आपबीती: संभल में 1978 के दंगे में किसी तरह बचाई थी जान, करना पड़ा था पलायन

आपबीती: संभल में 1978 के दंगे में किसी तरह बचाई थी जान, करना पड़ा था पलायन

भीष्म सिंह देवल, संभल। संभल में 1978 में हुए साम्प्रदायिक दंगे का जो मंजर देखा उसके बाद मुस्लिम आबादी के बीच बना घर छोड़कर पलायन करना पड़ा। बाद में खुद व परिवार की सुरक्षा के लिए शहर से ही पलायन कर दूसरे शहर चले गये। 46 साल बाद भी उस दंगे का जिक्र आते ही अनिल रस्तोगी व उनकी पत्नी साधना रस्तोगी के चेहरे पर दहशत के भाव नजर आने लगते हैं। अनिल रस्तोगी की दुकान 1978 के दगे में जला दी गई थी और उन्होंने किसी तरह भागकर अपनी जान बचाई थी।

अनिल रस्तोगी का घर संभल के उसी खग्गू सराय मोहल्ले में था जहां 46 साल से बंद मंदिर का ताला खुलवाकर पूजा अर्चना शुरु कराई गई है। अनिल रस्तोगी और उनके परिवार ने उस मंदिर में वर्षों तक पूजा अर्चना की जिसे अब खुलवाया गया है। 1978 के साम्प्रदायिक दंगे के बाद संभल से पलायन कर दूसरे शहर चले गये अनिल रस्तोगी खग्गू सराय का बंद मंदिर खुलने की बात सुनकर अपनी पत्नी साधना रस्तोगी के साथ मंगलवार को संभल पहुंचे। 

उन्होंने मंदिर में पूजा अर्चना के बाद अपने पैत्रक घर को देखा तो आंखें भर आईं। अमृत विचार से खास बातचीत में अनिल रस्तोगी ने 1978 के दंगे की उस खौफनाक तस्वीर को बयां करते हुए बताया कि संभल के बाजार गंज में उनकी दुकान दंगे की भेंट चढ़ गई थी। उन्होंने दुकान का फोटो भी दिखाया। अनिल रस्तोगी ने बताया कि जिस वक्त दंगा शुरू हुआ मैं अपनी दुकान पर बैठा था। अचानक दंगा शुरु हो गया और भगदड़ मचने लगी। 

मैंने जल्दी से दुकान के गल्ले में रखे पैसे निकाले और दुकान का ताला लगा दिया। तब तह हालात खराब हो चुके थे। दंगे के बीच किसी तरह बचते बचाते घर आ गया। दोपहर को 2:30 बजे मुझे पता चला कि दंगाईयों ने दुकान जला दी। फिर मैं अगले दिन पीएसी के साथ वहां गया तो मैंने देखा मेरी दुकान पूरी जल चुकी थी। आगे मुरारी लाल की फड़ की तरफ गया तो जंगल में जली हुई लकड़ियां पड़ी थीं, इंसानों की हड्डियां पड़ी थीं। मोहल्ले के आसपास सब मुस्लिम आबादी थी। 40 हिंदू परिवार इस आबादी के बीच में थे। इन परिवारों की सुरक्षा के लिए पीएसी लगाई गई। फिर भी परिवार की सुरक्षा के लिए रात भर जागते थे।

बेचा नहीं डर की वजह से मकान यूं ही छोड़कर चले गये
अनिल रस्तोगी की पत्नी साधना रस्तोगी ने बताया कि दंगे के बाद डर की वजह से रात को नींद नहीं आती थी। सब घर वाले डर और दहशत में जी रहे थे। इसके बाद मुस्लिम आबादी के बीच से निकलकर सुरक्षित इलाके में जाकर रहने का फैसला किया और 1979 में खग्गू सराय का पुश्तैनी घर छोड़कर चले गए। उस समय घर किसी को बेचा नहीं था बल्कि यूं ही घर छोड़कर चले गये थे।

साधना रस्तोगी ने दंगे की आपबीती सुनाते हुए बताया कि दंगा हुआ तो हमें लगा कि हम तो मर जाएंगे। हमारा बच्चा कैसे रहेगा। फिर सबसे पहले हमने ही मुसलमानों के बीच से यह घर छोड़ा था। बताया कि दंगे के बाद 24 घंटे ऐसे बीते जिसमें बस हर पल मौत सामने नजर आ रही थी।

संभल में आगजनी व हत्याओं के बीच यही डर था कि न जाने किस समय भीड़ हमला कर उन्हें मार डालेगी। इसके बाद पीएसी की एक टुकड़ी आई तो थोड़़ी हिम्मत मिली। हम पीएसी वालों को खाना खिलाते थे क्योंकि वह हमारी रक्षा करते थे। साधना ने कहा कि उनके पुश्तैनी मौहल्ले का मंदिर खुलने की बात पता चली तो खुद को रोक नहीं पाई। बहुत अच्छा लग रहा है, प्रशासन ने अच्छा काम किया है। हमें बड़ी खुशी हुई है अब मंदिर में खोला गया है।

पुश्तैनी घर के पास जाकर पुरानी यादों में खो गईं साधना
खग्गू सराय के मंदिर में दर्शन पूजन के बाद अनिल रस्तोगी व उनकी पत्नी साधना रस्तोगी अपने उस पैत्रक मकान के पास पहुंचे जिसे दंगे बाद छोड़कर उन्होंने यहां से पलायन कर लिया था। मकान केे सामने जाते ही साधना पुरानी यादों में खो गईं। बोलीं यहीं रहता था हमारा परिवार,आज भी बाहर से तो घर में बहुत कुछ नहीं बदला है। फिर बताया कि उनके घर के आसपास किस हिंदू का कौन सा घर था। इतना ही नहीं अनिल रस्तोगी ने पत्नी के साथ उस पूरे इलाके का चक्कर लगाकर सभी घरों को देखा जहां हिंदू परिवार रहते थे।

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