भारत-रूस संबंध

भारत-रूस संबंध

चुनाव में मिली जीत के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूस यूक्रेन में अपने आक्रमण से पीछे नहीं हटेगा और उसकी सीमा पार हमलों से रक्षा करने के लिए एक ‘बफर जोन’ बनाने की योजना है। उन्होंने चेताया कि रूस और नाटो के बीच संभावित संघर्ष से दुनिया तीसरे विश्व युद्ध से महज ‘एक कदम दूर’ रह जाएगी। यानि अपनी व्यापक जीत के साथ पुतिन संभवतः और अधिक ताकत का प्रदर्शन करेंगे और यथास्थिति बनाए रखेंगे। यह निर्विवाद है कि दो वर्ष पूर्व यूक्रेन युद्ध शुरू करने के चलते पूरी दुनिया के निशाने पर आने वाले पुतिन का अपने देश रूस में एकछत्र राज है। पुतिन ने यूक्रेन में युद्ध का घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने आलोचकों की अपेक्षा से बेहतर मुकाबला किया है।

पश्चिमी देशों की सुविधा के अनुरूप लाई गई उदारीकरण व खुलेपन की वैश्विक नीतियों से सोवियत संघ के बिखराव के बाद आहत रूसी राष्ट्रवाद को पुतिन ने अपने तरीके से सींचा। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुतिन को पुनः निर्वाचित होने पर बधाई देते हुए कहा कि भारत और रूस के बीच समय की कसौटी पर खरी उतरी, विशेष और विशिष्ट रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत बनाने के लिए आने वाले वर्षों में वे एक साथ काम करने को लेकर उत्साहित हैं।

वास्तव में भारत के लिए पुतिन का पुनः चुना जाना एक महत्वपूर्ण रिश्ते की स्थिरता सुनिश्चित करेगा। रूसी नेता ने भारत के स्वतंत्र इतिहास के लगभग एक तिहाई समय तक उसके साथ संबंध बनाए रखा है और अभी तक उसका काम पूरा नहीं हुआ है। जानकारों का कहना है कि पश्चिमी देश रूस को लेकर चाहे कितना ही सख्त रुख अपना लें लेकिन भारत दोस्ती के बाद भी उनका पिछलग्गू नहीं बनने जा रहा है। 

2010 से भारत-रूस के बीच खास और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी मज़बूत इतिहास की ठोस बुनियाद पर विकसित हुई है और ये राजनीतिक ज़रूरत के माध्यमों से बनी हुई है। रूस ने शंघाई सहयोग संगठन में भारत की सदस्यता का समर्थन किया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और इसमें भारत को शामिल करने की अपील की। इस तरह रूस ने व्यापक रूप से अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका को स्वीकार किया।

तकनीकी संकीर्णता की तरफ अमेरिका के धीरे-धीरे लेकिन साफ झुकाव के बीच भारत की कंपनियां रूस के साथ सहयोग को लेकर सावधानी बरत रही हैं। इसके अलावा रूस से आयात में बढ़ोतरी के साथ-साथ भारतीय निर्यात में बढ़ोतरी नहीं हुई। इसलिए दोनों देशों के संबंधों को विक्रेता-खरीदार रिश्तों के रूप से हटकर अधिक रणनीतिक बुनियाद पर एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता है।