आर्थिक असमानता

आर्थिक असमानता

भारत दुनिया में सर्वाधिक तेजी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। वहीं अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार के बीच बढ़ती आर्थिक असमानता चिंता बढ़ाती है। वित्त मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि अगले वित्त वर्ष के लिए भारत का परिदृश्य सकारात्मक दिख रहा है।

निवेश में बढ़ोतरी और महंगाई में कमी अर्थव्यवस्था को रफ्तार दे सकते हैं। जनवरी 2025 से ब्लूमबर्ग बांड सूचकांक में भारतीय सरकारी बांड को शामिल करने से विदेशी पूंजी प्रवाह को बढ़ावा मिलेगा। खपत में लगातार बढ़ोतरी के बीच मजबूत निवेश गतिविधि वृद्धि को गति दे रही है। मंत्रालय ने कहा कि विभिन्न एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक वृद्धि आठ प्रतिशत के करीब रहने की बात कही है।

आरबीआई के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार लगातार चौथे सप्ताह 6.40 अरब डॉलर बढ़कर 642.50 अरब डॉलर हो गया। एक सप्ताह पहले देश का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 10.47 अरब डॉलर की उच्च वृद्धि के साथ 636.95 अरब डॉलर हो गया था। अक्टूबर 2021 में देश का विदेशी मुद्राभंडार 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था। दूसरी ओर भारत में 2000 के दशक की शुरुआत से आर्थिक असमानता लगातार बढ़ रही है। 
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022-23 में देश की सबसे अमीर एक प्रतिशत आबादी की आय में हिस्सेदारी बढ़कर 22.6 प्रतिशत हो गई है। वहीं संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी बढ़कर 40.10 प्रतिशत हो गई है। भारत में आमदनी और संपदा में असमानता 1922-2023: अरबपति राज का उदय शीर्षक वाली रिपोर्ट कहती है कि 2014-15 और 2022-23 के बीच शीर्ष स्तर की असमानता में वृद्धि विशेष रूप से धन के केंद्रित होने से पता चलती है। भारतीय आबादी के शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77 प्रतिशत हिस्सा है। 2017 में उत्पन्न संपत्ति का 73 प्रतिशत सबसे अमीर एक प्रतिशत के पास चला गया। भारत में 119 अरबपति हैं। उनकी संख्या 2000 में केवल 9 से बढ़कर 2017 में 101 हो गई। 2018 और 2022 के बीच भारत में हर दिन 70 नए करोड़पति पैदा होने का अनुमान है। एक दशक में अरबपतियों की संपत्ति लगभग 10 गुना बढ़ गई। जाहिर सी बात है कि सबसे अमीर बहुत तेज गति से अमीर हो रहे हैं,जबकि गरीब अभी भी न्यूनतम वेतन अर्जित करने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं,जो लगातार कम निवेश से पीड़ित हैं। ये बढ़ती दूरियां और बढ़ती असमानताएं महिलाओं और बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं। चिंताजनक है कि एक ऐसे समाज में आर्थिक असमानता बढ़ रही है,जो पहले से ही जाति,धर्म,क्षेत्र और लिंग के आधार पर विभाजित है।