पीलीभीत के जंगल रहे हैं खालिस्तानी आतंकियों का ठिकाना, कटरुआ कांड में मारे गए थे 29 ग्रामीण

अस्सी-नब्बे के दशक में पीलीभीत में रही खालिस्तान आतंकवाद की दस्तक

पीलीभीत के जंगल रहे हैं खालिस्तानी आतंकियों का ठिकाना, कटरुआ कांड में मारे गए थे 29 ग्रामीण

पीलीभीत, अमृत विचार। नेपाल सीमा से सटे जनपद पीलीभीत में खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के तीन  दुर्दांत अपराधियों के पुलिस मुठभेड़ में ढेर होने के बाद पुरानी घटनाएं ताजा हो गई हैं। अस्सी-नब्बे के दशक में पीलीभीत का नाम खालिस्तान आतंकवाद के लिए खासा सुर्खियों में रहा है।  उस दौरान की कई ऐसी घटनाएं हैं, जिनको कभी भुलाया नहीं जा सकता है।  तमाम लोगों की हत्याएं की गई थी।

बताते हैं कि पीलीभीत में खालिस्तानी आतंकवाद अस्सी-नब्बे के दशक में चरम पर रहा।  उस वक्त तराई का  पूरनपुर तहसील क्षेत्र का इलाका काफी प्रभावित रहा था।  उस दौरान कई आतंकवादी संगठनों की दस्तक रही। बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया गया। सबसे चर्चित कांड की बात करें तो वह था..दियोरियाकलां जंगल का कटरुआ कांड। 31 जुलाई 1992 का दिन था। घुंघचिहाई और शिवनगर  गांव के रहने वाले 29 ग्रामीणों की जंगल में छिपे आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। ग्रामीण जंगल में कटरुआ (जंगल की सब्जी) बीनने के लिए गए थे। मगर, वहां पर पहले से ही आतंकवादी छिपे हुए थे। तीन अगस्त 1992 को ग्रामीणों के शव गढ़ा रेंज के जंगल के भीतर नदी  किनारे मिले थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के राजनीतिक सलाहकार कुंवर जितेंद्र प्रसाद ने दोनों ग्रामों का दौरा किया था। यह सामूहिक हत्याकांड प्रदेश ही नहीं देशभर में सुर्खियां बना रहा। इसके अलावा कई अन्य हत्याकांड भी हुए थे। वर्ष 1989 में आतंकवादियों ने हजारा थाने को ही बम से उड़ा दिया था।  आतंकवाद के समय में मुठभेड़ और हमलों में कई पुलिसकर्मी भी शहीद हुए थे। जिसमें माधोटांडा थाने के इंस्पेक्टर जितेंद्र सिंह यादव और  हजारा थानाध्यक्ष राजेंद्र सिंह त्यागी भी  शहीद हुए थे।  अभी कुछदिन पहले ही शहीद राजेंद्र सिंह त्यागी के नाम पर पीलीभीत पुलिस लाइन के मुख्य द्वार का नामकरण किया गया है। इसके अलावा न्यूरिया क्षेत्र के मंडरिया गांव के सात ग्रामीणों की भी आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। उस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री एसबी चव्हाण भी पीलीभीत आए थे। उस वक्त का मंजर ये था कि शाम होते ही नगर कस्बों की बाजारों में सन्नाटा पसर जाता था।  यहां तक कि पुलिस थाने भी बंद हो जाते थे। कई  पुलिसकर्मी भी हमले के डर से सादा वर्दी में ही रहते थे।

सुरक्षा बढ़ती गई और दम तोड़ता गया आतंकवाद
जनपद में चरम पर पहुंचा आतंकवाद नब्बे के दशक के शुरू होने के बाद दम तोड़ने लगा था। आतंकी संगठनों से जुड़े हुए तमाम लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। सुरक्षा को बढ़ाया जाता रहा।  जिसके लिए पुलिस के अलावा नागालैंड ऑर्म्ड फोर्स, इंडो तिब्बत सीमा पुलिस समेत अर्द्धसैनिक बलों को कमान सौंपी गई थी। फिर आतंकवाद दम तोड़ गया।

गैंगस्टर राजेश डोंगरा के हत्यारोपी भी पीलीभीत से हुए थे गिरफ्तार
सोमवार सुबह हुई मुठभेड़ के बाद ये भी सवाल  उठ रहे हैं कि कहीं फिर से तो तराई के जनपद पीलीभीत में आतंकवाद की सक्रियता की तैयारी तो नहीं है।  दरअसल कुछ माह पहले हही खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल के पंजाब से फरार होने के बाद पीलीभीत के एक धार्मिक स्थल में शरण लेने की बात उजागर हुई थी। पंजाब के फगवाड़ा में बरामद हुई एक स्कार्पियो की छानबीन के बाद सामने आया था कि ये वाहन अमरिया क्षेत्र के एक धार्मिक स्थल के प्रमुख के नाम पर पंजीकृत था। इसे पूरनपुर के एक धार्मिक स्थल का सेवादार चलाता था। वही, इस वाहन का लेकर पंजाब गया था। उसकी पंजाब के जालंधर में गिरफ्तारी भी हुई थी। इसी वर्ष जम्मू के गैंगस्टर राजेश डोंगरा की पंजाब के मोहाली में हत्या की गई थी। हतया करने के बाद आरोपी पीलीभीत के माधोटांडा क्षेत्र के गांव शाहगढ़ में एक फार्म हाउस पर छिप गए थे। पंजाब पुलिस ने पीलीभीत में दबिश दी और यहीं से गिरफ्तार किया था। ये भी उस वक्त उजागर हुआ था कि हत्या करने के लिए असलहा भी पीलीभीत से ही गया था।