। तभी से वही यहां पूजा अर्चना करते चले आ रहे हैं। पुजारी परिवारों की संख्या बढ़ जाने के कारण अब मंदिर में पूजा के लिए इन पुजारियों की बारी लगती है। वर्तमान में जागेश्वर के अलावा मंतोला, गोठयूड़ व बहतांण गांवों में यह परिवार निवास करते हैं।

कैसे पहुंचे जागेश्वर धाम
विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम हवाई और रेल मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है। रेलमार्ग से सबसे पहले काठगोदाम आना होगा। जबकि हवाई मार्ग से पंतनगर हवाई अड्डे तक पहुंचा जा सकता है। इसके बाद यहां से स्थानीय बसों और टैक्सियों के जरिए अल्मोड़ा होते हुए जागेश्वर धाम के दर्शन किए जा सकते हैं।

रहने की हैं पर्याप्त व्यवस्थाएं
जागेश्वर धाम में दूरदराज से आने वाले सैलानियों के रुकने की भी पर्याप्त व्यवस्थाएं हैं। केएमवीएन के पर्यटक आवास गृह के अलावा यहां वन विभाग का पर्यटक आवास केंद्र और कई निजी होटल भी हैं। जागेश्वर धाम से प्रकृति का नैसर्गिंक सौंदर्य देखते ही बनता है। आसपास के अन्य मंदिरों में घूमने के लिए यहां आसानी से परिवहन सुविधाएं भी उपलब्ध रहती हैं।

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