असुरक्षित बेटियां

बुलंदशहर में दो साल पहले नाबालिग छात्रा को अगवा करके चलती कार में सामूिहक दुष्कर्म करने के बाद हत्या करने के तीन दोषियों दिलशाद, जुल्फिकार और इजराइल को पॉक्सो कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है। यह सजा ऐसी दरिंदगी को अंजाम देने वालों के लिए जरूरी थी। पॉक्सो कोर्ट ने इस घटना को दुर्लभतम …

बुलंदशहर में दो साल पहले नाबालिग छात्रा को अगवा करके चलती कार में सामूिहक दुष्कर्म करने के बाद हत्या करने के तीन दोषियों दिलशाद, जुल्फिकार और इजराइल को पॉक्सो कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है। यह सजा ऐसी दरिंदगी को अंजाम देने वालों के लिए जरूरी थी। पॉक्सो कोर्ट ने इस घटना को दुर्लभतम मानते हुए कहा कि अगर अपराध के खिलाफ समाज की चीत्कार को अनसुना कर दिया तो भयमुक्त समाज का निर्माण नहीं किया जा सकेगा।

दरअसल, दरिंदों को यह एहसास होना ही चाहिए कि वे अगर दरिंदगी करेंगे तो उनके लिए सख्त कानून छोड़ेगा नहीं। इस घटना को 2 जनवरी 2018 को तीन दरिंदों ने अंजाम दिया। ट्यूशन से घर लौटते समय छात्रा को तीनों ने कार से अगवा कर लिया और चलती कार में एनएच-91 पर उसके साथ बारी-बारी से सामूहिक दुष्कर्म किया, फिर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। 4 जनवरी 2018 को दादरी कोतवाली क्षेत्र के रजवाहे में छात्रा का शव पड़ा मिला था।

फरीदाबाद के बल्लभगढ़ के बहुचर्चित निकिता तोमर हत्याकांड को भी पिछले साल 2020 में 26 अक्टूबर को अंजाम दिया गया। बीकॉम की छात्रा निकिता तोमर को तब अगवा करने की कोशिश की गई, जब वह परीक्षा देकर घर लौट रही थी। अगवा करने में नाकामयाब होने पर निकिता को गोली मार दी गई। इस मामले में फास्टट्रैक अदालत ने मुख्य आरोपी तौसीफ और उसके दोस्त रेहान को दोषी करार दिया है।

दरअसल, तौसीफ निकिता पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था। इसका निकिता ने विरोध किया तो सरेशाम सड़क पर उसकी जान ले ली गई। फास्टट्रैक अदालत शुक्रवार को दोनों दोषियों तौसीफ और उसके दोस्त रेहान को सजा सुनाएगी। निकिता के पिता ने दोषियों को फांसी की सजा की मांग की है।

इन दोनों घटनाओं के बीच सवाल लाजिमी हो जाता है कि हम आखिर किस तथाकथित सभ्य समाज में हैं, जहां बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। कहीं बेटियों को दुष्कर्म के बाद मार दिया जाता है तो कहीं शादी न करने पर। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के निर्भया कांड के बाद ऐसे मामलों में बेशक कानून सख्त किया गया लेकिन ऐसी घटनाएं फिर भी नहीं रुकीं तो इस पर विचार किया जाना स्वाभाविक हो जाता है कि आखिर कमी कहां है?

समाज में मनुष्य के वेश में छुपे भेड़ियों को कैसे पहचाना जाए? दरिंदों को अपराध के लिए कड़ी से कड़ी सजा तो बहुत जरूरी है लेकिन बेटियों को सुरक्षित माहौल मिले, यह कैसे संभव होगा? हमें इस पर गंभीरता से विचार करना होगा, वरना न जाने कितनी ही बेकसूर और मासूम बच्चियों को दरिंदे अपना शिकार बनाते रहेंगे।