Kanpur: डॉक्टर बोले- करियर की चिंता से किशोरों में बढ़ रहा तनाव, हो रहे हिंसक, एसजीपीजीआई पहुंच रहे इलाज कराने
कानपुर, अमृत विचार। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं मौजूदा समय में तेजी से बढ़ रही हैं। इसकी गिरफ्त में बड़े ही नहीं, बच्चे और किशोर-किशोरी भी आ रहे हैं। अच्छे नंबर लाने और मनचाही नौकरी हासिल करने की चिंता में कई किशोर एंजाइटी (तनाव) के शिकार और कुछ किशोर हिंसक भी हो रहे हैं। एसजीपीजीआई, लखनऊ में 15 से 18 वर्ष के ऐसे किशोर भी इलाज के लिए पहुंच रहे हैं, जिनमें कानपुर के किशोर भी शामिल हैं।
हैलट अस्पताल में एडवांस लाइफ सपोर्ट कार्यशाला में लखनऊ एसजीपीजीआई की नोडल डॉ.पियाली भट्टाचार्य ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वर्तमान में 15 से 18 वर्ष के किशोर पढ़ाई में अच्छे नंबर लाने और अच्छा करियर बनाने की चिंता में परेशान हैं। जिसकी वजह से किशोर एंजाइटी के शिकार हो रहे हैं। समय पर उपचार न किया जाए तो इसके कारण कई तरह की गंभीर शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं का भी जोखिम हो सकता है।
उन्होंने बताया कि वह करीब 10 साल से ऐसे बच्चों की काउंसलिंग कर रही हैं, प्रतिमाह उनके पास आठ से 10 बच्चे इन समस्याओं से ग्रस्त होकर पहुंच रहे हैं, जिनमें कानपुर के भी किशोर शामिल हैं। चिंता की वजह से वह पहले सबसे दूर हो जाते हैं और खुद को सीमित कर लेते हैं। यह अकेलापन फिर उनको हिंसक बनाता है और फिर वह घर में ही चोरी जैसी घटनाएं करने लगते हैं।
उच्च वर्ग के बच्चे ड्रिंक, ड्रग आदि नशे का सेवन करने लगते हैं। ऐसे बच्चों को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए। उनती गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। उनके साथ दोस्त की तरह बर्ताव करना चाहिए। उन्होंने बताया कि कोविड के बाद से किशोरों में एंजाइटी व हिंसक होने की समस्या 20 से 30 प्रतिशत बढ़ी है।
आता है पसीना, होती बेचैनी, घबराहट व धड़कन तेज
डॉ. पियाली भट्टाचार्य ने बताया कि एंजाइटी को चिंता विकार के तौर पर भी जाना जाता है। ये समस्या, डर, भय और बेचैनी की भावना को व्यक्त करती है। इसमें पसीना आ सकता है, बेचैनी और घबराहट महसूस हो सकती है और दिल की धड़कन भी तेज हो सकती है।
एंजाइटी की समस्या क्षणिक होती है, हालांकि कुछ स्थितियों में इसके दीर्घकालिक दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। एंजाइटी की दिक्कत ठीक नहीं होने और समय के साथ बढ़ने पर इसे एंजाइटी डिसऑर्डर बोला जाता है। ये समस्या संबंधित किशोर की दैनिक गतिविधियों को भी प्रभावित कर सकती है।
मोबाइल व सोशल मीडिया बढ़ा रहा परेशानी
उन्होंने बताया कि आमतौर पर किशोर और युवा इस तरह की मानसिक दिक्कतों से उबरने के लिए अपने दोस्त, शिक्षक और परिवार के सदस्यों की मदद लेते हैं। ऐसे में सही सलाह या मदद न मिलने के कारण उनकी समस्या ज्यादा बढ़ सकती है।
किशोर या युवा अब एक-दूसरे से सीधे जुड़ने के बजाय मोबाइल या लैपटॉप पर सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। नतीजतन वह अपनी बात भी खुलकर साझा नहीं कर पाते। यह स्थिति उनके मानसिक स्वास्थ्य को और भी ज्यादा प्रभावित कर रही है।