NEET: बरेली के अभ्यर्थियों की मायूसी...615 से 650 अंक लाने के बाद नहीं मिल रहा सरकारी कॉलेज

NEET: बरेली के अभ्यर्थियों की मायूसी...615 से 650 अंक लाने के बाद नहीं मिल रहा सरकारी कॉलेज

शिवांग पांडेय, बरेली। नीट के परिणामों ने वैसे तो देश भर में भारी उलटफेर किया है लेकिन बरेली जैसे शहरों में इससे प्रभावित होने वाले अभ्यर्थियों की ज्यादा संख्या रहने की आशंका जताई जा रही है। आमतौर पर नीट में 720 में से 615- 650 तक अंक लाने वाले अभ्यर्थियों को केजीएमयू जैसा सरकारी मेडिकल कॉलेज मिल जाता था लेकिन इस बार उनके लिए यह दरवाजा बंद होता नजर आ रहा है।

अनुमानित तौर पर बरेली के आठ हजार अभ्यर्थी नीट में शामिल हुए थे जिनमें रिजल्ट पर भारी मायूसी दिखाई दे रही है। निचले आर्थिक स्तर के तमाम अभ्यर्थियों ने निजी मेडिकल कॉलेजों की महंगी फीस से बचने के लिए दोबारा परीक्षा में बैठने की तैयारी शुरू कर दी है।

नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए की ओर से 4 जून को घोषित परिणाम के मुताबिक नीट में शामिल हुए बरेली के करीब आठ हजार अभ्यर्थियों में से महज 350-400 ही सरकारी कॉलेजों के कट-ऑफ के मानक को पूरा कर पाए हैं। हालांकि इसके बावजूद उन्हें सरकारी कॉलेज मिलने के आसार काफी कम नजर आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण कुछ अभ्यर्थियों को ग्रेस मार्क्स मिलना बताया जा रहा है, जिसकी वजह से कटऑफ सामान्य के मुकाबले चार-पांच गुना तक ऊपर जाने के आसार जताए जा रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इस स्थिति में 650 से नीचे अंक लाने वाले अभ्यर्थी सरकारी कॉलेज में प्रवेश से वंचित रह सकते है।

नीट में कामयाब अभ्यर्थियों का कहना है कि पिछले बरसों में 720 में से 615- 650 तक अंक लाने वालों को आसानी से सरकारी मेडिकल कॉलेज मिल जाता था। लेकिन इस बार 720 में से 720 अंक पाने वाले ही 67 अभ्यर्थी हैं। इसके बाद 700 से ऊपर अंक प्राप्त करने वालों की संख्या भी 50 से ज्यादा है।

ऐसे में 615-650 के बीच अंक लाने वालों के लिए संकट खड़ा हो गया है। अब तक के रिकॉर्ड के मुताबिक बरेली में नीट की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के औसत अंक 615-650 के बीच ही रहते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नीट के परिणाम के अनुसार कटऑफ के तहत प्रवेश दिए जाएंगे तो 650 से ऊपर अंक लाने वाले बच्चों को भी केजीएमयू, जीएसवीएम कानपुर जैसे कॉलेजों में प्रवेश मिलना मुश्किल है।

नीट के अभ्यर्थियों में भी बने दो गुट
नीट का रिजल्ट जारी होने के बाद अभ्यर्थी भी दो खेमों में बंट गए हैं। एक खेमा दोबारा परीक्षा कराने की मांग कर रहा है, जबकि दूसरा खेमा ग्रेस मार्क्स हटाकर संशोधित परिणाम जारी कराना चाहता है। शनिवार को एनटीए की ओर से की कमेटी गठित करने के फैसले पर भी अभ्यर्थी बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं हैं। अभ्यर्थियों में इस बात पर भी काफी असंतोष है कि यह जांच कमेटी सिर्फ 16 सौ बच्चों के परिणाम का आंकलन करेगी।

एक-एक नंबर पर 50 बच्चों की रैंक होगी प्रभावित
कोचिंग संचालक मनोज शर्मा के मुताबिक देश में नीट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद प्रवेश के लिए सरकारी मेडिकल कॉलेजों में लगभग 52 हजार सीटें हैं। हर साल इन सीटों पर प्रवेश के लिए रैंक के आधार पर कट ऑफ जारी कर विद्यार्थियों को काउंसिलिंग के लिए बुलाया जाता है।

इस साल जारी परिणामों के अनुसार एक-एक नंबर पर 50 से अधिक बच्चों की रैंक प्रभावित होगी। इस वजह से अच्छे विद्यार्थियों को टॉप के सरकारी कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिलेगा। मजबूरी में उन्हें औसत स्तर के विद्यालयों में ही अध्ययन को जारी रखना पड़ेगा। कुछ को दोबारा परीक्षा की तैयारी करनी होगी। यह उनके साथ बड़ा अन्याय है।

