पीलीभीत: चुनावी माहौल बनाने में खूब काम आई बांसुरी, दम तोड़ते सुरों को कब मिलेगी रफ्तार
सुनील यादव, पीलीभीत, अमृत विचार। लोकसभा चुनाव में इस बार पीलीभीत के बाघ एवं बांसुरी का जमकर महिमा मंडन हुआ। देश के प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री समेत कई राजनेताओं ने चुनावी सभाओं में पीलीभीत की बांसुरी का जिक्र किया।
बांसुरी के एक जिला एक उत्पाद में शामिल होने और इस कारोबार को ऊंचाईयों तक ले जाने के कसीदें भी पढ़े, लेकिन किसी भी राजनेता ने अर्श से फर्श पर आ रहे बांसुरी कारोबार और इससे जुड़े कारोबारियों का दर्द जानने की कोशिश तक नहीं की।
तमाम झंझावतों के चलते आज बांसुरी के सुर बिखरते जा रहे हैं। इस कारोबार में आठ माह पहले अचानक आई मंदी ज्यों की त्यों बनी हुई है। नाउम्मीदी के दौर से गुजर रहे बांसुरी कारोबारी अब दूसरे व्यवसाय की ओर जाने का मन बना रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो आने वाले दिनों में पीलीभीत की बांसुरी किताबों के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगी।
पीलीभीत लोकसभा चुनाव में इस बार राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं की जमकर आमद हुई। बड़ी-बड़ी जनसभाएं हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत सत्ताधारी पार्टी के कई अन्य शीर्ष नेताओं ने पीलीभीत से अपनत्व दिखाने के लिए यहां की शान कहीं जाने वाली बांसुरी का गुणगान किया।
इतना ही नहीं प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री समेत कई अन्य शीर्ष नेताओं को स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने गर्व के साथ तोहफे के तौर पर बांसुरी भेंट की। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के जनपद में आने पर उन्हें उपहारस्वरूप बांसुरी दी गई। कुल मिलाकर देखा जाए तो बांसुरी पीलीभीत का सिंबल सा बन गया। चाहे किसी बड़े अफसर की आमद हो या फिर सुदूर देशों से आए मेहमान, सभी को उपहार में बांसुरी देने की परपंरा चल पड़ी है।
इतना सबकुछ होने के बाद भी पीलीभीत के डूबते बांसुरी कारोबार पर किसी का ध्यान नहीं जाता। वर्ष 2018 से बांसुरी एक जिला एक उत्पाद योजना में शमिल है। शुरूआती दौर में इससे जुड़े कारोबारियों को बड़े-बड़े ख्वाब दिखाए गए, बड़ा प्लेटफॉर्म मुहैया कराने की बातें की गई, यह दीगर बात है कि कारोबार से जुड़े चंद कारोबारियों को ही योजना का लाभ दिया गया।
इन सबके बावजूद तमाम समस्याओं से जूझते ही कारोबारियों ने जैसे-तैसे कारोबार को बढ़ाया, लेकिन साल भर से बांसुरी कारोबार निरंतर घटता जा रहा है। कारोबारियों के मुताबिक करीब आठ माह पहले तक जिले से 50 लाख से अधिक बांसुरियों की खपत देश भर में होती है, जो अब घटकर महज दो से ढाई लाख पर आ टिकी है। यह मंदी पिछले आठ माह ने निरंतर जारी है, कारोबारियों को भी कुछ समझ नहीं आ रहा है।
पिछले कुछ माह से कारोबारी सरकार की ओर टकटकी लगाए देख भी रहे हैं, लेकिन अब यह कारोबारी नाउम्मीद हो चुके हैं। स्थिति यह बन चुकी है कि अब कुछ बड़े कारोबारी बांसुरी छोड़ अन्य व्यवसाय की तरफ जाने का मन बना रहे हैं। इन कारोबारियों का कहना है कि मंदी अब भी बरकरार है। परिवार पालना है तो अब दूसरे व्यवसाय को चुनना ही होगा।
इस दशा से गुजर रहा बांसुरी कारोबार
कारोबारियों के मुताबिक करीब ढाई दशक पहले जिले में बांसुरी कारोबारियों का करीब एक करोड़ रुपये का टर्न ओवर था। अब यह घटकर 15-20 लाख रुपये ही रह गया है। दशकों पूर्व इस कारोबार से 100 से अधिक कारोबारी और सैकड़ों कारीगर जुड़े थे। यहां की बांसुरी अहमदाबाद, भोपाल, हैदराबाद के अलावा श्रीलंका, अमेरिका, फ्रांस, डेनमार्क आदि में आपूर्ति की जाती थी।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इन बांसुरियों की कीमत 250 रुपये से 40,000 रुपए तक थी। मगर अब हालात बदल चुके हैं। कारोबारी घटकर 20 के आसपास रह गए हैं। वहीं बांसुरी बनाने वाले कारीगरों की बात करें तो 150 से अधिक परिवार बांसुरी का काम छोड़कर अन्य काम करने लगे हैं।
क्या कहते हैं बांसुरी कारोबारी
अन्य उत्पादों की बिक्री के लिए प्लेटफॉर्म है, मगर बांसुरी के लिए कहीं भी कुछ नहीं है। ऑनलाइन मार्ट के माध्यम से बिक्री की व्यवस्था की गई, लेकिन यह सिर्फ नाम भर है। यदि यही हालात रहे तो एक शताब्दी से अधिक का सफर तय कर चुका यह कारोबार चार-पांच साल के भीतर खत्म हो जाएगा। - इकरार अहमद, बांसुरी कारोबारी