मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत कहीं है कुछ..., डॉ. लोहिया के समाजवाद के साथी शम्सी मीनाई को भी राम से था खास अनुराग
बाराबंकी के इस कलमकार की राम पर लिखी रचना देश-दुनिया में गा रहे कवि कुमार विश्वास

कवेन्द्र नाथ पाण्डेय, बाराबंकी। मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत कहीं है कुछ, तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ....। राम पर लिखी यह रचना हिंदी के विद्वान व प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास देश दुनिया में गा रहे हैं। वही इसे गाने से पहले उर्दू के मशहूर शायर शम्सी मीनाई का नाम लेना नहीं भूलते। जिन्होंने उर्दू के साथ हिंदी पर मजबूत पकड़ होने का प्रमाण "राम" पर 50 साल पहले लिखी अपनी नज़्म के रूप में दिया था।
यह नज़्म आज के हालात में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस समय थी। ऐसे में अयोध्या में बनकर तैयार भव्य श्रीराम मंदिर में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर जिले के ऐसे साहित्यकारों के बारे में बात करना भी जरूरी हो जाता है। शायर शम्सी मीनाई जी लोहिया जी के साथ रह कर समाजवाद की बातें भी अपनी नज़्मों गज़लों में कहीं , वहीं राम, हिंदुस्तान व पाकिस्तान की बात करने में पीछे नहीं रहे।
शायर शम्सी मीनाई का जन्म 1919 में हुआ। उनका पूरा नाम शौकत अली अल्वी 'शम्सी मीनाई' था। वर्ष 1950 में बाराबंकी शहर में अपना आशियाना बनाया और देश दुनिया में शायरी, गजल, नज्म से प्यार बांट कर जिले का नाम रोशन किया। आज वह भले ही हमारे बीच नहीं है मगर उनकी गजल व शायरी हिंदी के विद्वानों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बनी है।
पुस्तक परतो में उनकी नज़्में गज़लें शामिल हैं। वहीं ग़ार ए सौर की एक रात, 'दरबार ए मोहम्मद', फिरका परस्तों से दो दो बातें, ताज महल, हवा, पानी, मिट्टी, जाड़े की आग, हिंदुस्तान-पाकिस्तान एक हो आदि ऐसी नज़्म है जो देश दुनिया मे बहुत प्रसिद्ध हुईं।
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