कासगंज: सिक्किम में मिल रहे हैं और भी सैनिकों के शव, लेकिन राघवेंद्र का सुराग नहीं

कासगंज, अमृत विचार। टुकड़ी के साथ वाहन चलाकर मंजिल की ओर जा रहा था। आसमान से आफत गिरी। बादल फटा तमाम सैनिक दब गए और लापता हो गए। इनमें वाहन चालक कासगंज का सैनिक राघवेंद्र भी शामिल था। 12 दिन बीत जाने के बावजूद भी उसका कोई सुराग नहीं लग रहा है। मलबे से और भी सैनिकों के शव निकाले जा रहे है। जिससे स्पष्ट हो रहा है कि अधिक संख्या में सैनिक मलबे में दबे है। इधर सेना के ऑपरेशन पर लापता सैनिक के परिवार की निगाहें टिकी हुई है।
जिला कासगंज के गांव सलेमपुर पीरोंदा निवासी सैनिक राघवेंद्र कुमार सिंह 12 दिन पूर्व सिक्किम में बादल फटने से तीस्ता नदी में अचानक आई बाढ़ में सेना के वाहन सहित लापता हो गए थे। इस आपदा में सेना की तरफ से लगातार बचाव एवं राहत कार्य किया गया, जिसमे अधिकतर शव बरामद कर लिए, लेकिन राघवेंद्र का कहीं अता पता नहीं चला है।
सेना ने काफी शव बरामद किए, कुछ शवों की शिनाख्त भी नहीं हो पा रही थी जिस कारण राघवेंद्र के परिजनों को सिक्किम बुलाया गया था। राघवेंद्र की पत्नी बेबी, उनका पांच वर्षीय बेटा भव्य, राघवेंद्र के भाई नरेन्द्र सिंह, उनकी पत्नी एवं राघवेंद्र के साढ़ू सहित अन्य परिजन करीब एक हफ्ते से सिक्किम में हैं। जहां सेना ने उनको जगह जगह कई अस्पतालों में रखे हुए शव दिखाए किंतु किसी की शिनाख्त नहीं हो सकी। घटना स्थल पर अभी भी राहत कार्य किया जा रहा है। सैनिक के गांव में रह रहे अन्य भाइयों एवं परिजनों से संपर्क करने पर पता चला है कि शनिवार को करीब चार शव और बरामद हुए हैं। अब उनकी भी शिनाख्त में परिजन रूके हुए है।
ऑपरेशन से 250 किलोमीटर दूर
राघवेंद्र के परिजन सेना जहां रुके हुए हैं वहां से घटनास्थल की दूरी करीब 250-300 किलोमीटर की बताई गई है। शनिवार को शव मिलने की जानकारी के बाद रविवार शाम तक यह लोग घटना स्थल तक पहुंच सके है, हालांकि शाम तक ताजा अपडेट नहीं मिला।
बेहद चिंता का है विषय
चूंकि यह हादसा करीब 12 दिन पूर्व हुआ था, अब इतने दिनों में यदि जवान का शरीर बरामद होगा तो क्या स्थिति होगी, यह एक दुखद विषय है। साथ ही सेना अब राघवेंद्र को किस प्रकार बरामद करेगी यह भी एक बड़ा प्रश्न है।
पल पल की खबर ले रहे हैं परिजन
गांव में रह रहे सैनिक के अन्य बड़े भाई रामेंद्र सिंह ने बताया कि दिन रात पल पल की खबर ले रहे हैं, इतने दिनों में अभी तक कुछ हासिल नहीं हो पाया है। अब तो मन भी बेहद घबराया हुआ है, किसी तरह खुद को और घरवालों को संभालने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे जैसे समय बीत रहा है उम्मीद की किरण डूबती नजर आ रही है।
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