रोजा इबादत का है महान रूप और इस्लाम का अभिन्न अंग: मौलाना शाबान कादरी
अयोध्या, अमृत विचार। मौलाना शाबान कादरी ने कहा है कि रोजा इबादत के महान रूपों में से एक है और इस्लाम इसका दूसरा स्तंभ है। मौलाना ने बताया कि रोजा एक महान उपासना के साथ-साथ इस्लाम का एक और हिस्सा है। जो मुस्लिम पुरुष और महिलाओं को बुद्धिमान बनाता है। एक वयस्क पर दायित्व समान है, जो कोई भी शरीयत के बहाने के बिना जान बूझकर एक रोजा छोड़ देगा, उसे साठ रोज़े रखने होंगे।
उन्होंने कहा रमजान शरीफ में उम्मत को पांच विशेष इनाम दिए गए हैं जो पहले की उम्मतों को नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि रोजेदार के मुंह की खुशबू अल्लाह को कस्तूरी से भी ज्यादा प्यारी है। फरिश्ते रोजा तोड़ने के वक्त तक भी रोजेदारों के लिए दुआ करते रहते हैं। जो लोग प्रतिदिन रोजा रखते हैं उन्हें जन्नत की यात्रा होती है। इस मुबारक महीने में विद्रोही शैतानों को कैद कर लिया जाता है और लोग रमज़ान में उन बुराइयों के करीब नहीं जा सकते हैं जिनकी तरफ वे गैर-रमजान में जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि रमज़ान की आखिरी रात में रोजेदारों को माफ कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि रोजा हर मुसलमान पर वाजिब है। जानबूझ कर रोजा न रखना बड़ा गुनाह है।
नन्हें बच्चों ने रोजा रख पेश की मिसाल
मुबारक रमजान के मौके पर मोहल्ला लालबाग निवासी बाबा जाहिद खा वारसी के साहबजादे बाबा फैजान वारसी व बाबा हसनैन वारसी ने रोजा रखा। श्री वारसी का कहना है कि इसी तरह बच्चों में उत्साह बढ़ेगा और लोग दीनी तालीम हासिल कर रोजा नमाज के पाबंद होते रहेंगे। उन्होंने बताया कि दोनों बच्चों ने पूरे दिन भूखा-प्यासा रह कर पांचों वक्त की नमाज अदा की और दुआ की।
यह भी पढे़ं: रायबरेली: संदिग्ध परिस्थितियों में आम के बाग में लटकता मिला किशोर का शव, परिवार में कोहराम