कासगंज: तीन दशक में डूब गए आर्द्र क्षेत्र, उप ग्रह की तस्वीरों से हो रही तलाश
जिले में बड़ी संख्या में थे दलदलीय क्षेत्र, अब होते जा रहे हैं गुम, जल साक्षरता अभियान की हुई शुरूआत हो मिलने लगा मुकाम

गजेंद्र चौहान, कासगंज, अमृत विचार। शासन ने जल साक्षरता अभियान शुरू करने का आदेश जारी किया है। इसके परिप्रेक्ष्य में वन विभाग ने जब जलस्रोतों के आंकड़ों का अध्ययन किया। उपग्रह से भेजी गई तस्वीरो को निहारा तो अधिकारी चौंक गए। पाया कि तीन दशक में जिले में ज्यादातर आर्द्र क्षेत्र(वेटलैंड्स) 'डूब' चुके हैं। अब करीब दस प्रतिशत ही आर्द्र क्षेत्र बचे हैं।
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ओर से जल साक्षरता अभियान चलाने के निर्देश दिए गए। शासन ने इस संदर्भ में पिछले साल ही सभी जिलों को सचेत किया। कासगंज जिले के तत्कालीन जिला वन अधिकारी हरि शुक्ला ने उपग्रह से भेजी गई तस्वीरों और केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट का अध्ययन किया। उपग्रह की तस्वीरों और वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट आइआइटी दिल्ली की नेशनल वेटलैंड एटलस बुक के आधार पर पता चला कि तीन दशक में 90 प्रतिशत आर्द्र क्षेत्र गायब हो गए।
जंगल पृथ्वी के फेफड़े तो आर्द्र क्षेत्र गुर्दा है: वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट, आइआइटी, दिल्ली के विशेषज्ञ मनोज मिश्रा ने अमृत विचार को फोन पर हुई बातचीत में बताया कि जंगल यदि पृथ्वी के फेफड़े हैं तो आद्र क्षेत्र गुर्दे हैं। इन क्षेत्रों में वनस्पतिया सुरक्षित रहती हैं। इनमें जलीय जीव सुरक्षित रहते हैं। इसके अलावा, आद्र क्षेत्रों में जब बरसात का पानी भर जाता है तो ऐसे अवयव जिनसे भूजल प्रदूषित हो सकता है या केमिकल युक्त हो सकता है, उनको यह क्षेत्र जमीन के अंदर नहीं जाने देते। आर्द्रर क्षेत्रों के संरक्षण की मुहिम चलाई जाएगी।
142 आर्द्र क्षेत्र चिह्नित कर लिए गए हैं। उपग्रह से प्राप्त तस्वीर के आधार पर तीन दशक में आर्द्र क्षेत्रों का दायरा लगभग 90 प्रतिशत कम हुआ है। जानकारी की जा रही है कि कहा-कहां अतिक्रमण है। ऐसे अतिक्रमण हटवाए जाएंगे। - दिलीप श्रीवास्तव, डीएफओ
ये है स्थिति: -
- 5950 हेक्टेयर क्षेत्र में कुल आर्द्र क्षेत्र था तीन दशक पहले
- 07 वेटलैंड व बूढ़ी गंगा थे प्रमुख आर्द्र क्षेत्र
517 हेक्टेयर क्षेत्र में ही रह गए हैं आर्द्र क्षेत्र
4500 हेक्टेयर क्षेत्र में तीन दशक पहले थी बूढ़ी गंगा
200 हेक्टेयर क्षेत्र में ही सिमटकर रह गई है बूढ़ी गंगा
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