इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : योग्य उम्मीदवार द्वारा मामूली अपराध की सूचना न देने की गलती को अनदेखा किया जा सकता है

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : योग्य उम्मीदवार द्वारा मामूली अपराध की सूचना न देने की गलती को अनदेखा किया जा सकता है

अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक नियुक्ति मामले पर विचार करते हुए कहा कि किसी नियोक्ता द्वारा किसी उम्मीदवार को केवल आपराधिक मामलों का खुलासा न करने के आधार पर  नियुक्ति देने से इनकार करना अन्यायपूर्ण और अविवेकपूर्ण होगा। किसी उम्मीदवार द्वारा आपराधिक मामले का खुलासा न करने की स्थिति में नियुक्ति के लिए उनकी उपयुक्तता का आकलन करते समय आरोपों की प्रकृति और गंभीरता, मुकदमे का परिणाम तथा उम्मीदवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति जैसे कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मामला किसी मामूली प्रकृति का है या छोटा अपराध है तो नियोक्ता तथ्य को दबाने या गलत सूचना देने की गलती को अनदेखा कर सकता है, बशर्ते आवेदक नियुक्ति के लिए अयोग्य न हो। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय की एकलपीठ ने आशीष कुमार राजभर की याचिका को स्वीकार कर बलिया के पुलिस अधीक्षक के उस आदेश को रद्द करते हुए की, जिसमें याची के कांस्टेबल पद पर नियुक्ति के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि उसने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को छुपाया था। कोर्ट ने सचिव, गृह विभाग (पुलिस अनुभाग), सचिव, उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड, एसपी (कार्मिक) उत्तर प्रदेश पुलिस मुख्यालय और बलिया के एसपी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि याची को 2015 में अधिसूचित भर्ती के अनुसरण में कांस्टेबल के पद पर नियुक्त करते हुए उचित नियुक्ति पत्र जारी किया जाए। याची अपनी नियुक्ति के परिणामस्वरूप वेतन और अन्य भत्ते तथा वरिष्ठता सहित सेवा लाभों का हकदार होगा।

मामले के अनुसार याची उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड द्वारा वर्ष 2015 में जारी विज्ञापन के अनुसरण में उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल पद के लिए चुना गया था। चयनित अभ्यर्थियों से कोर्ट में विचाराधीन अपराधिक मामले के संबंध में हलफनामा दाखिल करने को कहा गया था। याची ने हलफनामा दाखिल कर उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज न होने की बात कही। हालांकि बाद में उन्हें पता चला कि उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था, जिसका उल्लेख हलफनामे में नहीं किया गया था। याची ने बाद में एक दूसरा हलफनामा दाखिल कर बताया कि उनका नाम चार्जशीट में नहीं था, लेकिन उनकी नियुक्ति के लिए जिला मजिस्ट्रेट की सिफारिश के बावजूद बलिया के पुलिस अधीक्षक ने इस आधार पर उनके दावे को खारिज कर दिया कि प्रारंभिक हलफनामे में आपराधिक मामला छुपाया गया था।

याची ने एसपी के उपरोक्त आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। अंत में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सूचना छिपाने वाले उम्मीदवार को भी यह अधिकार होता है कि उसके साथ मनमाने ढंग से व्यवहार न किया जाए तथा शक्ति का प्रयोग उचित तरीके से किया जाना चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल दोषसिद्धि से ही उम्मीदवार अयोग्य नहीं हो जाता है बल्कि दोषसिद्धि से जुड़ी परिस्थितियों और उम्मीदवार की वर्तमान स्थिति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

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