इस बार मानसून में देश में सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना, IMD का नया अपडेट

इस बार मानसून में देश में सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना, IMD का नया अपडेट

नई दिल्ली। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने मंगलवार को कहा कि आगामी दक्षिण-पश्चिम मानसून मौसम में भारत में सामान्य से अधिक वर्षा होने की उम्मीद है, जिससे फसलों की अच्छी पैदावार की उम्मीद बढ़ गई है। आईएमडी ने कहा कि मानसून के दीर्घकालिक पूर्वानुमान के अनुसार, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर क्षेत्र के बड़े हिस्से में सामान्य से कम वर्षा होने का अनुमान है, जबकि मराठवाड़ा और उससे सटे तेलंगाना के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है। 

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सचिव एम रविचंद्रन ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘भारत में चार महीने (जून से सितंबर) के मानसून के मौसम में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है तथा कुल वर्षा दीर्घावधि औसत 87 सेमी का 105 प्रतिशत (पांच प्रतिशत की मॉडल त्रुटि के साथ) रहने का अनुमान है।’’ दक्षिण-पश्चिम मानसून एक जून से 30 सितंबर तक सक्रिय रहता है। उन्होंने कहा कि भारत में मानसून की वर्षा को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण कारकों में से दो का प्रभाव तटस्थ होगा, जबकि एक का इस वर्ष बारिश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 

आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा, ‘‘मानसून के दौरान सामान्य वर्षा की 30 प्रतिशत संभावना, सामान्य से अधिक वर्षा की 33 प्रतिशत संभावना तथा अत्यधिक वर्षा की 26 प्रतिशत संभावना है।’’ आईएमडी के अनुसार, 50 वर्ष के औसत 87 सेंटीमीटर के 96 प्रतिशत से 104 प्रतिशत के बीच वर्षा को ‘सामान्य’ माना जाता है। दीर्घावधि औसत के 90 प्रतिशत से कम वर्षा को ‘कम’ माना जाता है, 90 प्रतिशत से 95 प्रतिशत के बीच को ‘सामान्य से कम’, 105 प्रतिशत से 110 प्रतिशत के बीच को ‘सामान्य से अधिक’ तथा 110 प्रतिशत से ज्यादा को ‘अधिक’ वर्षा माना जाता है। 

मानसून के दौरान जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, तमिलनाडु, बिहार और पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में सामान्य से कम वर्षा होने का अनुमान है। मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के बड़े हिस्सों में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है। ये देश के मुख्य मानसून क्षेत्र हैं जहां कृषि मुख्यतः वर्षा आधारित होती है। देश के कई हिस्से पहले से ही भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं और अप्रैल से जून की अवधि में बहुत ज्यादा गर्मी पड़ने का अनुमान है। इससे बिजली ग्रिड पर दबाव पड़ सकता है और पानी की कमी हो सकती है। 

मानसून भारत के कृषि क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, जो लगभग 42.3 प्रतिशत आबादी की आजीविका का आधार है और देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 18.2 प्रतिशत का योगदान देता है। कुल खेती योग्य क्षेत्र का 52 फीसदी हिस्सा वर्षा आधारित प्रणाली पर निर्भर है। यह देशभर में बिजली उत्पादन के अलावा पीने के पानी के लिए महत्वपूर्ण जलाशयों को फिर से भरने के लिए भी अहम है। इसलिए, मानसून के मौसम में सामान्य वर्षा का पूर्वानुमान देश के लिए एक बड़ी राहत है। हालांकि, सामान्य वर्षा का यह मतलब नहीं है कि पूरे देश में हर जगह एक समान बारिश होगी। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा आधारित प्रणाली की परिवर्तनशीलता और अधिक बढ़ जाती है। 

जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश के दिनों की संख्या घट रही है, जबकि भारी बारिश की घटनाएं (थोड़े समय में अधिक बारिश) बढ़ रही हैं। इससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ और कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति पैदा होती है। मानसून की वर्षा का पूर्वानुमान लगाने के लिए तीन बड़े पैमाने की जलवायु परिघटनाओं पर विचार किया जाता है। पहली है ईएनएसओ। यह एक जलवायु पैटर्न है जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में उतार-चढ़ाव से संबंधित है, जो वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करता है। 

दूसरा कारक है हिंद महासागर द्विध्रुव, जो भूमध्यरेखीय हिंद महासागर के पश्चिमी और पूर्वी किनारों के भिन्न-भिन्न तापमान के कारण उत्पन्न होता है। तीसरा कारक है उत्तरी हिमालय और यूरेशियाई भूभाग पर बर्फ का आवरण, जो भूभाग के भिन्न-भिन्न तापमान के कारण भारतीय मानसून को भी प्रभावित करता है। महापात्र ने कहा कि मौसम के दौरान ईएनएसओ-तटस्थ स्थितियां और तटस्थ हिंद महासागर द्विध्रुव स्थितियां होने का अनुमान है। साथ ही, उत्तरी गोलार्ध और यूरेशिया में बर्फ का आवरण कम है। 

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