प्रयागराज : अधिवक्ता को घर में नजरबंद रखने के मामले में डीसीपी से जवाब तलब

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा में एक प्रशासनिक न्यायाधीश के दौरे के दौरान 70 वर्षीय एक अधिवक्ता को कथित तौर पर 'घर में नजरबंद' किये जाने के मामले में कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि तथ्यों को छिपाने और दबाने के किसी भी प्रयास को न तो सराहा जाएगा और न ही इसकी अनुमति दी जाएगी। कोर्ट ने आगे यह स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा, क्योंकि लोकतांत्रिक शासन वाले देश में किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित नहीं किया जा सकता।
यह तब और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, जब ऐसा उल्लंघन इस न्यायालय के प्रशासनिक न्यायाधीश के कथित दौरे के कारण हुआ हो। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने अधिवक्ता महताब सिंह द्वारा दाखिल याचिका पर विचार करते हुए की। कोर्ट ने पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) को आगामी सुनवाई पर यानी 24 अप्रैल को अभिलेखों के साथ प्रस्तुत होने का निर्देश दिया, जिससे जिला न्यायालय परिसर में प्रशासनिक न्यायाधीश के दौरे के दौरान अधिवक्ता पर 'निगरानी' बनाए रखने के औचित्य को समझा जा सके। बता दें कि याचिका में दावा किया गया है कि अधिवक्ता को बीएनएसएस की धारा 168 ( संज्ञेय अपराधों को रोकने के लिए) के तहत नोटिस देने के बाद 15 नवंबर 2024 को उनके घर में 10 घंटे से अधिक समय तक नजरबंद रखा गया।
मौजूदा मामले को असामान्य मानते हुए कोर्ट ने सबसे पहले आगरा के जिला न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी थी, जिसके अनुपालन में आगरा के पुलिस आयुक्त ने हलफ़नामा दाखिल कर बताया कि नोटिस भेजने में प्रक्रियागत खामियाँ थीं और अब आगे वे इस मामले से निपटने में ज़्यादा सावधान रहेंगे। उन्होंने हलफ़नामे के साथ माफ़ी भी मांगी, लेकिन हलफनामे पर कोर्ट ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए पाया कि हलफनामे में स्पष्ट रूप से 'मुद्दे को दबाने' का प्रयास किया गया है।
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