गाजियाबाद के सिविल न्यायालय में अधिवक्ताओं पर हमले का सीसीटीवी फुटेज हाईकोर्ट ने किया तलब

गाजियाबाद के सिविल न्यायालय में अधिवक्ताओं पर हमले का सीसीटीवी फुटेज हाईकोर्ट ने किया तलब

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन), गाजियाबाद के समक्ष एक दीवानी मुकदमे से संबंधित आवेदन प्रस्तुत करते समय दो अधिवक्ताओं पर कथित हमले के बाद सीसीटीवी फुटेज एक सीलबंद लिफाफे में कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। 

उक्त आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति सैयद कमर हसन रिजवी की खंडपीठ ने रोहित और भवनीश गोला की याचिका को आगामी 7 नवंबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए पारित किया। इसके साथ ही कोर्ट ने विपक्षी द्वारा दर्ज मामले में याचियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश भी दिया। याचीगण गाजियाबाद जिला न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ता हैं। 

सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के समक्ष एक दीवानी मुकदमे से संबंधित आवेदन प्रस्तुत करते समय 18 सितंबर, 2024 को उन पर हमला किया गया। इस घटना की सूचना तुरंत आपातकालीन हेल्पलाइन के माध्यम से पुलिस को दी गई थी। हालांकि अगले दिन उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई होने से पहले विपक्षियों ने उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर दी। 

याचियों ने 19 सितंबर 2024 को उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग को लेकर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले के अनुसार याचीगण गाजियाबाद में एक आवासीय संपत्ति के स्वामित्व और कब्जे से जुड़े संपत्ति विवाद में यतेंद्र शर्मा नामक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। शर्मा ने स्वामित्व का दावा किया और निषेधाज्ञा मांगी, जिसके कारण गाजियाबाद न्यायालय में दीवानी मुकदमा दाखिल किया गया। 

जनवरी 2023 में गाजियाबाद कोर्ट ने शर्मा को घर वापस लौटाने का आदेश दिया, लेकिन कथित तौर पर प्रवेश रोक दिया गया, जिसके कारण शर्मा के अधिवक्ता ने पुलिस सहायता का अनुरोध किया। विपक्षियों ने इस आदेश को चुनौती दी और मई 2024 में अंतरिम रोक हासिल कर ली। असंतुष्ट शर्मा के अधिवक्ता ने कोर्ट से राहत मांगी, जिसे अगस्त में रोक हटा दी, तथा पुनः प्रवेश के प्रयासों को आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी। 

कोर्ट के आदेश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। 18 सितंबर को संभावित केस ट्रांसफर के बारे में जानने के बाद अधिवक्ता रोहित गोला ने आवेदन 175-सी दाखिल किया, जिसमें आग्रह किया गया कि केस को ट्रांसफर न किया जाए, क्योंकि बहस चल रही थी और उच्च न्यायालय ने शीघ्र निस्तारण का आदेश दिया था। कथित तौर पर आवेदन पर सुनवाई के दौरान विपक्षियों द्वारा व्यवधान उत्पन्न करते हुए याचियों के साथ विवाद और हाथापाई की गई।