रामलला की प्राण प्रतिष्ठा ऐतिहासिक, युगांतकारी आयोजन के रूप में होगा इसका मूल्यांकनः राष्ट्रपति मुर्मू 

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा ऐतिहासिक, युगांतकारी आयोजन के रूप में होगा इसका मूल्यांकनः राष्ट्रपति मुर्मू 

नई दिल्ली। अयोध्या के राम मंदिर में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा को ‘ऐतिहासिक’ करार देते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बृहस्पतिवार को कहा कि भविष्य में जब भी इस घटना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाएगा तब इसका मूल्यांकन भारत द्वारा अपनी सभ्यतागत विरासत की निरंतर खोज में युगांतरकारी आयोजन के रूप में किया जाएगा। 

राष्ट्रपति ने 75वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में विश्व के कई देशों के बीच चल रहे संघर्षों व मानवीय त्रासदियों पर चिंता जताई। साथ ही भगवान बुद्ध से लेकर वर्धमान महावीर और सम्राट अशोक से लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक के अहिंसा के मार्ग को अपनाने का उल्लेख करते हुए उम्मीद जताई कि शांति स्थापित करने के रास्ते खोज लिए जाएंगे। 

उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार लोगों का जीवन सुगम बनाने के लिए अनेक समयबद्ध योजनाएं क्रियान्वित कर रही है और ये किसी भी राजनीतिक या आर्थिक विचारधारा से परे हैं। उन्होंने कहा कि इन्हें (योजनाओं को) मानवीय दृष्टिकोण से ही देखा जाना चाहिए। 

देशवासियों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘इस सप्ताह के आरंभ में हम सबने अयोध्या में प्रभु श्रीराम के जन्मस्थान पर निर्मित भव्य मंदिर में स्थापित मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक समारोह देखा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘भविष्य में जब इस घटना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाएगा तब इतिहासकार, भारत द्वारा अपनी सभ्यतागत विरासत की निरंतर खोज में युगांतरकारी आयोजन के रूप में इसका विवेचन करेंगे।’’ 

राष्ट्रपति ने कहा कि उचित न्यायिक प्रक्रिया और देश के उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ हुआ और अब यह एक भव्य संरचना के रूप में शोभायमान है। उन्होंने कहा, ‘‘यह मंदिर न केवल जन-जन की आस्था को व्यक्त करता है,बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में हमारे देशवासियों की अगाध आस्था का प्रमाण भी है।’’

 रूस-यूक्रेन और हमास-इजराइल के मध्य जारी संघर्षों के बीच राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि जब दो परस्पर विरोधी पक्षों में से प्रत्येक मानता है कि केवल उसी की बात सही है और दूसरे की बात गलत है तो ऐसी स्थिति में समाधान-परक तर्क के आधार पर ही आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से तर्क के स्थान पर आपसी भय और पूर्वाग्रहों ने भावावेश को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण अनवरत हिंसा हो रही है।

 राष्ट्रपति ने कहा कि बड़े पैमाने पर मानवीय त्रासदियों की अनेक दुखद घटनाएं हुई हैं और पूरा देश इस मानवीय पीड़ा से अत्यंत व्यथित है। उन्होंने भगवान बुद्ध के शब्द ‘न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनम्, अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो’ का उल्लेख किया जिसका अर्थ है कि यहां कभी भी शत्रुता को शत्रुता के माध्यम से शांत नहीं किया जाता है, बल्कि अ-शत्रुता के माध्यम से शांत किया जाता है। 

यही शाश्वत नियम है। राष्ट्रपति ने बुद्ध के साथ ही वर्धमान महावीर और सम्राट अशोक से लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक को याद किया और कहा कि भारत ने सदैव एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि अहिंसा केवल एक आदर्श मात्र नहीं है जिसे हासिल करना कठिन हो, बल्कि यह एक स्पष्ट संभावना है। उन्होंने कहा, ‘‘यही नहीं, अपितु अनेक लोगों के लिए यह एक जीवंत यथार्थ है। हम आशा करते हैं कि संघर्षों में उलझे क्षेत्रों में, उन संघर्षों को सुलझाने तथा शांति स्थापित करने के मार्ग खोज लिए जाएंगे।’’ 

राष्ट्रपति ने कहा कि देश के सभी नागरिकों के जीवन-यापन को सुगम बनाने के लिए अनेक समयबद्ध योजनाएं भी कार्यान्वित की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि घर में सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल की उपलब्धता से लेकर अपना घर होने के सुरक्षा-जनक अनुभव तक, ये सभी बुनियादी न्यूनतम आवश्यकताएं हैं, न कि विशेष सुविधाएं। 

उन्होंने कहा, ‘‘ये मुद्दे, किसी भी राजनीतिक या आर्थिक विचारधारा से परे हैं और इन्हें मानवीय दृष्टिकोण से ही देखा जाना चाहिए।’’ राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार ने केवल जन-कल्याण योजनाओं का विस्तार और संवर्धन ही नहीं किया है, अपितु जन-कल्याण की अवधारणा को भी नया अर्थ प्रदान किया है। उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी उस दिन गर्व का अनुभव करेंगे जब भारत ऐसे कुछ देशों में शामिल हो जाएगा जहां शायद ही कोई बेघर हो।’’ 

