Prayagraj News : अनुकंपा नियुक्ति हेतु आवेदन करने में हुए विलंब पर नियुक्ति प्राधिकारी को निर्णय लेने का अधिकार नहीं
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के एक मामले में आवेदन दाखिल करने में हुई देरी के संबंध में निर्णय लेने की शक्ति को स्पष्ट करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश सेवा में मरने वाले सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियमावली, 1974 के नियम 5 में प्रावधान है कि अगर सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के 5 वर्ष बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया जाता है तो उस पर राज्य को निर्णय लेने का अधिकार होता है, ना कि नियुक्त प्राधिकारी को।
अतः वर्तमान मामले में नियुक्ति प्राधिकारी के रूप में कार्यरत कमांडेंट को अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने वाले याची के आवेदन पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं था। कोर्ट ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि पुलिस अधीक्षक द्वारा जारी दिनांक 15 अप्रैल 2024 के पत्र ने नियुक्ति प्राधिकारी को अधिकार क्षेत्र प्रदान नहीं किया और न ही याची के मामले को निर्धारित करने के लिए उसे निर्देश दिए। कोर्ट ने पाया कि कमांडेंट 41वीं बटालियन पीएसी, गाजियाबाद को उक्त मामले से हाथ खींच लेना चाहिए था और कोर्ट द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए इसे राज्य सरकार को भेज देना चाहिए था। उक्त आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकलपीठ ने काजल कुमारी की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया।
मामले के अनुसार याची के पिता गाजियाबाद के प्रांतीय सशस्त्र पुलिस बल में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत थे और 16 नवंबर 2013 को सेवा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। याची के भाई ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया, लेकिन चिकित्सीय कारणों से उसके आवेदन को खारिज कर दिया गया। इसके बाद यह पता लगने पर कि 1974 के प्रावधानों के तहत रोजगार के लिए पात्र परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया जा सकता है। याची ने नियुक्ति के लिए आवेदन किया। अधिकारियों की ओर से कोई कार्यवाही न होने पर याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। कोर्ट ने कमांडेंट 41वीं बटालियन पीएसी, गाजियाबाद को मामले पर निर्णय लेने का निर्देश दिया, लेकिन कमांडेंट ने इस आधार पर आवेदन को खारिज कर दिया कि यह 5 साल की देरी के बाद दाखिल किया गया है अर्थात छठे साल में दाखिल किया गया है, जिससे व्यथित होकर याची ने वर्तमान याचिका दाखिल की।
इस पर कोर्ट ने कमांडेंट को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा कि उन्होंने याची का मामला राज्य प्राधिकारियों के समक्ष क्यों नहीं रखा। कोर्ट ने कहा कि 1974 के नियम 5 के प्रावधान की स्पष्ट व्याख्या के अनुसार नियुक्ति प्राधिकारी के रूप में काम कर रहे कमांडेंट को अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने वाले याची की मांग पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।