Allahabad High Court: भगोड़ा घोषित अपराधी को अग्रिम जमानत आवेदन दाखिल करने का अधिकार

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपराधी द्वारा अग्रिम जमानत आवेदन दाखिल करने की शर्तों पर विचार करते हुए कहा कि एक भगोड़े अपराधी को सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने से नहीं रोका जा सकता है। न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एकल पीठ ने अपनी विशेष टिप्पणी में कहा कि सीआरपीसी की धारा 82 और धारा 438 भगोड़ा अपराधी को अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने से नहीं रोकती है।
मौजूदा मामले में याची उदित आर्य के खिलाफ गत अक्टूबर में अपनी पत्नी की हत्या करने पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं व दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत पुलिस स्टेशन गंगानगर, मेरठ में मामला दर्ज कराया गया था। अभियोजन पक्ष का तर्क था कि मृतका के गर्भ में भ्रूण की मृत्यु हो गई थी, लेकिन उसके घर वालों ने उसका इलाज नहीं करवाया। 10 दिनों तक मृत भ्रूण मृतका के गर्भ में पड़ा रहा और इस दौरान उसके ससुराल वालों ने उसके साथ मारपीट भी की। मृतका के पति व घरवालों की लापरवाही के कारण मृतका की मृत्यु हो गई।
आरोपी के खिलाफ 24 मार्च 2023 को सीआरपीसी की धारा 82 के तहत कार्यवाही शुरू की गई और 29 मार्च 2023 को जमानत याचिका दाखिल की गई थी। मृत व्यक्ति के प्रति क्रूरता बरतने के कारण और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुपालन में याची अग्रिम जमानत का हकदार नहीं है। दूसरी ओर आरोपी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि मृतका की जांच रिपोर्ट के अनुसार उसके शरीर पर किसी भी तरह की चोट का निशान नहीं था बल्कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसकी मृत्यु का कारण मल्टीपल ऑर्गन्स इंवॉल्वमेंट की पुरानी बीमारी सेप्टीसीमिया थी।
सभी तर्कों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि मृत्यु को आईपीसी की धारा 304 (बी) के तहत परिकल्पित सामान्य परिस्थितियों में नहीं कहा जा सकता है, इसलिए मौजूदा मामले को दहेज कानून के दुरुपयोग के रूप में देखा जा सकता है, साथ ही अदालत ने यह भी पाया कि मृतका ने मृत्यु से पहले याची या उसके परिवारवालों के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की थी और मृतका के शरीर पर आंतरिक एवं बाहरी रूप से कोई चोट भी नहीं देखी गई थी, इसलिए याची अग्रिम जमानत पाने का हकदार है।
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