मुर्मू ने कहा कि समावेशी कल्याण की इसी सोच के साथ ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ में डिजिटल विभाजन को पाटने और वंचित वर्गों के विद्यार्थियों के हित में, समानता पर आधारित शिक्षा व्यवस्था के निर्माण को समुचित प्राथमिकता दी जा रही है। उन्होंने कहा कि ‘आयुष्मान भारत योजना’ के विस्तारित सुरक्षा कवच के तहत सभी लाभार्थियों को शामिल करने का लक्ष्य है। उन्होंने कहा, ‘‘इस संरक्षण से गरीब और कमजोर वर्गों के लोगों में एक बहुत बड़ा विश्वास जगा है।’’

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जी-20 के भारत के अध्यक्षीय काल में वैश्विक दक्षिण की आवाज़ उठाने को असाधारण उपलब्धि बताते हुए आज कहा कि भारत दुनिया के अनेक हिस्सों में चल रहे संघर्षों और वैश्विक पर्यावरण संकट से उबरने में भी विश्व-समुदाय का प्रभावी मार्गदर्शन करने में सक्षम है। 

मुर्मू ने गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश में भारत की भूराजनीतिक एवं कूटनीतिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत की अध्यक्षता में दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन का सफल आयोजन एक अभूतपूर्व उपलब्धि थी। जी-20 से जुड़े आयोजनों में जनसामान्य की भागीदारी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 

इन आयोजनों में विचारों और सुझावों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर नहीं बल्कि नीचे से ऊपर की ओर था। उस भव्य आयोजन से यह सीख भी मिली है कि सामान्य नागरिकों को भी ऐसे गहन तथा अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दे में भागीदार बनाया जा सकता है जिसका प्रभाव अंततः उनके अपने भविष्य पर पड़ता है। 

जी-20 शिखर सम्मेलन के माध्यम से वैश्विक दक्षिण की आवाज के रूप में भारत के अभ्युदय को भी बढ़ावा मिला, जिससे अंतरराष्ट्रीय संवाद की प्रक्रिया में एक आवश्यक तत्व का समावेश हुआ है। राष्ट्रपति ने कहा कि हाल के दौर में विश्व में अनेक स्थलों पर लड़ाइयां हो रही हैं और दुनिया के बहुत से हिस्से हिंसा से पीड़ित हैं। जब दो परस्पर विरोधी पक्षों में से प्रत्येक मानता है कि केवल उसी की बात सही है और दूसरे की बात गलत है, तो ऐसी स्थिति में समाधानपरक तर्क के आधार पर ही आगे बढ़ना चाहिए।

 दुर्भाग्य से, तर्क के स्थान पर, आपसी भय और पूर्वाग्रहों ने भावावेश को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण अनवरत हिंसा हो रही है। बड़े पैमाने पर मानवीय त्रासदियों की अनेक दुखद घटनाएं हुई हैं, और हम सब इस मानवीय पीड़ा से अत्यंत व्यथित हैं। ऐसी परिस्थितियों में, हमें भगवान बुद्ध के सारगर्भित शब्दों का स्मरण होता है: “न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनम् , अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो।” इसका भावार्थ है: “यहां कभी भी शत्रुता को शत्रुता के माध्यम से शांत नहीं किया जाता है, बल्कि अशत्रुता के माध्यम से शांत किया जाता है। यही शाश्वत नियम है।” 

उन्होंने कहा कि वर्धमान महावीर और सम्राट अशोक से लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक, भारत ने सदैव एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि अहिंसा केवल एक आदर्श मात्र नहीं है जिसे हासिल करना कठिन हो, बल्कि यह एक स्पष्ट संभावना है। यही नहीं, अपितु अनेक लोगों के लिए यह एक जीवंत यथार्थ है। हम आशा करते हैं कि संघर्षों में उलझे क्षेत्रों में, उन संघर्षों को सुलझाने तथा शांति स्थापित करने के मार्ग खोज लिए जाएंगे। 

मुर्मू ने कहा कि वैश्विक पर्यावरण संकट से उबरने में भी भारत का प्राचीन ज्ञान, विश्व-समुदाय का मार्गदर्शन कर सकता है। भारत को ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों को बढ़ावा देने में अग्रणी योगदान देते हुए और वैश्विक जलवायु कार्रवाई को नेतृत्व प्रदान करते हुए देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। भारत ने पर्यावरण के प्रति सचेत जीवन-शैली अपनाने के लिए ‘लाइफ’ आंदोलन शुरू किया है। 

हमारे देश में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे का सामना करने में व्यक्तिगत व्यवहार-परिवर्तन को प्राथमिकता दी जा रही है तथा विश्व समुदाय द्वारा इसकी सराहना की जा रही है। हर स्थान के निवासी अपनी जीवन-शैली को प्रकृति के अनुरूप ढालकर अपना योगदान दे सकते हैं और उन्हें ऐसा करना ही चाहिए। इससे न केवल भावी पीढ़ियों के लिए पृथ्वी का संरक्षण करने में सहायता मिलेगी बल्कि जीवन की गुणवत्ता भी बढ़ेगी।

यह भी पढ़ें- खड़गे ने PM मोदी पर साधा निशाना, बोले- भगवान की तस्वीरें दिखाने से लोगों का पेट नहीं भरेगा