दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बना रहा लिंब सेंटर

हादसे में हाथ पैर या उंगलियां गवां चुके लोगों के लिए केजीएमयू का लिंब सेंटर वरदान साबित हो रहा है

 दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बना रहा लिंब सेंटर

पंकज द्विवेदी,  लखनऊ। ऐसे हजारों लोग हैं। जिनकी उम्मीदों की डोर को किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय ( केजीएमयू) का लिंब सेंटर टूटने नहीं दे रहा है। साल में सैकड़ों की तादात में यहां कृतिम अंग लगाने का कार्य किया जाता है। केजीएमयू में फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन (पीएमआर) विभाग के प्रमुख प्रो.अनिल कुमार गुप्ता ने बताया कि लिंब सेंटर में रोजाना कई तरह के केस आते हैं।

किसी का हाई शुगर के चलते पैर या हाथ सड़ गया होता है तो किसी का पैर किसी इन्फेक्शन के चलते काटना पड़ता है। ज्यादत्तर सड़क दुर्घटना में घायल मरीज आते हैं जिनके अंग भंग होते हैं। कई तो ऐसे मरीज होते हैं जो अपने दोनों हाथ और पैर गवां चुके होते हैं। ऐसे लोगों की उम्मीद को हम टूटने नहीं देते हैं। यहां पर बेहतर इलाज मुहैया कराते हुए उन्हें कृत्रिम अंग लगा कर फिर से नई जिंदगी के लिए तैयार किया जाता है। बेहतर प्रशिक्षण से मरीज कृतिम अंग के साथ सामान्य लोगों की तरह ही चलने-फिरने लगता है।

केस- 1 : रायबरेली निवासी 13 वर्षीय किशोरी के जन्म से ही दोनों पैर पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुए थे। परिजनों ने कई जगह दिखाया। लेकिन कहीं से राहत नहीं मिली। किशोरी के साथ परिजन भी अवसाद में रहने लगे। केजीएमयू के लिंब सेंटर के बारे में जानकारी होने पर 23 अगस्त 2023 को यहां दिखाया गया। चिकित्सकों ने परीक्षण कर 5 सितंबर को पहला और 27 सितंबर को दूसरा ऑपरेशन किया। दोनों पैरों को घुटने के पास से काट कर एक आकार दिया गया। पैर के जख्म ठीक होने पर पैरों की नाप लेकर कृतिम पैर बना दिए गए हैं। अब उसे चलने की ट्रेनिंग दी जा रही है। किशोरी को अपने पैरों पर चलने की आशा मिली है। वह खुश है की अपने दोस्तों की तरह स्कूल जा सकेगी, खेल सकेगी अन्य काम भी सामान्य लोगों की तरह ही कर सकेगीं। चिकित्सकों का कहना है कि पैर न विकसित होने की बीमारी एक हजार बच्चों में से चार से पांच बच्चों में होती है।

केस-2 चित्रकूट की रहने वाली 28 वर्षीय युवती के शादी के तीसरे दिन हादसे के कारण पैर काटना पड़ा। पैर कटने के बाद ऐसा लगा जैसे नई जिंदगी शुरू करने से पहले ही उजड़ गई हो। युवती के ससुराल और मायके पक्ष के लोग अवसाद में आ गए। चित्रकूट से उसे लिंब सेंटर रेफर किया गया। यहां उसका इलाज के बाद पैर की नाप लेकर कृतिम पैर तैयार कर चलने की ट्रेनिंग दी गई। अब युवती दोबारा से अपने पैरों पर खड़ी हो गई है।

प्लासिटक पैर ककक

निजी कंपनियों के मुकाबले 90 फीसदी तक सस्ते 

प्रो.अनिल के मुताबिक सेंटर में पूरे प्रदेश से मरीज रेफर होकर आते हैं। सेंटर की खासियत यह है कि यहां चार से छह हजार रुपये में पैर व अन्य अंग बन जाते हैं। जबकि निजी कंपनियों में इसकी कीमत  50 से 60 हजार तक की होती है। इसके अलावा गरीबों के लिए सरकारी फंड और निजी संस्था के माध्यम से मुफ्त में भी अंग लगाए जा रहे हैं। 

प्रो.अनिल कुमार गुप्ता ने बताया कि लिंब सेंटर में कृतिम अंग बनाने का काम 1972 से किया जा रहा है। यहां उच्च तकनीक से कम पैसों में अंग उपलब्ध कराए जा रहे हैं। सबसे पहले जिसको कृत्रिम अंग लगाना होता है उसका पैर या हाथ सही आकार में काट कर सही माप लेते हैं। इसके बाद भौतिक चिकित्सा एवं पुनर्वास विभाग (डीपीएमआर डिपार्टमेंट) में सही पैर का मेजरमेंट किया जाता है  इसके बाद हमारी टीम मरीज के पहले पैर या हाथ जैसे ही कृत्रिम अंग तैयार करते हैं। इसके बाद मरीज को अंग पहनने की ट्रेनिंग दी जाती है। 

सीनियर प्रोस्थेटिस्ट एवं इंचार्ज प्रोस्थेटिक ऑर्थोटिक वर्कशॉप शगुन सिंह ने बताया कि सस्ते, टिकाऊ और हल्के उपकरण वर्कशाप में तैयार किए जा रहे है। हर महीने 500-600 दिव्यांगजनों को सेवाए दी जा रही है।विभाग में दूर दूर से आने वाले सभी दिव्यांगजनों को हरसंभव सेवा देने के लिए विभाग हमेशा तत्पर है।

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