बरेली: रबर फैक्ट्री में बाघिन का खेल खत्म, ट्रेंकुलाइज कर भेजा गया दुधवा

बरेली/ फतेहगंज पश्चिमी, अमृत विचार। पिछले डेढ़ साल से वन विभाग की फजीहत कराने वाली बाघिन आखिरकार पकड़ में आ गई। रबर फैक्ट्री में बाघिन को लौटे करीब तीन हफ्ते हुए थे इस बीच बाघिन को पकड़ने के लिए विभाग ने पूरी ताकत झोंक दी मगर बाघिन की लुकाछिपी जारी रही। लेकिन, पकड़ में नहीं …
बरेली/ फतेहगंज पश्चिमी, अमृत विचार। पिछले डेढ़ साल से वन विभाग की फजीहत कराने वाली बाघिन आखिरकार पकड़ में आ गई। रबर फैक्ट्री में बाघिन को लौटे करीब तीन हफ्ते हुए थे इस बीच बाघिन को पकड़ने के लिए विभाग ने पूरी ताकत झोंक दी मगर बाघिन की लुकाछिपी जारी रही। लेकिन, पकड़ में नहीं आई। शुक्रवार का दिन वन विभाग के लिए कामयाबी लेकर आया।
एक दिन पहले गुरूवार को जहां बाघिन को एक केमिकल टैंक के अंदर पिंजरा और जाल लगाकर रोक दिया गया था वहीं शुक्रवार को 24 घंटे तक जब बाघिन पिंजरे में नहीं आई तो अंतिम विकल्प के तौर पर उसको ट्रैंक्युलाइज किया गया। दरअसल बीते साल मार्च में बाघिन की रबर फैक्ट्री में होने की जानकारी मिली। तभी से विभाग की टीमें बाघिन की तलाश में पसीना बहा रही थी।

पीलीभीत टाइगर रिजर्व, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट, कानपुर और बरेली वन विभाग की टीमों ने रात दिन एक करके बाघिन को पकड़ने की कोशिश की मगर कुछ हासिल नहीं हुआ। इसी बीच तीन हफ्ते पहले दोबारा रबर फैक्ट्री में बाघिन के आने के बाद विभाग ने घेरने की पूरी तैयारी कर ली। रबर फैक्ट्री में 39 कैमरे लगाकर बाघिन की निगरानी एक बार फिर शुरू हुई। बाघिन कैमरे में तो दिखाई देती थी लेकिन वन विभाग को चकमा दे जाती। इसी दौरान कैमरे से निगरानी के दौरान बाघिन का बड़ा सुराग हाथ लगा की बाघिन कोयला प्लांट से एक टैंक के बीच नियमित रूप से जाती है।
बस यहीं से बाघिन की उल्टी गिनती शुरू हुई। गुरूवार तड़के जब बाघिन टैंक के अंदर पहुंची तो उसे बिना मौका दिए वहां पिंजड़ा लगा दिया गया। पहले तो कोशिश यही थी कि उसे कॉम्बिंग से बाहर निकाला जाए। शुक्रवार सुबह तक बाघिन बाहर नहीं आई तो मुख्यालय से अनुमति मिलने के बाद सुबह 11 बजकर 20 मिनट पर ट्रैंक्युलाइज किया गया। बाघिन को ट्रैंक्युलाइज करने के लिए टीमों को टैंक का एक हिस्सा काटना पड़ा।

70 लोगों की टीम ने रात दिन बहाया पसीना
इस डेढ़ साल में अधिकारियों समेत वन विभाग और बाहर से आने वाली पीलीभीत टाइगर रिजर्व, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट, कानपुर और बरेली वन विभाग की टीमों के 70 से 75 लोगों ने पसीना बहाया। अलग-अलग शिफ्ट में काम करके लगाए गए कैमरों में बाघिन पर नजर रखी गई। रेंजर, डिप्टी रेंजर, वन दरोगा, वन रक्षक, कैटल गार्ड जैसे कर्मचारी शामिल रहे।
मेडिकल के बाद भेजा गया दुधवा नेशनल पार्क
बाघिन को पकड़ने के बाद मौके पर मौजूद विशेज्ञों की टीमों ने मेडिकल किया। जिसमें उसका तापमान, ब्लड प्रेशर, हार्टबीट, लंबाई और वजन चेक किया गया। मेडिकल में बाघिन एक दम फिट पाई गई। बाघिन की लंबाई 147 सेमी. थी। मेडिकल के फौरन बाद उसे दुधवा नेशनल पार्क किशनपुर सेंचुरी लखीमपुर खीरी केलिए रवाना कर दिया गया।

समझ गई थी बाघिन, अब बचना नामुमकिन
दरअसल बाघिन जान चुकी थी कि बाहर पिंजड़ा उसका इंतजार कर रहा है। यही वजह थी कि वह पूरी रात टैंक से बाहर नहीं निकली जिसकी वजह से सुबह उसकी ट्रैक्युलाइज करना पड़ा। बाघिन को होश आया तो खुद को पिंजड़े में पाकर जोर-जोर से दहाड़ने लगी।
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट के डॉ. सुशांत ने भांपा बाघिन का मूड
बाघिन को पकड़ने के लिए खासतौर से बुलाए गए डॉ. सुशांत ने बाघिन को पकड़ने में अहम भूमिका निभाई। डब्लू टी आई के डॉ. सुशांत अपने दो सहोगियों के साथ बरेली पहुंचे थे। वह बायोलॉजिस्ट हैं और बाघिन का व्यवहार समझने में काफी माहिर भी हैं। बाघिन की गतिविधियों को बारीकि से समझकर पूरी रणनीति के साथ इस बार बाघिन के लिए जाल बिछाया था।

हेमराजपुर में किसानों पर किया था हमला
बाघिन ने बीते माह मई में रामगंगा खादर क्षेत्र के गोरा हेमराजपुर गांव में दो किसानों पर हमला कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया था। दोनों किसान गन्ने की फसल में पानी लगाने गए थे। किसानों की चीख-पुकार सुनकर आसपास खेतों में काम कर रहे अन्य किसानों ने उन्हें बचाया। उस वक्त घटना स्थल से वन विभाग की टीम को बाघिन के पग चिह्न भी मिले थे। इसी पड्डे को शिकार के लिए बांधा गया। लेकिन बाघिन इसे खाने नहीं आई और वन विभाग के जाल में नहीं फंसी।
बाघिन को ट्रैक्युलाइज कर दुधवा नेशनल पार्क भेजा गया है जहां उसे जंगल में छोड़ दिया जाएगा। 30 घंटे तक चले इस ऑपरेशन में बाघिन, स्टाफ और आस-पास के लोगों की सुरक्षा का खास ख्याल रखा गया। मेडिकल में वह एक दम फिट पाई गई। -ललित कुमार वर्मा, मुख्य वन संरक्षक