High Court ने अपर मुख्य सचिव को लगाई फटकार, सीएम के कार्यक्रम की बात कह नहीं पहुंचे थे हाई कोर्ट
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अधिकारी द्वारा मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कोर्ट में सुनवाई के दौरान उपस्थिति से छूट मांगने पर कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि किसी अन्य संवैधानिक प्राधिकारी द्वारा तय कार्यक्रम के कारण न्यायालय की कार्यवाही में देरी नहीं होनी चाहिए, जिसमें अवमाननाकर्ता की उपस्थिति आवश्यक है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय की एकलपीठ ने लक्ष्मण प्रसाद कुशवाहा द्वारा वर्ष 2009 में दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
याचिका में हाई कोर्ट के उस आदेश का पालन न करने का आरोप लगाया गया था, जिसमें प्राधिकारियों को उनका वेतन और बकाया वेतन स्वीकृत करने का निर्देश दिया गया था। इस वर्ष सितंबर में कोर्ट को बताया गया कि रिट न्यायालय के आदेश पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है, जिस पर कोर्ट ने बेसिक शिक्षा निदेशक , प्रमुख सचिव (बेसिक शिक्षा) और यूपी सरकार के प्रमुख सचिव (वित्त) को याची को बकाया वेतन और ब्याज के रूप में 1,25,92,090 रुपये का भुगतान 30 सितंबर 2024 तक किए जाने का निर्देश दिया था।
कोर्ट ने आगे निर्देशित किया था कि संबंधित अधिकारी या तो कोर्ट द्वारा पारित आदेश का पूर्ण अनुपालन दर्शाते हुए अनुपालन हलफनामा दाखिल करें या आरोप तय करने के लिए व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित हों। इस पर 3 अक्टूबर को शिक्षा निदेशक (बेसिक) ने कोर्ट में उपस्थित होकर अपनी छूट की अर्जी दाखिल की, जिसमें कहा गया कि रिट न्यायालय के आदेश के खिलाफ दाखिल विशेष अपील में पारित आदेश की समीक्षा के लिए पुनर्विचार अर्जी दाखिल की गई है। उन्होंने कार्यवाही स्थगित करने की भी मांग की। हालांकि कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव (बेसिक शिक्षा) ने भी हलफनामा दाखिल कर कहा कि उन्हें एक जनहित याचिका के सिलसिले में हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष उपस्थित होना जरूरी है, इसलिए उन्होंने कोर्ट में उपस्थित होने से छूट की प्रार्थना की। कोर्ट ने उनकी अर्जी स्वीकार कर ली। इसके बाद अपर मुख्य सचिव (वित्त) ने भी इस आधार पर छूट का अनुरोध किया कि उन्हें मिशन शक्ति, चरण -5 नामक योजना के उद्घाटन कार्यक्रम में उपस्थित होना आवश्यक है, जिसमें मुख्यमंत्री भाग ले रहे हैं।
कोर्ट ने उनके अनुरोध की निंदा करते हुए कहा कि संबंधित प्राधिकारी का तर्क ऐसा नहीं था कि उनकी अनुपस्थिति को माफ किया जा सके, लेकिन अपर मुख्य सचिव (वित्त) के पद को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने उनकी अनुपस्थिति को माफ कर उन्हें चेतावनी दी कि अगर अगली निर्धारित तिथि तक कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया गया तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। मामले की अगली सुनवाई आगामी 11 नवंबर को सुनिश्चित की गई है।
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