भोंपू और नारे छोड़कर सोशल मीडिया के हो गए ‘नेताजी’

भोंपू और नारे छोड़कर सोशल मीडिया के हो गए ‘नेताजी’

बाराबंकी, अमृत विचार। वक्त गुजरने के साथ ही परंपरागत चुनाव प्रचार अभियान की तस्वीर भी बदल गई है। वाहनों में पोस्टर, बैनर लगाकर भोपू वाले बाजा से गांव-गांव प्रचार-प्रसार अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। जनता के साथ नेताजी भी खुद को हाईटेक बनकर सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। डेढ़ दशक पहले तक उम्मीदवार वोटरों के बीच अपनी बात पहुंचाने के लिए पार्टी का झंडा और भोंपू (लाउडस्पीकर) लगे वाहन से गांव की गलियों में धूल फांकते थे। प्रचार-प्रसार के  लिए हैंडबिल, पोस्टर, बैनर के साथ धुआंधार नारेबाजी होती थी। पर अब सब कुछ बदल गया है। बदले सियासी समीकरण में राजनीतिक दल अब चुनाव के ऐन वक्त उम्मीदवारों की घोषणा करते हैं।

बदलते समय में अब प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार के लिए समय बेहद कम मिलता है। सीमित समय में मतदाताओं तक पहुंचना नामुमकिन होता है। लिहाजा हाईटेक तरीके से प्रचार किया जा रहा है। भोपू, बैनर और हैंडबिल की जगह सोशल मीडिया ने ले ली है। नेताओं ने भी सोशल मीडिया को प्रचार के लिए बेहतर प्लेटफार्म मान लिया है। हर नेता मोबाइल के जरिए सोशल मीडिया से जुड़कर दिन भर जनता के बीच रहना पसंद कर रहा है। फेसबुक, ह्वाट्सएप, ट्यूटर, इंस्टाग्राम प्रचार सामग्री से पटे पड़े हैं। जिले में तकरीबन सभी उम्मीदवार और उनके समर्थक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अपनी बात रखने और विपक्षियों के आरोपों का जवाब देने में कर रहे हैं। उम्मीदवारों की मानें तो सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार करना काफी सस्ता है। इसमें नाम मात्र का ही खर्च आता है। अपने चुनावी प्रचार पोस्टर कर डिजिटल फॉर्मेट तैयार करवाकर बस उसे फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर पोस्ट किया जा रहा है। उम्मीदवार पोस्टर को पोस्ट करके लोगों को टैग कर रहे हैं तो कभी ह्वाट्सएप पर अपने चुनावी पोस्टर भेजकर हक में वोट देने की अपील करें। उम्मीदवार अपने प्रचार के लिए भले ही हर घर और हर मतदाता तक स्वयं न पहुंच पाएं। लेकिन उनकी बात ऑडियो वीडियो या लिखित संदेश के जरिए वोटरों के मोबाइल फोन तक जरूर पहुंच रही है। यही नहीं राजनीतिक दल और उनकी नीतियां तथा सूचनाओं को आम जनता तक पहुंचाने के लिए अपन-अपने मोबाइल एप भी रखते हैं।  ऑनलाइन प्रचार से एक फायदा ये भी है कि कम समय में ज्यादा लोगों तक पहुंच बन रही है। इसलिए भी उम्मीदवारों का रुझान सोशल मीडिया के जरिए चुनाव प्रचार करने के लिए बढ़ा है। उम्मीदवारों का मानना है कि युवा वर्ग सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं। ऐसे में इस वर्ग के वोटर तक सबसे अधिक पहुंच बनाने के लिए इससे बेहतर कोई दूसरा माध्यम नहीं हो सकता है।

पोस्टर नहीं रील्स की बढ़ी मांग
चुनाव में प्रत्याशी डिजिटल कैंपेनिंग पर काम कर रहे हैं। पहले चुनाव के दौरान पोस्टरों को दीवारों पर चस्पा किया जाता था। इसमें चुनाव आयोग ने कई नियम लागू कर दिए हैं। इससे प्रत्याशी अब इससे किनारा कर रहे है। वैसे भी अब मीम्स और डिजिटल पोस्टर का जमाना है। इसी की मांग बाजार में है। प्रत्याशियों की ओर से रील्स की सबसे ज्यादा डिमांड है। ऐसे में चुनावी सभा और रैलियों की रील्स में नए प्रयोग कर तैयार किया जा रहा है। इस बार बाजार में परंपरागत नहीं नवाचर की मांग है। वहीं बात अगर पोस्टर, बैनर, बिल्ला व झंडे़े आदि की करें तो इसका कारोबारा करीब 40 फीसदी तक घट गया है। इसके चलते कारोबारियों में पहले जैसा उत्साह नहीं दिखता है

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