लाॅकडाउन और धागे की कालाबाजारी से मुश्किल में मांझा कारीगर

लाॅकडाउन और धागे की कालाबाजारी से मुश्किल में मांझा कारीगर

मोनिस खान, बरेली। दूसरे कारोबार की तरह मांझा कारोबारियों की स्थिति भी लाॅकडाउन में बदतर हो चुकी है। आलम यह है कि दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो रहा है। बरेली में करीब एक लाख परिवारों की गृहस्थी मांझे के कारोबार पर टिकी है। चाइनीज मांझा, धागे की कालाबाजारी और लाॅकडाउन में मांझा …

मोनिस खान, बरेली। दूसरे कारोबार की तरह मांझा कारोबारियों की स्थिति भी लाॅकडाउन में बदतर हो चुकी है। आलम यह है कि दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो रहा है। बरेली में करीब एक लाख परिवारों की गृहस्थी मांझे के कारोबार पर टिकी है। चाइनीज मांझा, धागे की कालाबाजारी और लाॅकडाउन में मांझा कारीगरों के आगे रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।

यूं तो शहर में देसी मांझे की खपत बेहद कम तकरीबन 10 फीसद के आसपास है लेकिन देश-विदेश में इसके कदरदानों की संख्या अधिक होने के कारण शहर के हुसैन बाग, बाकरगंज, स्वाले नगर और किला छावनी जैसे क्षेत्रों में घर-घर मांझे का काम करने वाले लोग मिल जाएंगे।

मांझा कारोबारी बताते हैं कि पिछले और इस साल जब लाकडाउन नहीं लगा था तो जहां 10 लोगों को काम दे पाते थे वहीं अब 2 से तीन कारीगरों को काम पर बुलाना भारी पड़ा रहा है। जब काम ही नहीं है तो अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि 200 से 300 रुपए प्रतिदिन की कमाई करने वाले कारीगरों की गृहस्थी किन हालात में चल रही होगी।

दूसरी तरफ लाॅकडाउन की वजह से कालाबाजारी भी खूब बड़ी है। 600 रुपए प्रति दर्जन के हिसाब से मिलने वाली रील 700 रुपए तक की मिल रही हैं। रही सही कसर चाइनीज मांझे ने पूरी कर दी है। पाबंदी के बावजूद धडल्ले से चाइनीज मांझा बिक रहा है।

सीजनल बाजार नहीं लगने से डूबा पूरे साल का कारोबार
मांझा कारोबार से जुड़े कुछ ऐसे कारोबारी हैं जो दिल्ली, मुंबई, जयपुर, अहमदाबाद, मथुरा जैसे शहरों में त्योहारों के मौकों पर होने वाली पतंगबाजी के चलते लगने वाले सालाना बाजारों में रोजी-रोटी की जुगाड़ में जाते हैं। इनमें से ज्यादातर लोगों के पूरे साल की कमाई इन्हीं त्योहारी बाजारों पर टिकी होती है लेकिन पिछले साल भी लाकडाउन के कारण अधिकतर बाजारों पर पाबंदी थी।

इस बार भी लगभग यही स्थिति है। जिसके कारण पूरे साल जिस कमाई से अपना घर चलाते थे, वह नहीं हो पाएगी। बाजारों में दुकानें लगाने वाले कारोबारियों ने मांग की है कि त्योहारी सीजन में लगने वाले बाजारों को छूट मिलनी चाहिए ताकि उनकी रोजी-रोटी चल सके।

इस लाॅकडाउन में मांझा कारोबार का पिछली बार से ज्यादा बुरा हाल है जहां 10 कारीगरों से काम ले रहे थे तो वहीं अब 2 से 3 कारीगरों से काम करा पा रहे हैं। बाकरगंज ईदगाह के पास 500 के आस-पास अड्डें हैं जिसमें से महज 25 फीसद पर ही काम हो रहा है। -तस्लीम बेग,मांझा कारोबारी

धागा महंगा होने से काफी असर पड़ा है। कारीगरों के घर का चूल्हा जलना भी मुश्किल है। जैसे-तैसे जुगाड़ से काम कर रहे हैं जिन कारीगरों के पास काम नहीं है। सरकार को उनके बारे में सोचना चाहिए। धागे की कालाबाजारी पर भी रोक लगे।-नाजिम मियां, मांझा कारीगर

लाॅकडाउन में धडल्ले से धागे की कालाबाजारी हो रही है। 600 रुपए का मिलने वाला रील 700 रुपए तक का मिल रहा है। जिसकी वजह से लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है। साथ चाइनीज मांझा भी चोरी-छिपे खूब बिक रहा है। जिला प्रशासन को चाहिए कि इस पर रोक लगे। -महताब खान, मांझा कारोबारी

दिल्ली और जयपुर में जाकर दुकान लगाते हैं। पूरे साल की कमाई इसी पर टिकी होती है। पिछले साल भी दिल्ली में बाजार नहीं लगा तो इस बार भी संशय बरकरार है। जयपुर में दुकान लगाई थी लेकिन शाम का लाॅकडाउन होने के कारण मुनाफा तो दूर माल लाने और ले जाने का किराया निकालना मुश्किल था। -फरीद उल्ला खान, मांझा कारोबारी