बाराबंकी : सरकारी भूमि के अवैध कब्जे की मजबूत नींव बने दशकों से जमे लेखपाल
सोना उगलती नवाबगंज तहसील पर हावी है लेखपालों का काकस
कवेन्द्र नाथ पाण्डेय / बाराबंकी, अमृत विचार। सरकार की मंशा और जिला प्रशासन के कडे़ रूख के बाद भी नवाबगंज तहसील की बेशकीमती जमीनें अवैध कब्जे से मुक्त नहीं हो सकी। क्योंकि दशकों से जमे लेखपाल इन अवैध कब्जों की मजबूत नींव बनकर खडे़ है। प्रशासन सख्त होकर ऐसी जमीनों को चिंहित कराने का प्रयास करता है तो एक- एक गाटे और रकबे का इतिहास भूगोल जानने वाले लेखपाल व राजस्व निरीक्षक पैमाइश में खेल कर भूमाफियाओं को लाभ पहुंचाते है। कारण इनकी कमाई का सबसे मजबूत आधार भूमाफिया है। सोना उगलने वाली नवाबगंज तहसील पर लेखपाल का काकस हाबी है। इस काकस को करीब सात वर्ष पहले तत्कालीन डीएम योगेश्वर राम मिश्र ने लंबे समय से जमे लेखापाल का दूरस्थ तहसीलों में तबादला कर तोड़ा। मगर, उनके जाने के बाद लेखपालों ने अपने पॉवर व पैसे से पुन: अपनी वापसी कराई। प्रमोशन के बाद तबादला भी हुआ उसके बाद फिर आकर नबावगंज तहसील में ही अंगद के पॉव की तरह जम गए।
बाराबंकी जिले के नवाबगंज तहसील राजधानी लखनऊ से सटी है। वहीं लखनऊ- अयोध्या हाईवे और किसान पथ के साथ पूर्वांचल के लोगों का पनाह घर भी बनता जा रहा है। ऐसे में यहां की जमीनों के भाव काफी महंगे है। बड़ी- बड़ी टाउन शिप विकसित की जा रही है तो प्रापर्टी डीलरों ने भी अपनी प्लानिंग कर रखी है। एक- एक जमीनों की कई बार रजिस्ट्री हुई तो कईयों के कागजों पर जमीन बेंच कर खारिज दाखिल भी करा दिया गया। ऐसे में दूसरे गाटों से सड़क व पार्क के नाम छूटी जमीन बेचकर भूमाफियों में स्थानीय लेखपाल व राजस्व निरीक्षक से मिलकर सरकारी भूमि पर कब्जा करा दिया। बड़ेल में हाल में ही डीएम की सख्ती पर की गई पैमाइश में करीब 15 बीघे बंजर भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराते हुए एक अवैध कब्जेदार पर केस भी दर्ज कराया गया। मगर, इसी से सटी गाटा संख्या 1862 की 25 बीघे बंजर भूमि पर जहां आठ बीघे भूमि पर पीएम आवास को आवंटित कर निर्माण कराया गया। वहीं 17 बीघे बंजर भूमि चिंहित कर इसे बेचने वाले भूमाफियों पर कार्रवाई नहीं हुई। क्योकि इन बंजर भूमि पर मकान बने है। यह जानते हुए जिम्मेदार उच्चाधिकारियों को सच से अवगत कराने की बजाय दूसरे गाटा नंबर की पैमाइश व चिंहीकरण कर गुमराह करने में जुटे है।
यह तो महज बानगी है। इसी प्रकार शहर की बंजर, परती, चारागाह, चक मार्ग व तालाब की जमींने तक में प्लाटिंग कर बेंच दिया गया। दरामनगर में स्थानीय लेखपाल ने तो सरकारी जंगल को बेंच दिया। कुछ ऐसा ही हाल बडेल, पल्हरी, माती, जिंहौली, ढकौली आलापुर व शहर के आस-पास का है। बीबीआईपी कहीं जाने वाली इन सर्किलों में दशकों से तहसील में जमें वहीं पुराने लेखपाल है। जो फुटबाल बन इन्हीं सर्किलों में अपनी तैनाती कराकर भूमाफियाओं और खनन-माफियों को लाभ पहुंचा रहे है। अगर इन पर कोई आंच भी आती है तो इनके बचाव में सफेदपोश व भूमाफिया अपनी पूरी ताकत लगा देते है।
ये है वर्तमान स्थिति
*तहसील में वर्तमान में 67 लेखपाल तैनात है
*अधिकतम एक तहसील में 10 वर्ष तक तैनात रहने का नियम है
*ट्रांसफर के बाद 5 वर्ष तक इस तहसील में वापसी नहीं होने का नियम है
*जबकि सदर तहसील में एक दर्जन लेखपाल 12 ,14 सालों से जमे हैं तबादला हुआ भी तो नियम विरुद्ध तरीके से तहसील में वापसी कराकर उन्हीं सर्किल में तैनाती ले ली।
वर्जन-
सदर तहसील में 10 वर्ष से अधिक समय से 8 से 10 लेखपाल तैनात होने की जानकारी है। इनकी संख्या अधिक होने के कारण ट्रांसफर सत्र में ट्रांसफर करने का नियम है। फिर भी अनुमति लेकर उनका ट्रांसफर किया जाएगा।
सतेन्द्र कुमार जिलाधिकारी बाराबंकी
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