बदायूं: मौर्य-शाक्य समाज पर दांव लगा सकती है बसपा, पत्ते खुलना बाकी
बदायूं, अमृत विचार। लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है। भाजपा ने क्षेत्रीय अध्यक्ष दुर्विजय शाक्य को प्रत्याशी घोषित किया है तो समाजवादी पार्टी ने शिवपाल सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा है।
हालांकि अभी यहां से शिवपाल चुनाव लड़ेंगे या फिर उनके बेटे आदित्य यादव यह संशय बना हुआ है लेकिन दोनों में से एक को यहां प्रत्याशी मानते हुए सपा कार्यकर्ता और पदाधिकारी चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। ऐसे में सभी की निगाहें बसपा के फैसले पर हैं।
वजह है कि बसपा ने अभी तक यहां अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। ऐसे में माना जा रहा है कि बसपा यहां से मौर्य-शाक्य समाज पर दांव लगा सकती है। सियासी रणनीतिकारों का मानना है कि बसपा मौर्य-शाक्य समाज के साथ दलित गठजोड़ को जीत का आधार मानकर जल्द फैसला ले सकती है।
लोकसभा चुनाव में यहां भाजपा, सपा और बसपा को ही प्रमुख दल माना जा रहा है। यहां दो दलों ने तो प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं, ऐसे में बसपा ने अभी तक प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। जबकि नामांकन की तारीख करीब आती जा रही है। ऐसे में सभी की निगाहें बसपा की ओर हैं। बसपा क्या फैसला लेगी इसका बेसर्बी से सभी को इंतजार है।
हालांकि बसपा हाईकमान की ओर से अभी तक किसी भी संभावित प्रत्याशी को चुनाव प्रचार करने का संकेत नहीं दिया गया है, इसलिए पार्टी के स्थानीय पदाधिकारी भी कुछ स्पष्ट नहीं बता पा रहे हैं।
मगर, सियासी गलियारों में यह चर्चा जोरों पर शुरू हो गई है कि बदायूं लोकसभा से बसपा मौर्य-शाक्य समाज को अपना प्रत्याशी बना सकती है। भाजपा और सपा के पदाधिकारियों की नजर भी बसपा के फैसले पर टिकी हुई है। बसपा किस सियासी गणित के चलते किस समाज के प्रत्याशी को यहां उतारेगी तो उससे किसको कितन नफा-नुकसान होगा इस पर भी मंथन चल रहा है।
मुस्लिम समाज के एक नेता का नाम भी शामिल
विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी रहे मुस्लिम समाज के एक नेता का नाम भी यहां बसपा से प्रत्याशी के रूप में चर्चा में आया है। हाल ही में सपा से दूरी बना रहे मुस्लिम समाज के नेता का साथ बसपा से जोड़े जाने की चर्चा सियासी गलियारों में चल रही है।
ऐसे में सियासी लोगों का कहना है कि यहां से अगर मुस्लिम प्रत्याशी को बसपा ने चुनाव मैदान में उतारा तो सपा को नुकसान उठाना पड़ जाएगा। वहीं बसपा ने मौर्य, शाक्य समाज पर दांव लगाया तो भाजपा प्रत्याशी को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि मौर्य व शाक्य समाज को भाजपा का वोट बैंक माना जा रहा है।
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