Allahabad High Court: मृतक के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले उसके कानूनी प्रतिनिधि को नोटिस देना आवश्यक

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि वस्तु एवं सेवा कर विभाग को केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के तहत मृतक के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले मृतक के कानूनी प्रतिनिधि को नोटिस देना आवश्यक है। चूंकि याचिका में ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं था जो यह दर्शा सके कि मृत व्यक्ति के कानूनी प्रतिनिधि को नोटिस दिया गया था।
कोर्ट ने केवल जुर्माना आदेश रद्द करते हुए सहायक आयुक्त, केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर डिवीजन-1, नोएडा को याची को सुनवाई का अवसर देने के बाद नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने मिस ललिता सुब्रमण्यम की याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया है। दरअसल याची के पति मेसर्स टीएसआर सुब्रमण्यम नाम की एक फर्म के मालिक थे और कंसल्टेंट के रूप में सेवाएं प्रदान करने में लगे हुए थे।
विभाग ने वित्तीय वर्ष 2014-15 के लिए सेवा कर के लिए सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 142, 173, 174 के साथ-साथ फाइनेंस एक्ट, 1994 की धारा 73(1) के प्रावधानों के तहत 8,97,716 रुपए की देनदारी लगाते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। इसके बाद विभाग ने याची पर जुर्माना आदेश पारित करते हुए ₹10000 का अतिरिक्त जुर्माना लगाया।
याची के अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि उनके पति की मृत्यु की जानकारी विभाग को बता दी गई थी और विभाग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसके साथ ही याची को कारण बताओ नोटिस और परिणामी आदेश कभी नहीं दिया गया। मुख्य रूप से अधिवक्ता ने बताया कि कार्यवाही को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि उपरोक्त वित्तीय वर्ष के लिए कारण बताओ नोटिस संबंधित तिथि से 5 साल की अवधि के बाद जारी किया गया था। अतः उक्त कार्रवाई अवैध थी और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
वहीं दूसरी तरफ विभाग के अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अपेक्षित आदेश फर्म के नाम पर जारी किया गया था, लेकिन इस तथ्य की जानकारी होने के बावजूद की फर्म के मालिक की मृत्यु हो गई है। फर्म के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही के संबंध में याची को कोई नोटिस नहीं दिया गया था। दोनों पक्षों के द्वारा दिए गए तर्कों को सुनने के बाद पीठ ने पाया कि विभाग की तरफ से याची को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया गया था, लेकिन याची की तरफ से न तो कोई अधिकृत प्रतिनिधि उपस्थित हुआ और न ही उनकी तरफ से कोई संचार प्राप्त हुआ था। भले ही विभाग ने पंजीकृत पते और पंजीकृत ईमेल पर संचार किया था।
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