बरेली: जन्म के तुरंत बाद नहीं रोने पर नवजातों की मौत, बर्थ एस्फिक्सिया बना कारण

अंकित चौहान, अमृत विचार। जन्म के तुरंत बाद नवजात न रोएं तो जीवन संकट में हो सकता है। पिछले साल जिले में 148 नवजात जन्म के फौरन बाद रोए नहीं, खामोशी उनकी जान ले गई। इन बच्चों की मौत का कारण बना है बर्थ एस्फिक्सिया। जन्म के चंद मिनटों में अगर बच्चा नहीं रोता है तो बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर होता है।
जिला महिला अस्पताल के एसएनसीयू से मिली रिपोर्ट के अनुसार यहां वर्ष 2024 में एक अप्रैल से वर्ष 2025 के 31 मार्च तक एसएनसीयू में कुल 2671 नवजात भर्ती हुए, इनमें 873 बच्चे ऐसे हैं जिनमें बर्थ एस्फिक्सिया के लक्षण मिले। 148 बच्चों की मौत बर्थ एस्फिक्सिया से ग्रसित होने के कारण हुई है।
रेफरल की संख्या अधिक
जिन 148 बच्चों की मौत हुई है इनमें अधिकांश बच्चे देहात क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्रों से रेफर होकर आए थे। रिपोर्ट के अनुसार 123 बच्चे आउट बॉर्न यानि रेफर थे जबकि 23 बच्चों का जन्म जिला महिला अस्पताल में हुआ था।
क्या है बर्थ एस्फिक्सिया
वरिष्ठ स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. मृदुला शर्मा के अनुसार बर्थ एस्फिक्सिया को पेरीनेटेल एस्फिक्सिया और न्यूनेटेल एस्फिक्सिया भी कहा जाता है। जन्म के तुरंत बाद ऑक्सीजन बच्चे के मस्तिष्क तक नहीं पहुंच पाता और बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।
इस दौरान फौरन बच्चे को उल्टा कर उसकी पीठ को थपथपाया जाता है, जिससे बच्चा रोए और ऑक्सीजन का संचार हो सके। इससे बचने के लिए गर्भावस्था के दौरान से समय पर जरूरी जांचें और कुशल चिकित्सक से इलाज कराना चाहिए।
गर्भवती इन बातों का रखें ध्यान
- गर्भावस्था के सात से नौ माह तक शिशु की हलचल को महसूस करें
- समय-समय पर जरूरी जांचें और कुशल चिकित्सक की सलाह लें
- अगर 24 घंटे तक गर्भ में शिशु की हलचल महसूस न हो तो फौरन डॉक्टर से संपर्क करें
- किसी के बहकावे में आकर घर पर प्रसव न करवाएं, संस्थागत प्रसव कराएं
- संतुलित और पोषण आहार का सेवन करने के साथ व्यायाम भी करें
बर्थ एस्फिक्सिया से मृत बच्चों में अधिकांश रेफर होकर आए। अस्पताल में ओपीडी में आने वाली हर गर्भवती मरीज को समय पर जांच और संस्थागत प्रसव कराने के लिए जागरूक किया जा रहा है जिससे शिशु मृत्यु दर का ग्राफ कम हो सके- डॉ. त्रिभुवन प्रसाद, सीएमएस, जिला महिला अस्पताल
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