Unnao: स्कूलों में पढ़ाई करने के बजाय धान रोपाई कर रहे नौनिहाल, अभिभावक शिक्षा दिलाने की अपेक्षा पेट की आग बुझाने को दे रहे प्राथमिकता

धान रोपाई के सीजन में विद्यालयों में अनुपस्थित हो रहे 50 फीसदी विद्यार्थी

Unnao: स्कूलों में पढ़ाई करने के बजाय धान रोपाई कर रहे नौनिहाल, अभिभावक शिक्षा दिलाने की अपेक्षा पेट की आग बुझाने को दे रहे प्राथमिकता

उन्नाव, अमृत विचार। आर्थिक रूप से कमजोर ग्रामीण अभिभावक बच्चों की शिक्षा से अधिक पेट पालने को तवज्जो दे रहे हैं। यही कारण है कि शिक्षकों द्वारा नामांकन बढ़ाने की जद्दोजहद के बीच परिषदीय विद्यालयों खासकर उच्च प्राथमिक विद्यालयों से औसतन 50 फीसदी बच्चे अनुपस्थित हो रहे हैं। लाख कोशिशों के बाद भी अध्यापक सहित अन्य शिक्षण स्टाफ का अभिभावकों पर बस नहीं चल पा रहा है।

बारिश शुरू होने के साथ धान उत्पादक इस जिले के ग्रामीण इलाकों में जगह-जगह खेतों में धान रोपाई करते महिला व पुरुष खेतिहर मजदूर दिखाई देते हैं। पुरवा सहित कई तहसील क्षेत्रों में बहुतायत से धान की खेती होती है। धान रोपाई के चलते कई परिषदीय विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या 50 फीसदी तक घट गई है। 

विद्यालयों में खासकर उच्च प्राथमिक विद्यालयों से गायब होने वालों में छात्रों की अपेक्षा छात्राओं की संख्या अधिक है, क्योंकि वह अभिभावकों के साथ जहां खेतों में रोपाई में हाथ बंटाती हैं वहीं घरेलू कामकाज निपटाने सहित घर के छोटे बच्चों को संभालने का जिम्मा इन छात्राओं के कंधे पर डाल दिया जाता है।

अन्य जरूरतों पर खर्च हो जाती है डीबीटी धनराशि

ड्रेस, स्वेटर, बैग व जूता-मोजा खरीदने के लिए शासन से डीबीटी के जरिए अभिभावकों के खातों में जाने वाले 1200 रुपए अन्य जरूरतें भी पूरी करते हैं। शिक्षकों ने कहा कि डीबीटी धनराशि का सही उपयोग कराने को दबाव बनाना शिक्षकों के लिए घातक हो सकता है। इसलिए अभिभावकों को समझाया ही जा सकता है। बच्चों को न विद्यालयों ने निकाला जा सकता है और न अभिभावकों से जबरदस्ती हो सकती है।

औरास ब्लाक निवासी दिनेश के मुताबिक गांव निवासी किसान व खेतिहर मजदूरों की आजीविका खेती से ही चलती है। इसलिए सीजन पर आवश्यक होने पर खेती के काम में बच्चों का सहयोग लेना पड़ता है।

सुमेरपुर ब्लाक के सिरियापुर गांव के अभिभावक पिंकू सिंह के मुताबिक धान रोपाई 15-20 दिन होनी है। इस दौरान स्कूल न जाने पर क्या बिगड़ जाएगा। वैसे छुट्टियां होती ही रहती हैं।

बांगरमऊ निवासी रीता ने कहा कि खेती से ही परिवार का पेट पलता है। इसलिए धान रोपाई में पूरे परिवार को जुटना पड़ता है। समय पर रोपाई न पूरी होने पर उपज घटेगी। जिससे भरण-पोषण मुश्किल होगा। 

बांगरमऊ की राम दुलारी ने कहा कि कुछ दिन स्कूल न जाने पर पहाड़ नहीं टूटेगा। परिवार का गुजारा खेती से ही होना है। इसलिए बच्चों को शुरू से खेती में जुटाना पड़ता है। जिससे आगे चलकर भूखों न मरना पड़े।

परिषदीय शिक्षक महेंद्र सिंह कुशवाहा स्वीकार करते हैं कि कोई अभिभावक पूरी धनराशि संबंधित मदों में नहीं खर्च करता है। एक ही ड्रेस से काम चलाया जाता है। अधिकांश बच्चों के पास जूते-मोजे नहीं रहते हैं। वहीं बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल बैग के बजाए झोले का उपयोग करते हैं।

उच्च प्राथमिक विद्यालय शिवपुर (पड़री) के प्रधानाध्यापक एसके कनौजिया ने कहा कि लाख कोशिशों के बाद भी अभिभावक एक जोड़ी ड्रेस ही खरीदते हैं। आमतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर परिवार डीबीटी की धनराशि मिलते ही उससे अन्य जरूरतें पूरी कर लेते हैं। उनकी मजबूरी के सामने निरुत्तर होना पड़ता है।

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