अयोध्या: प्लास्टिक कचरे के निस्तारण को फिक्रमंद हुआ नगर निगम

ट्रिपल पी माडल पर निस्तारण प्लांट स्थापित कराने को कंपनियों से आमंत्रित किया प्रस्ताव 

अयोध्या: प्लास्टिक कचरे के निस्तारण को फिक्रमंद हुआ नगर निगम

अयोध्या,अमृत विचार। शासन-प्रशासन की ओर से पाबंदी के बावजूद सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग कम होने का नाम नहीं ले रहा। सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे से चोक हो रहे नाले-नाली और रोज इस कचरे से बड़े हो रहे कूड़े के ढ़ेर नगर निगम के लिए मुसीबत बने हुए हैं। शासन की पाबंदी के बावजूद प्रशासन सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रभावी रोक नहीं लगा पा रहा। 

ऐसे में इस कूड़े-कचरे के ढ़ेर से निजात के लिए नगर निगम ने तकनीकि का सहारा लेने की कवायद शुरू की है। योजना तकनीकि के इस्तेमाल से सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे के प्रभावी निस्तारण के साथ राजस्व कमाने की है, जिसके लिए इस कूड़े के ढेर से डीजल-पेट्रोल, वैक्स, गैस तथा कार्बन बनाया जाएगा। 

पहल के तहत नगर निगम ने सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा निस्तारण के क्षेत्र में दक्ष कंपनियों से संयंत्र लगाने के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किया है। योजना को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप ( पीपीपी ) मॉडल पर संचालित किये जाने की योजना है।  

गौरतलब है कि अयोध्या नगर निगम की ओर से नवोन्मेषी प्लास्टिक आफ फ्यूल (पी 2 एफ ) संयंत्र की स्थापना के लिए इस क्षेत्र में दक्ष देश की कंपनियों से प्रस्ताव आमंत्रित किया है। शर्त रखी है कि संयंत्र का संचालन निर्माण, वित्तीय व्यवस्था, मालिकाना हक और रखरखाव कंपनी का होगा तथा  20 टीडीपी क्षमता के इस संयंत्र का 20 वर्षों तक कंपनी को संचालन करना होगा और कूड़ा कलेक्शन केंद्र खुद ही संचालित करना होगा। प्रस्ताव वही कंपनी दे सकती है जिसका वार्षिक टर्नओवर एक करोड़ तथा 10 टीडीपी प्रसंस्करण क्षमता का अनुभव हो।  

मथुरा समेत कई जगहों पर चल रहा है संयंत्र 
सिंगल यूज प्लास्टिक के निस्तारण के लिए प्रदेश के मथुरा समेत देश के कई जगहों पर प्लास्टिक कचरे से बायो फ्यूल निर्माण का संयंत्र चल रहा है। बताया जाता है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक प्राइवेट कंपनी ने मथुरा में चार करोड़ की लागत से प्रोजेक्ट लगाया है, जिसमें 6 टन सिंगल प्लास्टिक कचरे से 36 घंटे में 900 लीटर बायो फ्यूल उत्पादित किया जा रहा है। 

प्लास्टिक के कचरे से लो और हाई डेंसिटी तेल का निर्माण होता है, जिसका इस्तेमाल ट्रैक्टर, जेनरेटर और इंजन चलाने में इस्तेमाल किया जा रहा है। रसायन शास्त्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि अमूमन सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे से 30 फीसदी तेल, 30 फीसदी वैक्स, 30 फीसदी कार्बन और 10 फीसदी गैस का निर्माण होता है। हलांकि आधुनिक तकनीकि के समावेश से कचरे से बनने वाले डीजल और पेट्रोल की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।  

इस तरह बनता है प्लास्टिक कचरे से बायो फ्यूल 
रसायन शास्त्र के जानकारों के मुताबिक प्लास्टिक डबल बांड हाइड्रोकार्बन है। इसमें हाइड्रोजन जोड़कर सिंगल बाण्ड इथेन बनाया जाता है।  सिंगल बाण्ड इथेन में क्लोरीन-सोडियम डालकर एथाइल क्लोराइड से ब्यूटेन का निर्माण किया जाता है। इसके बाद ब्यूटेन में ब्रोमीन सोडियम डालकर ब्यूटाइल ब्रोमाइड बनाया जाता है, जिससे आइसो ऑक्टेन बनता है। इसी को बीएस 6 ग्रेड बायो फ्यूल कहा जाता है, जिसको अलग-अलग ताप (450 से 600 डिग्री सेंटीग्रेड ) और दाब (प्रेशर ) देकर पेट्रोल और डीजल को अलग किया जाता है।  

नगर निगम के सहायक आयुक्त अरुण कुमार गुप्ता का कहना है कि प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए पीपीपी मॉडल पर देश की दक्ष कंपनियों से अभिरुचि का प्रस्ताव आमंत्रित किया गया है। नगर निगम की कोशिश प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के साथ इस कचरे से तकनीकि के इस्तेमाल से राजस्व हासिल करने की है। कई जगहों पर ऐसे संयंत्र का सफलतापूर्वक संचालन किया जा रहा है।

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