प्रयागराज : निविदा की शर्तों को आम जनता के हितों के दृष्टिकोण से निर्धारित किया जाना आवश्यक
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनसीआर और उसके आसपास के क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने और थर्मल पावर उत्पादन में प्रदूषण को कम करने हेतु गैर-टॉरिफ़ाइड बायोमास पेलेट की आपूर्ति से संबंधित एक प्रतिबंधात्मक निविदा की शर्तों पर विचार करते हुए कहा कि कोई शर्त आवश्यक है या नहीं, यह नियोक्ता द्वारा लिया गया निर्णय है, जिसका सम्मान किया जाना चाहिए और उस निर्णय की वैधता पर रिट कोर्ट द्वारा सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
प्रतिबंध की तर्कसंगतता को आम जनता के हितों के दृष्टिकोण से निर्धारित किया जाना चाहिए, न कि उन व्यक्तियों के हितों के दृष्टिकोण से, जिन पर प्रतिबंध लगाए गए हैं। निविदा में प्रतिबंधात्मक शर्त को मनमाना और भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता है। यह नियोक्ता के विवेक पर निर्भर करता है कि वह उन शर्तों/धाराओं को निर्धारित करे जो सार्वजनिक हित में किए जाने वाले कार्यों में सबसे उपयुक्त हैं। उक्त आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने मेसर्स राजन कंस्ट्रक्शन कंपनी की याचिका खारिज करते हुए पारित किया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह निविदा की शर्तों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, क्योंकि यह व्यापक रूप से जनता के हित में जारी की गई थी। निविदा की शर्तें निविदा प्राधिकरण के अनन्य अधिकार क्षेत्र में हैं और उन्हें न्यायिक समीक्षा के अधीन तब तक नहीं रखा जाना चाहिए, जब तक संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन न हो या निविदा शर्तों में अंतर्निहित पूर्वाग्रह या विकृति न हो। निविदा प्राधिकरण व्यापक जनहित की सेवा के लिए विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से कुछ शर्तें निर्धारित करता है। जब तक ये शर्तें अनुचित या विकृत न हों, तब तक किसी एक व्यक्ति के कहने पर इनमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
वर्तमान मामले के अनुसार उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर स्थित याची की फर्म, कोयला-हैंडलिंग संयंत्रों को गैर-टॉरिफाइड बायोमास पेलेट की आपूर्ति करती है। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड ने वर्ष 2024 में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने और थर्मल पावर उत्पादन में प्रदूषण को कम करने के लिए गैर-टॉरिफ़ाइड बायोमास पेलेट की आपूर्ति को आमंत्रित करते हुए एक निविदा जारी की। निविदा के खंड 3(i) में एक पूर्व-योग्यता शर्त लगाई गई, जिसके अनुसार निविदा में एनसीआर के भीतर या अलीगढ़ के कासिमपुर में हरदुआगंज थर्मल पावर स्टेशन के 100 किलोमीटर के दायरे में स्थित निर्माताओं तक भागीदारी सीमित कर दी गई। इस भौगोलिक मानदंड को याची की फर्म पूरा नहीं करती थी, इसलिए उसे निविदा प्रक्रिया में भाग लेने से बाहर रखा गया।
इसी प्रतिबंध को चुनौती देते हुए याची ने हाईकोर्ट में वर्तमान याचिका दाखिल की, जिसमें उसने निविदा निर्माताओं पर संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के उल्लंघन का आरोप लगाया। मामले की परिस्थितियों पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि एनसीआर और उसके आसपास के क्षेत्रों में पेलेट निर्माताओं तक निविदा भागीदारी को सीमित करने की शर्त का उद्देश्य किसानों द्वारा पराली जलाने को कम करना है, जो क्षेत्र में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है। बायोमास पेलेट पर्यावरण के लिए बेहतर हैं, क्योंकि वे अधिक ज्वलनशील होते हैं, लेकिन बहुत अधिक ग्रीनहाउस गैस नहीं छोड़ते। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि याची को निविदा प्रक्रिया में भाग लेने से बाहर रखने में कोई दुर्भावना नहीं थी।
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