87 साल पहले ‘किसान मसीहा’ चौधरी चरण सिंह बने थे विधायक, नहीं बर्दाश्त था भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार

87 साल पहले ‘किसान मसीहा’ चौधरी चरण सिंह बने थे विधायक, नहीं बर्दाश्त था भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार

लखनऊ। भारत के ‘किसानों के मसीहा’ के रूप में लोकप्रिय चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक जीवन काफी लंबा रहा और इस दौरान वह प्रधानमंत्री और दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को घोषणा की कि पूर्व प्रधानमंत्रियों पी वी नरसिम्हा राव और चौधरी चरण सिंह के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। 

1979 में प्रधानमंत्री के रूप में किया कार्य

चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 से अगस्त 1979 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वह 21 अगस्त 1979 से 14 जनवरी 1980 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री भी रहे। चौधरी चरण सिंह तीन अप्रैल 1967 से 25 फरवरी 1968 और 18 फरवरी, 1970 से एक अक्टूबर, 1970 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। चरण सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के वर्तमान हापुड़ जिले के नूरपुर में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में 1902 में हुआ था।

1937 में छपरौली से चुने गए विधायक

उन्होंने 1923 में विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया। कानून में डिग्री लेकर गाजियाबाद में वकालत भी की। 1929 में वह मेरठ चले आये और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गये। वे सबसे पहले 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए एवं 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में विधानसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

वह 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और उन्होंने राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया। जून 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया एवं न्याय तथा सूचना विभागों का प्रभार दिया गया। 

बाद में 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। अप्रैल 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उनके पास राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार था। सी.बी. गुप्ता के मंत्रिमंडल में वह गृह एवं कृषि मंत्री (1960) थे। सुचेता कृपलानी के मंत्रिमंडल में वह कृषि एवं वन मंत्री (1962-63) रहे। 

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उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया एवं 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया। कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी 1970 में दूसरी बार वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, राज्य में 2 अक्टूबर 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। 

चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की सेवा की एवं उनकी ख्याति एक ऐसे कड़क नेता के रूप में हो गई थी, जो प्रशासन में अक्षमता, भाई – भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे। प्रतिभाशाली सांसद एवं व्यवहारवादी चरण सिंह अपनी वाक्पटुता एवं दृढ़ विश्वास के लिए जाने जाते हैं। 

उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाले विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। 

मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था, ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके। देश में कुछ-ही राजनेता ऐसे हुए हैं, जिन्होंने लोगों के बीच रहकर सरलता से कार्य करते हुए इतनी लोकप्रियता हासिल की हो।

 एक समर्पित लोक कार्यकर्ता एवं सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले चरण सिंह को लाखों किसानों के बीच रहकर प्राप्त आत्मविश्वास से काफी बल मिला। चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। 

उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखीं, जिसमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रेड’ आदि प्रमुख हैं।

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