खत्म होगा हमास और फतह का वर्षों से जारी मतभेद, बीजिंग में घोषणापत्र पर किए हस्ताक्षर 

खत्म होगा हमास और फतह का वर्षों से जारी मतभेद, बीजिंग में घोषणापत्र पर किए हस्ताक्षर 

रामल्ला (वेस्ट बैंक)। फिलिस्तीन के प्रतिद्वंद्वी समूहों हमास और फतह ने वर्षों से जारी आपसी मतभेदों को खत्म करने के लिए बीजिंग में एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए। चीन की सरकारी मीडिया ने मंगलवार को यह जानकारी दी। गाजा पट्टी में गहराते युद्ध संकट के बीच यह घोषणापत्र हमास और फतह को एकजुट करने के लिए जारी कई दौर की बातचीत का नतीजा है। हालांकि, दोनों पक्ष आपसी मतभेद दूर करने के लिए पहले भी कई ऐसे घोषणापत्र पर दस्तखत कर चुके हैं, जो विफल रहे हैं, ऐसे में इस बात को लेकर संदेह पैदा हो गया है कि क्या चीन प्रायोजित वार्ता से वास्तव में कोई समाधान निकल सकता है। 

इस घोषणापत्र पर ऐसे समय में हस्ताक्षर किए गए हैं, जब इजराइल और हमास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थित संघर्ष-विराम प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं, जो गाजा पट्टी में नौ महीने से जारी युद्ध को समाप्त कर सकता है और हमास द्वारा बंधक बनाए गए दर्जनों इजराइली नागरिकों की आजादी का रास्ता खोल सकता है। हालांकि, समझौते पर सहमति बनने के बावजूद युद्ध के बाद गाजा पट्टी की स्थिति को लेकर संशय बरकरार रहेगा, क्योंकि इजराइल क्षेत्र के शासन में हमास को कोई भी प्रतिनिधित्व देने के खिलाफ है। 

सरकारी प्रसारणकर्ता ‘सीसीटीवी’ के मुताबिक, फलस्तीन के दोनों प्रतिद्वंद्वी समूहों ने “मतभेद खत्म करने और फलस्तीनी एकता को मजबूत करने” के संबंध में बीजिंग घोषणापत्र पर दस्तखत किए। चीनी टेलीविजन चैनल ‘सीजीटीएन’ ने सोशल मीडिया मंच ‘वीबो’ पर एक पोस्ट में कहा कि फलस्तीन के दोनों प्रतिद्वंद्वी समूहों ने 12 अन्य राजनीतिक गुटों के साथ चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की और इसके साथ ही उनमें रविवार को शुरू हुई बातचीत का समापन हुआ।

बीजिंग में हालिया वार्ता के बाद जारी एक संयुक्त बयान में इस संबंध में कोई विवरण नहीं दिया गया है कि सरकार कब और कैसे बनेगी। इसमें केवल यह कहा गया है कि सरकार “गुटों के बीच सहमति से” बनाई जाएगी। हमास ने वर्ष 2007 में हिंसक संघर्ष के दौरान फलस्तीन के तत्कालीन राष्ट्रपति महमूद अब्बास के वफादार फतह लड़ाकों को गाजा पट्टी से खदेड़कर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद से ही दोनों समूह आमने-सामने रहे हैं। हालांकि, सत्ता को लेकर दोनों समूहों के बीच टकराव और फलस्तीन में हमास को शामिल करने वाली किसी भी सरकार को पश्चिम के मान्यता न देने से क्षेत्र में शांति और एकता कायम करने के प्रयासों को झटका लगा है। 

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