क्यों अड़े किसान

क्यों अड़े किसान

फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के कानून व अन्य मांगों को लेकर किसान फिर से राष्ट्रीय राजधानी में विरोध प्रदर्शन पर अड़े हुए हैं। हालांकि शुक्रवार को दर्जन भर किसान संगठनों के ‘दिल्ली कूच’ को हरियाणा पुलिस ने शंभू सीमा पर रोक लिया।

इसके बाद आंदोलन कर रहे किसान पीछे हट गए हैं। किसानों का कहना है कि वे शनिवार को फिर आकर बॉर्डर पर प्रदर्शन करेंगे। इस बीच केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यसभा में कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार सभी कृषि उपजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदेगी। मोदी सरकार पहले से ही किसानों को लाभकारी मूल्य दे रही है।

चौहान ने कहा कि धान, गेहूं, ज्वार, सोयाबीन को तीन साल पहले से ही उत्पादन लागत से 50 प्रतिशत अधिक कीमत पर खरीदा जा रहा है। उन्होंने वस्तुओं की दरों में गिरावट होने पर निर्यात शुल्क और कीमतों को बदलने में हस्तक्षेप का भी हवाला दिया। बहरहाल भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का 17 फीसदी से अधिक का योगदान है और देश के कार्यबल में करीब 47 फीसदी कृषि और किसान का योगदान है। देश की करीब दो-तिहाई आबादी कृषि के भरोसे है। किसान की आय से अधिक खर्च बढ़े हैं और प्रति किसान 91,000 रुपए से अधिक का कर्ज है। 

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी किसानों को लेकर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से सवाल किए हैं। यह पहली बार है कि उपराष्ट्रपति ने कृषि मंत्री से ऐसे सवाल किए हैं। उपराष्ट्रपति का सवाल है कि देश का किसान लगातार परेशान, पीड़ित और आंदोलित क्यों है? वास्तव में यदि एक बार फिर राजधानी दिल्ली या उसके आसपास के क्षेत्रों में किसान लामबंद होते हैं, तो चौतरफा जन-व्यवस्था अराजक हो जाएगी। दूसरी ओर कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी कोई समाधान नहीं है। सिर्फ खुला बाजार देने से ही किसान के हालात बदल सकते हैं। सवाल है कि किसान फिर से आंदोलन पर उतारूं क्यों हैं।

आंदोलित किसानों की सबसे अहम मांग यही है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए। लेकिन सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक संकेत अभी तक नहीं आया है। जब पिछला किसान आंदोलन समाप्त कराया गया था, तो  एक समिति गठित की गई थी, जिसकी अध्यक्षता पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल को सौंपी गई थी। उन्हें तीन कथित काले कृषि कानूनों का प्रारूपकार माना जाता रहा है। उस समिति की बीते दो साल से अधिक अवधि के दौरान करीब 100 बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन समिति की रपट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन क्यों। 

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