यहां ग्रेस मार्क्स नहीं, लेकिन नुकसान भरपूर
नीट की कोचिंग चला रहे विशाल वार्ष्णेय के मुताबिक बरेली का कोई भी बच्चा ऐसा नहीं है कि जिसे ग्रेस मार्क्स मिले हों। यहां के विद्यार्थियों को उनकी मेहनत के अनुरूप ही नंबर मिले हैं। ऐसे में जिन विद्यार्थियों को ग्रेस के नंबर मिले हैं, वे इन बच्चों की रैंक का नुकसान निश्चित तौर पर करेंगे।

नीट की परीक्षा से पहले पेपर आउट होने की खबर के बाद एनटीए पैनिक मोड पर आ गया। संभवत: इसी कारण एनटीए की ओर से आनन-फानन परिणाम भी तय तिथि से पहले जारी कर दिए गए। बाकी बची कसर परिणाम की अनियमितताओं ने पूरी कर दी। विद्यार्थियों से अपील है कि वे अगले पेपर की तैयारियों पर ध्यान दें।

मेहनती बच्चों को हुआ ज्यादा नुकसान
नीट की कोचिंग चलाने वाले मोहम्मद कलीमुद्दीन कहते हैं कि नीट की परीक्षा में गड़बड़ पेपर आउट होने के साथ ही सामने आनी शुरू हो गई थी। एनटीए की ओर से पेपर आउट होने के गंभीर मामले पर भी बेपरवाही दिखाई गई और परिणाम भी 4 जून को निर्धारित तिथि से 10 दिन पहले जारी कर दिया गया।

इसी वजह से नीट के रिजल्ट पर तमाम सवाल खड़े हुए हैं। ज्यादा नुकसान मेहनती बच्चों का हुआ है। एनटीए की तरफ से गठित कमेटी भी सिर्फ 16 सौ बच्चों का आंकलन करेगी जो एकतरफा ही रहने की आशंका है। संशोधित परिणाम जारी होने से ही विद्यार्थियों को कुछ लाभ मिल सकता है।

यह रिजल्ट हमारे लिए निराशापूर्ण
मैं एक साल से नीट की परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं। इस बार परीक्षा में 604 अंक आए हैं, लेकिन इसके बाद भी सरकारी मेडिकल कॉलेज मिलने के आसार नहीं लग रहे हैं। इसका मुख्य कारण 67 बच्चों के पूरे अंक ले आना है। इससे हमारी रैंक प्रभावित हुई है। एनटीए को दोबारा परीक्षा कराने का निर्णय लेना चाहिए- पवन कुमार, नकटिया

- मैंने परीक्षा के लिए एक साल का ड्रॉप लिया था। परीक्षा में 550 अंक आएं है लेकिन तमाम बच्चों को ग्रेस मार्क्स दे दिए जाने से मेरा प्रवेश सरकारी कॉलेज में नहीं हो पा रहा है। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इस वजह से मैं निजी मेडिकल कालेज में प्रवेश नहीं ले सकती। मुझे एक बार फिर परीक्षा देनी पड़ेगी।- नैंसी मीना, इंद्रा नगर

- मैं दो साल बरेली में रहकर तैयारी कर रही हूं। इस बार परीक्षा पिछले साल से थोड़ा मुश्किल रही। पहले पेपर आउट होने की खबर ने परेशान किया, अब परिणाम जारी होने के बाद और ज्यादा चिंता हो रही है। एनटीए को अभ्यर्थियों के भविष्य से खिलवाड़ करने के बजाय पारदर्शिता के साथ संशोधित परिणाम जारी करना चाहिए- इरम, दातागंज

जेईई के बाद भी एनटीए पर उठे थे कई सवाल
नीट से पहले जेईई आयोजित करने के बाद भी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी पर कई सवाल उठे थे। दरअसल नवंबर में एनटीए ने नोटिस निकाला था कि सिलेबस को कम किया है लेकिन परीक्षा हुई तो अभ्यर्थियों ने पूरे सिलेबस के प्रश्न उसमें शामिल करने का आरोप लगाया।

अभ्यर्थियों के मुताबिक इसके बाद जनवरी में हुआ पेपर इतना ज्यादा आसान था कि 99 फीसदी परसेंटाइल के लिए मार्क्स बहुत हाई चले गए। उनका सोचना था कि दो सौ अंकों पर उनकी परसेंटाइल 99 प्रतिशत बन जाएगी लेकिन यह परसेंटाइल 256 नंबरों के आसपास जाकर बनी। इससे पहले दो सौ के आसपास नंबरों पर ही 99 परसेंटाइल आ जाता था।

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