सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी मामले में ढीले रवैये पर की UP सरकार की आलोचना, दिए कड़े निर्देश

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बाल तस्करी मामलों से निपटने में उत्तर प्रदेश सरकार के ढीले रवैये की आलोचना करते हुए देशभर में ऐसे अपराधों की रोकथाम और त्वरित सुनवाई के लिए मंगलवार को कड़े दिशा-निर्देश जारी किए।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने सभी उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि वे संबंधित निचली अदालतों में लंबित बाल तस्करी के मामलों की स्थिति के बारे में जानकारी लें। साथ ही, यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करें कि संबंधित निचली अदालत छह महीने के भीतर मामले का निपटारा करे। शीर्ष अदालत ने यह भी आदेश दिया कि न्याय में देरी को रोकने के लिए ऐसे मामलों की दिन-प्रतिदिन सुनवाई की जाए।
शीर्ष अदालत ने यह कड़ी टिप्पणी तस्करी से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान, जिसमें कथित तौर पर उत्तर प्रदेश में एक दंपती को चार लाख रुपये में बच्चा बेचा गया था। दंपती कथित तौर पर एक लड़के की चाहत रखते थे और उन्होंने जानबूझकर चुराए गए बच्चे को स्वीकार कर लिया। शीर्ष अदालत ने आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय और उत्तर प्रदेश पुलिस की उनके ढीले रवैये के लिए आलोचना की।
पीठ की ओर से न्यायमूर्ति पारदीवाला ने टिप्पणी की, “यह अग्रिम जमानत रद्द करने का मामला है, लेकिन हमने बाल तस्करी के बड़े मुद्दे पर गहनता से विचार किया।” उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा भारतीय विकास संस्थान को सौंपे गए 2023 के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा, “कई सिफारिशों के साथ एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, जिसे हमने अपने फैसले में शामिल किया है।”
न्यायमूर्ति पारदीवाला आगे कहा, “हम फैसला सुनाने ही वाले थे कि एक समाचार पत्र (द टाइम्स ऑफ इंडिया) ने 'जन्म के समय चुराया गया और लाखों में बेचा गया' शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की। हमने अपने फैसले में पूरा लेख फिर से प्रस्तुत किया है।” पीठ ने विशेष रूप से उच्च न्यायालय द्वारा जमानत के आवेदनों से निपटने के तरीके की आलोचना की।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, “उच्च न्यायालय ने मामले को बहुत ही लापरवाही से निपटाया, जिसके कारण कई आरोपी फरार हो गए। ये लोग समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।” उन्होंने कहा कि कम से कम उच्च न्यायालय को एक शर्त लगानी चाहिए थी कि आरोपी हर हफ्ते पुलिस के सामने पेश हो।
उत्तर प्रदेश सरकार की निष्क्रियता पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने टिप्पणी की, “हम इस बात से पूरी तरह निराश हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले को कैसे निपटाया। कोई अपील नहीं की गई। अधिकारियों की कार्रवाई में मामले की गंभीरता नहीं दिखाई गई। आरोपी को स्पष्ट रूप से पता था कि बच्चा चोरी का था और फिर भी उसने उसे पाने के लिए चार लाख रुपये का भुगतान किया।”
न्यायालय के निर्देशों और टिप्पणियों से उम्मीद है कि जांच और न्यायिक कार्यवाही दोनों के संदर्भ में बाल तस्करी के मामलों से निपटने के तरीके में देश भर में बदलाव आएगा।
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