ALERT! डार्क जोन बनने की राह पर लखनऊ, रिचार्ज होने से ज्यादा धरती की कोख से जा रहा है निकाला पानी

पिछले एक दशक में सर्वाधिक नीचे पहुंचा जल स्तर

ALERT! डार्क जोन बनने की राह पर लखनऊ, रिचार्ज होने से ज्यादा धरती की कोख से जा रहा है निकाला पानी

(मार्कण्डेय पांडेय) लखनऊ, अमृत विचार: शहर की जीवन रेखा कहे जाने वाली गोमती की जलधारा धीरे-धीरे सिमट रही है। कुकरैल नदी, प्रदूषण और प्रवाह के संकट से जूझते हुए खत्म होती जा रही है। बक्शी का तालाब और अन्य जलाशयों की स्थिति भी गंभीर है। मानक से अधिक नीचे जलस्तर चला जाने पर केंद्रीय भूमिजल बोर्ड ने चिंता जताते हुए रिपोर्ट जारी की है। इसमें कहा गया है कि यदि भूजल का दोहन जल्द न रोका गया तो राजधानी लखनऊ डार्क जोन बनने की राह पर तेजी से अग्रसर है।

70 फीसदी से कम जलादोहन सुरक्षित
खास बात यह है कि रिचार्ज होने से पांच फीसदी ज्यादा जल का दोहन किया जा रहा है। वर्ष 2023 और 2024 के भूजल दोहन को लेकर ताजा रिपोर्ट चिंताजनक है। शहर में 105 फीसदी जल का दोहन किया जा रहा है। वर्षा या अन्य माध्यमों से जितना भूजल रिचार्ज हो रहा है उससे 5 फीसदी अधिक जल निकासी की जा रही है। भूजल निकासी को लेकर चार श्रेणियां निर्धारित की जाती हैं जिसमें कि 70 फीसदी से कम दोहन को सुरक्षित माना जाता है। 70 से 80 फीसदी दोहन को खतरनाक की श्रेणी में रखा जाता है। 90 से 100 को अति खतरनाक जबकि 100 फीसदी से अधिक भूजल दोहन होने पर इसे डार्क जोन में माना जाता है।

पानी की जरूरत एक वर्ष में 945 एमएलडी हो जाएगी
केंद्रीय भूजल बोर्ड के लखनऊ शहर की रिपोर्ट के अनुसार सिंचाई, उद्योग और पेयजल के लिए कुल 7896 हेक्टेयर प्रति मीटर पानी निकाला गया। जबकि 7545 हेक्टेयर मीटर भूजल को रिचार्ज किया गया है। साल 2021 में लखनऊ जल संस्थान 404 एमएलडी भूजल से और 400 एमएलडी पानी नहरों से आपूर्ति कर रहा था। अगले एक साल में लखनऊ शहर में पानी की मांग 925 से बढ़कर 945 एमएलडी होने का अनुमान है।

बागों का शहर कहा जाता लखनऊ
लखनऊ शहर में बागों की प्रचुरता रही है। यहां के मुहल्लों और स्थानों के नाम में भी बाग शब्द जुड़ा हुआ है। प्रदेश की औसत हरियाली इंडेक्स में भी शहर का स्थान हमेशा अच्छा रहा है। जिसका एक मात्र कारण भूजल की प्रचुर मात्रा का होना है। शहर के भूजल में योगदान देने के लिए गोमती का योगदान तो है ही, इसी के साथ कुकरैल नदी, बक्शी का तालाब, अखाड़ी नाला, झिलींगी नाला, बेहटा नाला, लोनी नदी, कुकरैल नाला, सई नदी, बंख नाला, नलवा नाला आदि का भी योगदान रहा है। जो तेजी से विलुप्त होते जा रहे हैं।

सीजीडब्लूपी ने जो रिपोर्ट दी है, वह चेतावनी परक है। जिस प्रकार से दोहन हो रहा है वह चिंताजनक है। ऐसे समाचार जनमानस में आने चाहिए जिससे लोगों में जागरुकता आती है। भूजल रिचार्ज के स्रोत को संरक्षित करना, वर्षा जल संचयन, भूजल का अपव्यय न करना आदि कुछ उपायों को अपनाकर हम इस चुनौती से निपट सकते हैं। हमें अपनी नदियों, नहरों, तालाबों आदि का संरक्षण करना होगा।
डॉ. ध्रुवसेन सिंह, विभागाध्यक्ष, भूगर्भ विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय

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