भारत लैंगिक समानता में कर रहा प्रगति, पर सामाजिक मानक और सुरक्षा के मुद्दे बाधा...सरां अधिकारियों ने साझा किए विचार  

भारत लैंगिक समानता में कर रहा प्रगति, पर सामाजिक मानक और सुरक्षा के मुद्दे बाधा...सरां अधिकारियों ने साझा किए विचार  

नई दिल्ली। भारत में हाल के वर्षों में लैंगिक समानता की दिशा में तेजी से प्रगति हुई है और जमीनी स्तर पर महिलाओं के नेतृत्व पर अधिक निवेश किया गया है और इस विषय पर ध्यान दिया गया है, लेकिन सामाजिक मानदंड, कार्यबल में सीमित भागीदारी और सुरक्षा उपायों में अंतर पूर्ण लैंगिक समानता में बाधा उत्पन्न करते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने ये विचार प्रकट किए। 

संयुक्त राष्ट्र महिला रणनीतिक साझेदारी के निदेशक डैनियल सेमोर और भारत में संयुक्त राष्ट्र महिला की प्रतिनिधि सुजैन जेन फर्ग्यूसन ने एक साक्षात्कार में भारत की प्रगति और शेष चुनौतियों पर अपने विचार साझा किए। दोनों महिला अधिकारियों ने साक्षात्कार के दौरान महिला सशक्तीकरण और लिंग-संवेदनशील नीतियों में भारत के बढ़ते निवेश पर प्रकाश डाला और इस बात पर जोर दिया गया कि सामाजिक मानदंड की गहरी जड़ें और सीमित वित्तपोषण पूर्ण प्रगति में बाधा बन रहे हैं। फर्ग्यूसन ने कहा, ‘‘भारत की प्रगति उल्लेखनीय है, लेकिन शेष अंतरों को पाटने के लिए सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में लक्षित प्रयासों की आवश्यकता है।’’ 

भारत के केंद्रीय बजट 2024-25 की लैंगिक बजट ब्योरा (जीबीएस) के मुताबिक, भारत ने हाल के वर्षों में पर्याप्त वृद्धि देखी है, विशेष रूप से लिंग-उत्तरदायी बजट में, जो बढ़कर 6.8 प्रतिशत हो गई है। फर्ग्यूसन ने कहा, ‘‘सार्वजनिक निवेश में यह वृद्धि महिलाओं के जीवन को बदलने के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर जब यह महिलाओं और लड़कियों की विशिष्ट आवश्यकताओं की ओर निर्देशित हो।’’ उन्होंने इस बात पर बल दिया कि स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक अवसरों जैसे क्षेत्रों में शेष अंतराल को पाटने के लिए इस बजट का निरंतर विस्तार आवश्यक है। फर्ग्यूसन ने कहा कि सार्वजनिक निवेश में वृद्धि के बावजूद, इन लक्ष्यों को पूरी तरह प्राप्त करने के लिए निजी क्षेत्र का निवेश आवश्यक बना हुआ है।

 उन्होंने कहा, ‘‘हम महिला सशक्तीकरण पहलों के लिए निवेश बढ़ाने हेतु भारतीय व्यवसायों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि महिलाओं के जमीनी स्तर के नेतृत्व में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है, जहां पंचायतों और स्थानीय सरकारी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है। फर्ग्यूसन ने बताया कि कुछ राज्यों ने इन स्तरों पर लैंगिक समानता हासिल कर ली है, जबकि संसद में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के पारित होने से भारत के राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य पर परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।

 फर्ग्यूसन ने कहा, ‘‘जमीनी स्तर की राजनीति में भारत की मजबूत भागीदारी वैश्विक स्तर पर सर्वोत्तम अभ्यास है, फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर अधिक मजबूत महिला प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए नए आरक्षण को लागू करने सहित राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।’’ हालांकि, दोनों अधिकारियों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में लिंग आधारित हिंसा (जीबीवी) एक सतत मुद्दा बना हुआ है, जो महिलाओं की सुरक्षा और स्वतंत्रता में बाधा डालते हैं। सीमोर ने कहा कि भारत के मजबूत कानूनी ढांचे के बावजूद, प्रवर्तन और सांस्कृतिक मानदंड प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालते हैं।

 फर्ग्यूसन ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पुलिस को प्रशिक्षित करने तथा महिला सुरक्षा पर केन्द्रित सामुदायिक पुलिसिंग प्रयासों को लागू करने के लिए राज्य सरकारों के साथ सहयोग कर रहा है। सरकार की कई योजनाएं हैं, यथा- महिलाओं के नेतृत्व वाले पुलिस थाने और महिलाओं के लिए विशेष रूप से ‘पिंक पुलिस थाना’; हेल्पलाइन और ‘वन स्टॉप सेंटर’।

 संयुक्त राष्ट्र महिला भारत कार्यालय इस सहायता को मजबूत करने में सहायता करता है। भारत में संयुक्त महिला के काम का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी में प्रणालीगत बाधाओं को दूर करना है। फर्ग्यूसन ने बताया कि सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर बढ़कर लगभग 37 प्रतिशत हो गई है, लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं। उन्होंने कहा, ‘‘बाल देखभाल, सुरक्षित परिवहन और कार्यस्थल सुरक्षा में सही निवेश के साथ, महिलाएं अधिक आर्थिक अवसरों तक पहुंच सकती हैं।

ये भी पढे़ं : ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई बोले- इजराइल के हमले को न तो बढ़ा-चढ़ाकर और न ही कम करके बताया जाना चाहिए