हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, परिस्थितियां बदलने पर शादी के वादे का उल्लंघन दुष्कर्म नहीं
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले पर विचार करते हुए कहा कि शादी का हर वादा सहमति से यौन संबंध बनाने के लिए पीड़िता को गुमराह करने के तौर पर किया गया हो, यह जरूरी नहीं है, जब तक यह सिद्ध ना हो जाए कि शादी का ऐसा वादा रिश्ते की शुरुआत से ही आरोपी की ओर से झूठा था।
मौजूदा मामले में शुरुआत में सद्भावना के साथ विवाह का वादा किया गया, लेकिन बाद में परिस्थितियां बदलने पर पक्षकारों के संबंध बिगड़ने के कारण वादे का उल्लंघन हुआ, जो मायने नहीं रखता। वादे के ऐसे उल्लंघन को शारीरिक संबंध स्थापित करने की सहमति प्राप्त करने के लिए गलतफहमी के रूप में नहीं माना जा सकता है।
उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की एकलपीठ ने श्रेय गुप्ता की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। वर्तमान मामले में शिकायतकर्ता सक्षम आयु वर्ग से संबंधित है जो ऐसे शारीरिक संबंधों के जोखिम को समझती है, क्योंकि विवाह और विवाह के वादे में बहुत अंतर होता है और वह इस अंतर को समझ पाने में पूर्ण सक्षम है। इसके बावजूद उसने अपने बेटों की उम्र के बराबर याची के साथ शारीरिक संबंध बनाए। ऐसी परिस्थितियों में याची के द्वारा शिकायतकर्ता के पति की मृत्यु के बाद किया गया विवाह का वादा कोई अर्थ नहीं रखता है, क्योंकि महिला खुद अपने पति की लंबी बीमारी और मृत्यु के बाद याची के साथ शारीरिक संबंध बनाने की इच्छुक थी।
उसकी आयु याची के साथ विवाह करने के लिए उपयुक्त नहीं थी। मामले की परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याची महिला के पति के व्यवसाय में कर्मचारी था। आर्थिक निर्भरता होने के कारण महिला ने याची को गैर कानूनी रिश्ते में प्रवेश करने के लिए बहकाया और मजबूर किया, इसलिए आईपीसी की धारा 375 के तहत यहां कोई मामला नहीं बनता है। इसके अलावा कोर्ट ने याची के खिलाफ महिला थाना, मुरादाबाद में आईपीसी की धारा 376 और 386 के तहत दर्ज मामले की संपूर्ण आपराधिक कार्यवाही और आरोप पत्र को ख़ारिज कर दिया
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